नागौर जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)
Nagour District GK in Hindi / Nagour Jila Darshan
नागौर जिले का इतिहास—
नागौर को प्राचीनकाल से अहिच्छत्रपुर के नाम से जाना जाता रहा है और यह जंगल प्रदेश की राजधानी भी रहा था।इस नगर पर लगभग 2 हजार वर्षों तक नागवंशीय राजाओं का अधिकार रहा, जिन्हें बाद में परमार राजपूतों ने पराजित किया। मध्यकाल में ये मुगलों के अधीन था बाद में मुगल शासन के शक्तिहीन होने के पश्चात् जोधपुर के राठौड़ राजाओं का नागौर पर अधिकार हो गया।
जोधपुर के तत्कालीन महाराजा गजसिंह प्रथम के वीर पुत्र अमरसिंह राठौड़ की शौर्य गाथाओं के कारण नागौर इतिहास में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
नागौर जिले के उपनाम/प्राचीन नाम—
राजस्थान का धातु नगरऔजारों की नगरी
जांगल प्रदेश की राजधानी
अहिच्छत्रपुर
नागौर जिले की भौगोलिक स्थिति
नागौर जिले का कुल क्षेत्रफल – 17,718 वर्ग किलोमीटरनागौर जिले में कुल वनक्षेत्र –
नागौर जिले की मानचित्र में स्थिति एवं विस्तार—
अक्षांशीय स्थिति : 26° 25 मिनट उत्तरी अक्षांश से 27° 40 मिनट उत्तरी अक्षांश तक।देशांतरीय स्थिति : 73°18 मिनट पूर्वी देशांतर से 75 ° 15 मिनट पूर्वी देशांतर तक।
नागौर जिले में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 10 है, जो निम्न प्रकार है—
1. लाडनूं, 2. डीडवाना, 3. जायल, 4. नागौर, 5. खींवसर,6. मेड़ता, 7. डेगाना, 8. मकराना, 9. नावां, 10. परबतसर
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार नागौर जिले की जनसंख्या के आंकड़े निम्नानुसार है—
कुल जनसंख्या—33,07,743पुरुष—16,96,325
स्त्री—16,11,418
दशकीय वृद्धि दर—19.2%
लिंगानुपात—950
जनसंख्या घनत्व—187
साक्षरता दर—62.8%
पुरुष साक्षरता—77.2%
महिला साक्षरता—47.8%
नागौर जिले में कुल पशुधन – 31,50,011
नागौर जिले में कुल पशु घनत्व – 178
नागौर जिले की प्रमुख नदियाँ—
जोजड़ी नदी—जोजड़ी नदी का उद्गम नागौर जिले के पोंडलू गाँव की पहाडिय़ों से होता है। यह लूनी की सहायक नदियों में एकमात्र ऐसी नदी है, जिसका उद्गम अरावली की पहाडिय़ों से नहीं होता है। यह लूनी नदी में पश्चिम दिशा से मिलती है तथा यह लूनी की एकमात्र ऐसी सहायक नदी है, जो दांयी तरफ से लूनी नदी में मिलती है।
नागौर जिले में बहने वाली अन्य नदियाँ—लूनी, हरसौर।
डीडवाना झील—इस झील का नमक खाने योग्य नहीं है। डीडवाना झील पर 1960 में ‘राजस्थान स्टेट कैमिकल वर्क्स’ नामक उर्वरक कारखाना स्थापित किया गया, जो देश का सबसे बड़ा कारखाना है। इस झील के नमक का प्रयोग चमड़ा व कागज उद्योग में होता है। यहाँ पर नमक बनाने वाली संस्थाएँ देवल कहलाती हैं।
नावां झील—यहाँ पर भारत सरकार का मॉडल साल्ट फार्म (आदर्श लवण उद्योग) विकसित किया गया है।
अन्य—डेगाना, भैरोंदा, कुचामन झील।
इन्दिरा गाँधी नहर की लिफ्ट नहर—गजनेर लिफ्ट (वर्तमान नाम-पन्नालाल बारुपाल लिफ्ट) से नागौर को पेयजल की आपूर्ति होती है।
कृषि विशेष-
1. सर्वाधिक क्षेत्रफल वाली फसल- अलसी, मुंग व तारामीरा2. सर्वाधिक उत्पादन वाली फसल- अलसी, मुंग, तारामीरा व आंवला
नागौर जिले के प्रमुख पशु मेले
1. रामदेव पशुमेला- फरवरी2. बलदेव पशुमेला- अप्रेल
3. जसवन्त जी व वीर तेजाजी पशु मेला- अगस्त माह में
खनिज- चुना पत्थर व चीनी मृतिका
नागौर जिले के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल →
नागौर का किला→ नागौर के किले के उप नाम → नाग किला या नगाणा। इस दुर्ग का निर्माण सोमेश्वर के सामन्त कैमास (के मास) ने विक्रम संवत् 1211 में करवाया।
नागौर किले की विशेषता है कि इस किले के बाहर से चलाये गये तोपों के गोले किले के महलों को क्षति पहुँचाये बिना ही उपर से निकल जाते हैं। नागौर के किले में कुल 28 बुर्ज है। यहाँ पर शुक्र तालाब, सुन्दर फव्वारा एवं अकबरी मस्जिद का निर्माण अकबर ने करवाया। इंग्लैण्ड के प्रिन्स चार्ल्स इस दुर्ग का अवलोकन कर चुके हैं। इस दुर्ग के बादल महल व शीशमहल भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। अमरसिंह की शौर्य गाथाएँ इसी दुर्ग से जुड़ी है। 2007 में साफ-सफाई के लिए यूनेस्को ने इस किले को ”अवार्ड ऑफ एक्सीलैन्स” पुरस्कार से सम्मानित किया था।
कुचामन का किला→उपनाम—जागीरी किलों का सिरमौर तथा अणखला किला। इस गिरी दुर्ग का निर्माण वनखण्डी महात्मा के आशीर्वाद से मेड़तिया शासक ‘झालमसिंह‘ ने करवाया। इस दुर्ग के बारे में प्रसिद्ध कथन—”ऐसा किला राणी जाये के पास भले ही हो ठुकराणी जाये के पास नहीं।”
खींवसर का किला—इस किले में औरंगजेब ठहरा था वर्तमान में यह किला एक हेरिटेज होटल है।
मालकोट का किला—मेड़ता, निर्माता-मालदेव।
नागौर के प्रसिद्ध मन्दिर →
कैवाय माता—किनसरिया, परबतसर। किनसरिया का प्राचीन नाम सिणहडिये था। कैवाय माता दहिया राजवंश की कुलदेवी है। इसकी मूर्ति अजीत सिंह ने स्थापित करवाई।
दधिमति माता—दधिमति माता का मंदिर मांगलोद, जायल (नागौर) में स्थित है। यह माता दाधीच ब्राह्मणों की कुल देवी है। इसकी पूजा नवरात्रों में की जाती है। मांगलोद के आस-पास के क्षेत्र को पुराणों में कुशा क्षेत्र कहा गया है। इस माता के मन्दिर में राम के वनवास से लेकर रावण के वध तक का चित्रण है।
भंवाल माता—नागौर, इस माता के मन्दिर में बकरे की बलि दी जाती है।
तेजाजी—नागवंशीय जाट, पिता-ताहड़, माता-राजकुंवर, पत्नी-पैमलदे, तेजाजी को साँप ने सैन्दरिया (ब्यावर, अजमेर) में डसा उनकी मृत्यु सुरसुरा (किशनगढ़, अजमेर) में हुई। मृत्यु का समाचार घोड़ी सिणगारी/लीलण ने पहुंचाया। तेजाजी की मूर्ति सुरसुरा में थी जिसको परबतसर का हाकिम परबतसर लाया था।
तेजाजी के प्रमुख स्थल—परबतसर (नागौर) मेला-भाद्रपद शुक्ल – दशमी को लगता है। यह मेला आय की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला है। इस मेले में कृषि के औजारों का सर्वाधिक क्रय-विक्रय होता है।
बलदेव पशु मेला—मेड़ता, चैत्र शुक्ल एकम् से पूर्णिमा,
रामदेव पशु मेला—मानासर, माघु शक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक।
हरिराम बाबा—झोरड़ा गाँव (नागौर) हरिराम बाबा सर्पदंश के इलाज हेतु प्रसिद्ध है। मंदिर में मूर्ति के स्थान पर साँप की बाँबी है।
वीर कल्लाजी—कल्लाजी का जन्म—सामियाणा (मेड़ता, नागौर) में हुआ। इनकी कुलदेवी नागणेची माता थी। कल्लाजी को ”शेषनाग का अवतार” माना जाता है कल्लाजी ने 23 फरवरी, 1568 को अपने चाचा जयमल को कन्धों पर बिठाकर अकबर के साथ युद्ध किया। इन्हें 4 हाथों व 2 सिर के लोकदेवता कहते हैं। कल्लाजी की छतरी चित्तौड़ दुर्ग के भैरव पोल में है। इनकी मुख्य पीठ—रनेला (सिरोही), प्रमुख तीथ स्थल—सामलिया (डूंगरपुर)।
मीरां बाई—मीरा बाई जन्म का 1498 ई. कुड़की गाँव (पाली) में हुआ था। मीरांबाई के पिता रतन सिंह बाजोली, मेड़ता के जागीरदार थे। अत: मीरांबाई का लालन-पालन मेड़ता में हुआ। मीरांबाई के पति महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज थे, जिनकी मृत्यु खातोली के युद्ध (1517) में हुई। मीरांबाई को विक्रमादित्य ने जहर का प्याला पिलाया, जिसको अमृत समझकर मीरां बाई ने पी लिया। मीरा बाई ने अपना जीवन का अन्तिम समय डाकोर (द्वारिका, गुजरात) में गुजारा।
चारभुजा मंदिर—मेड़ता में, मीरा संग्रहालय—मेड़ता (नागौर)
जाम्भोजी—इनका जन्म 1451 ई. पीपासर (नागौर) में हुआ।
नवल सम्प्रदाय—संस्थापक-नवलदासजी (हस्सालाव-नागौर), प्रधान पीठ—जोधपुर।
निरंजनी सम्प्रदाय—संस्थापक-हरिदास जी। इनका जन्म कापड़ौद (नागौर) में हुआ। हरिदास जी को ”कलयुग का वाल्मीकि” कहते हैं।
प्रधान पीठ—गाढ़ा (डीडवाना-नागौर) मेला फाल्गुन शुक्ल एकम् से द्वादशी।
रामस्नेही सम्प्रदाय रेण शाखा—संस्थापक दरियावजी, रेण को दरियापंथ भी कहते हैं।
संत हम्मी-उद्दीन—इनकी दरगाह नागौर (तारकीन की दरगाह) में है। यहाँ राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा उर्स लगता है। इन्हें राजस्थान का दूसरा ख्वाजा कहते हैं। इनके उपनाम—सन्यासियों का सुल्तान। इनकी मजार-गिनाणी तालाब के पास है।
गुसाई मंदिर—जुंजाला (नागौर)
जसनगर का शिव मंदिर—जसनगर (नागौर)
चतुरदास जी का मंदिर—बुटाटी गाँव (मेड़ता, नागौर) चतुरदास जी महाराज लकवे के निदान हेतु प्रसिद्ध है।
नागौर के मारोठ में जीण माता का मन्दिर है।
अमर सिंह की छतरी—नागौर में झड़ा (बड़ा) तालाब के समीप 16 कलात्मक खम्भों पर स्थित है।
लाछां गुजरी की छतरी—नागौर-तेजाजी ने लाछां की गायों को छुड़ाने के लिए (मेर) सिरोही के मीणाओं से मडांवरिया नामक स्थान पर युद्ध किया। लाछां गुजरी, तेजाजी की पत्नी पेमलदे की सहेली थी।
चौधरी लिखमाराम—राजस्थान के प्रथम जिला प्रमुख।
हवलदार शम्भुदयाल सिंह—प्रथम अशोक चक्र विजेता।
बनवारी लाल जोशी—छोटी खाटू (नागौर), U.P. व उत्तराखण्ड के पूर्व राज्यपाल।
नागौर जिले के अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न/तथ्य
भारत में पंचायतीराज व्यवस्था की शुरुआत 2 अक्टूबर 1959 को जवाहर लाल नेहरु ने नागौर जिले के मेड़ता के बगदरी गाँव से की। इसी समय राजस्थान के साथ ही आन्ध्रपदेश में भी पंचायतीराज व्यवस्था का प्रारम्भ हुआ था।देश की पहली रेल बस सेवा “इंजीरा”12 अक्टूबर, 1994 ईस्वी को मेड़ता रोड से मेड़ता सिटी के मध्य नागौर जिले में शुरू हुई थी।
राजस्थान में सर्वाधिक पशु मेले—नागौर में आयोजित होते है
विश्नाई सम्प्रदाय के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल—रोटू (नागौर) में है।
कानाती मस्जिद का लेख—(1641ई.) नागौर—इसके अनुसार अनेक चौहान गौरी के काल में मुसलमान बन गये।
अमरपुर का लेख, बाकलिया का लेख—नागौर से सम्बंधित है
शाह जामा मस्जिद नागौर जिले में है। जामी मस्जिद का लेख—मेड़ता (नागौर) से सम्बंधित है
मतीरे की राड़’—1644 ई. में, नागौर के शासक अमरसिंह व बीकानेर शासक कर्ण सिंह के मध्य हुई। जिसमें अमरसिंह विजयी हुआ।
गिंगोली (परबतसर) का युद्ध—यहाँ पर 1807 में जयपुर नरेश जगत सिंह व जोधपुर के मानसिंह राठौड़ के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध में जयपुर नरेश जगतसिंह विजयी रहा।
डाबड़ा काण्ड—13 मार्च, 1947 को हुआ, जिसमें चुन्नी लाल शर्मा, रुघाराम चौधरी, रामाराम चौधरी शहीद हो गये।
न्यूनतम अनुसूचित जनजाति प्रतिशत वाला जिला-नागौर है।
गोगेलाव कन्जर्वेशन रिजर्व—नागौर में है (स्थापना—09 मार्च 2012)
रोटू कन्जर्वेशन रिजर्व—नागौर, स्थापना 29 मई 2012
राजस्थान में जीरा मण्डी—मेड़ता (नागौर) में है।
गीर व नागौरी गाय का प्रजनन केन्द्र—नागौर में है
बादावास नागौर के,नागौरी बैल कृषि कार्यो हेतु प्रसिद्ध है।
नागौर जिले के ‘वरुण गाँव’ की बकरियाँ प्रसिद्ध है।
रैंवत की पहाड़ी-डेगाना, भारत का प्रमुख टंगस्टन उत्पादन क्षेत्र है।
नागौर के भदवासी, गोठ मांगलोद, मांगलू जिप्सम उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
राजस्थान में सबसे अच्छी किस्म का संगमरमर सफेद संगमरमर—मकराना (नागौर) में मिलता है, जिससे आगरा का ताजमहल व कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल बना हुआ है।
खींवसर (नागौर) में राज्य का दूसरा परमाणु बिजलीघर बनाया जा रहा है।
राजस्थान का प्रथम सफेद सीमेंट का कारखाना गोटन (नागौर) में है ।यहाँ राज्य की प्रथम सीमेंट फैक्ट्री (जे.के. व्हाइट सीमेंट) 1984 में स्थापित की गई।
जुलाई 2010 को खींवसर नागौर में निजी क्षेत्र की पहली सबसे बड़ी ‘सौर ऊर्जा परियोजना ‘रिलायंस इण्डस्ट्रीज’ द्वारा स्थापित की गई।
जैन विश्वभारती विद्यापीठ—लाडनूँ (नागौर) स्थापना—आचार्य तुलसी की प्रेरणा से 1971 में। 20 मार्च, 1991 में इसे डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया।
कुचामन(नागौर)एमरी स्टोन की चक्कियों के लिए प्रसिद्ध है।
मीरा संग्रहालय—मेड़ता (नागौर)में है
खुशबू वाली मेथी की मंडी (ताऊसर, नागौर में) है।
देश व राजस्थान में लिग्नाइट पर आधारित प्रथम भूमिगत विद्युत संयंत्र मेड़ता सिटी (नागौर) में है।
राजस्थान राज्य का मध्य का जिला नागौर जिला है।
लोहारपुरा (नागौर) में लोहे के हस्त औजार बनते हैं।
अकबर के नवरत्न कहे जाने वाली दरबारियों में से बीरबल, अबुल फजल तथा फैजी नागौर जिले से संबंधित थे।
कुचामन (नागौर) में मारवाड़ राज्य की टकसाल थी, जिसमें ढले हुए सिक्के कुचामनी सिक्के कहलाते थे।
नागौर जिले के गांव टांकला की दरिया एवं बडू की जूतियां प्रसिद्ध है।
राजस्थान का पहला आदर्श लवण पार्क नावा (नागौर) में स्थित है।
राजस्थान में सर्वाधिक खारे पानी की झीले नागौर जिले में स्थित है।
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