सवाई माधोपुर जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)
Swai Madhopur District GK in Hindi / Swai Madhopur Jila Darshan
परिचय-
इसकी स्थापना जयपुर नरेश माधोसिंह प्रथम द्वारा की गई।
यहां के रणथम्भौर के दुर्ग में स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर में श्रद्धालु अपने सभी मंगल कार्यो के आमन्त्रण पत्र सबसे पहले भेजते है। यह विशेष आस्था का केन्द्र बन चुका है।
सवाई माधोपुर जिले का कुल क्षेत्रफल = 10,527 किमी²
सवाई माधोपुर जिले की जनसंख्या (2011) = 13,38,114
सवाई माधोपुर जिले का संभागीय मुख्यालय = भरतपुर
इतिहास-
इस शहर की स्थापना सवाई माधोसिंह प्रथम ने 19 जनवरी 1763 में की थी, जो जयपुर के महाराजा थे।
18वीं शताब्दी में महाराजा सवाई माधोसिंह द्वारा इस शहर की स्थापना करने के बाद उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम ‘सवाई माधोपुर’ पड़ा।
भौगोलिक स्थिति-
सवाई माधोपुर जिले में निम्न तहसीलें हैं- गंगापुर सिटी, सवाई माधोपुर, बौली, बामनवास और खंडार.
सवाई माधोपुर राजस्थान के प्रमुख शहरों में से एक है। यह शहर ‘रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान’ के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
यह स्थान केवल राष्ट्रीय उद्यान के लिए ही नहीं, बल्कि अपने मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार सवाई माधोपुर जिले की जनसंख्या के आंकड़ें निम्नानुसार है —
कुल जनसंख्या—13,35,557
पुरुष—7,04,031; स्त्री—6,31,520
दशकीय वृद्धि दर—19.6%; लिंगानुपात—897
जनसंख्या घनत्व—297; साक्षरता दर—65.4%
पुरुष साक्षरता—81.5%; महिला साक्षरता—47.5%
सवाई माधोपुर जिले में कुल पशुधन – 8,03,502
सवाई माधोपुर जिले में कुल पशु घनत्व – 179
सवाई माधोपुर का ऐतिहासिक विवरण —
जयपुर के कच्छवाहा शासक माधोसिंह प्रथम ने 1763 ई. में सवाईमाधोपुर की स्थापना की। सवाई माधोपुर 3 जून, 2005 तक कोटा संभाग में था तथा 4 जून 2005 को गठित नवीन संभाग भरतपुर में सवाई माधोपुर को शामिल किया गया।
राजस्थान के पूर्व में स्थित सवाई माधोपुर जिला अपनी नैसर्गिक सुन्दरता से देश-विदेश के सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र है। यहां स्थित रणथम्भौर अभयारण्य (बाघ परियोजना) का स्थान विश्व के पर्यटन मानचित्र पर है। जिले में ही देवताओं में प्रथम पूज्य श्री गणेशजी का ऐतिहासिक त्रिनेत्र गणेश मन्दिर है। ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व का प्रसिद्ध रणथम्भोर का अभेद्य दुर्ग है। सवाई माधोपुर में राव हम्मीर जैसे देशभक्त एवं हठी राजा हुये, जो शरणागत की रक्षा एवं यहां की आन-बान एवं शान के लिये लड़ते हुये अपने प्राणों की आहूति दी थी। यह वही स्थान है जहां की रानियों ने शान के साथ जौहर कर प्राण न्यौछावर किये थे।
सवाई माधोपुर की नदियाँ—
सवाई जिले से किसी भी प्रमुख नदी का उद्गम नहीं होता है। परन्तु यहां बहने वाले नदियों में चम्बल, बनास, मोरेल तथा सीप प्रमुख है।
रामेश्वरम घाट—चम्बल, बनास व सीप नदियों का त्रिवेणी संगम स्थल है। मीणाओं का प्रयागराज यही है।
सवाई माधोपुर के जलाशय —
मोरेल बाँध—मोरेल नदी पर मिट्टी का बाँध।
सवाई माधोपुर में चम्बल नदी के जल को 124 मीटर ऊँचा उठाने के लिए लिफ्ट लगाई गई है।
कालीसील परियोजना—कालीसील नदी पर।
पीपलदा सिंचाई परियोजना—चम्बल नदी पर, सवाई माधोपुर में है। इस परियोजना से सवाईमाधोपुर की खण्डार तहसील को पेयजल सुविधा प्राप्त होगी।
ईसरदा बाँध—बनास नदी पर। इस परियोजना से जयपुर को पेयजल सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। इस बाँध को ‘कॉपर डेम’ भी कहते हैं।
मोरासागर—सवाई माधोपुर, यह बाँध पान की खेती के लिए प्रसिद्ध है।
सवाई माधोपुर के वन्य जीव अभयारण—
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान—
स्थापना—1955, वन्य जीव अभयारण के रूप में की गई थी। वर्ष 1973-74 में यहाँ बाघ परियोजना की शुरुआत की गई। 1 नवम्बर 1980 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया। देश की सबसे कम क्षेत्रफल की बाघ परियोजना। यह अभयारण्य लगभग चार सौ वर्ग किलोमीटर में फैला-पसरा है। यहाँ का काला गरूड़ पक्षी प्रसिद्ध है। क्षेत्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय प्रस्तावित। 28 जून, 2008 को रणथम्भौर अभयारण से दो प्रसिद्ध बाघ सुल्तान व बाघिन बबली का विस्थापन सरिस्का उद्यान में किया गया।
रणथम्भौर राष्ट्रीय—उद्यान में बाघों की गणना के लिए सुनिता नारायण की अध्यक्षता में ”टास्क फोर्स” का गठन किया एवम् इसके लिए पगमार्क विधि, डी.एन.ए. तकनीक एवम् केमरा ट्रैप तकनीक का प्रयोग किया है।
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में 1960 में इंग्लैण्ड की महारानी ऐलिजा बेथ, 1985 में राजीव गाँधी, 2000 में बिल क्लिंटन (अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति) 2005, में मनमोहन सिंह ने भ्रमण किया।इस उद्यान में बाघिन मछली थी जो सम्पूर्ण भारत में सबसे वृद्ध होकर देहान्त हुआ था। मछली को झालरा वाली बाघिन के नाम से भी जाना जाता था। इस पर राज्य सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया था। इसके चहरे पर बने मछली जैसे निशान के कारण ही इस का नाम मछली रखा गया था. साथ ही इस बाघिन को टाइगर क्विन, लेडी ऑफ लेक व क्रोक्रोडाईल किलर के नाम से भी जाना जाता था। मछली नामक यह बाघिन रणथम्भौर आने वाले पर्यटकों में सबसे अधिक चर्चित थी। रणथम्भौर की इस महारानी का रणथम्भौर व सरिस्का को आबाद करने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा था।
सवाई माधोपुर के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल—
रणथम्भौर दुर्ग—इसके उपनाम-चित्तौड़ दुर्ग का छोटा भाई, दुर्गाधिराज तथा बख्तर बंद। यह दुर्ग 7 पहाडिय़ों के बीच अण्डाकार आकृति में है।
अबुल फजल का कथन—”और सभी दुर्ग नंगे है केवल यही दुर्ग बख्तयार बंद हैं।” इसका निर्माण 8वीं सदी में ठाकुर रति देव ने करवाया।
जलालुद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग पर दो बार आक्रमण किया लेकिन असफल रहा और निराश जलालुद्दीन ने कहा ”मैं ऐसे 10 दुर्गों को मुसलमान के एक बाल बराबर भी नहीं समझता हूँ।”
रणथम्भौर दुर्ग का साका—1301 ई. में। अलाउद्दीन खिलजी व हम्मीर के मध्य युद्ध हुआ जिसमें हम्मीर के सेनापति रणमल व रतिपाल ने हम्मीर के साथ विश्वासघात किया और दुर्ग के गुप्त द्वार खिलजी को बता दिये। हम्मीर ने केसरिया किया एवम् उसकी रानी रंग देवी ने जोहर किया। कहा जाता है कि हम्मीर की पुत्री देवलदे ने एक दिन पहले पहले ही पद्मला तालाब में कूदकर जलजौहर किया। यह राजस्थान का एकमात्र जलजौहर था।
यह राजस्थान का प्रथम जौहर व साका कहलाता है। अमीर खुसरो ने कहा कि ”आज कुफ्र का गढ़ इस्लाम का घर हो गया।”
रणथम्भोर दुर्ग के दर्शनीय स्थल—
इस दुर्ग का दरवाजा, मुख्य प्रवेश द्वार-नौलखा दरवाजा है, जिसका जीर्णोद्धार जयपुर के जगतसिंह ने करवाया।
जोगीमहल—1961 में वन विभाग ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। वर्तमान में यह पर्यटकों का विश्रामगृह है।
सुपारी महल—इस महल में मन्दिर, मस्जिद व गिरीजाघर तीनों एक साथ स्थित है, जो भावात्मक एकता का अनूठा उदाहरण है।
जैतसिंह की छतरी या न्याय की छतरी—हम्मीर ने अपने पिता की याद में लाल पत्थरों से 32 खम्भों की छतरी बनवाई। हम्मीर इस छतरी में बैठकर न्याय करता था इसलिए इसे न्याय की छतरी कहते हैं। इस छतरी में भूरे पत्थरों का शिवलिंग बना हुआ है।
जौरा-भौंरा महल, रणिहाड़ तालाब, रणत्या डूंगरी, पदमला तालाब, हम्मीर महल, हम्मीर कचहरी, पीरसदरुद्दीन की दरगाह, लक्ष्मीनारायण मंदिर आदि सभी दर्शनीय स्थल रणथम्भौर दुर्ग में हैं।
कुक्काराज की घाटी, रणथम्भौर दुर्ग (सवाईमाधोपुर) में तथा कुत्ते की छतरी भी यहीं है।
खण्डार का किला—इसका उपनाम रणथम्भौर का सहायक दुर्ग या रणथम्भौर का पृष्ठ रक्षक। इस दुर्ग में प्राचीन जैन मन्दिर हैं, जिसमें महावीर स्वामी की ‘पद्मासन मुद्रा’ में तथा पार्श्वनाथ की आद्मकद मूर्ति है। अष्टधातु शारदा तोप इसी दुर्ग में है।
झाईन दुर्ग—सवाई माधोपुर में स्थित यह दुर्ग भी रणथम्भौर का सहायक दुर्ग या रणथम्भौर दुर्ग की कुंजी कहलाता है। अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर दुर्ग से पहले इसी दुर्ग पर विजय हासिल की थी।
त्रिनेत्र गणेश मंदिर—रणथम्भौर (सवाईमाधोपुर)। इसे रणत भंवर गजानन्द तथा लेटे हुए गणेश जी भी कहते हैं। यहाँ पर देश का सबसे प्राचीन गणेश मेला भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को भरता है। यहाँ पर गणेश जी की प्रतिमा में गर्दन, हाथ व शरीर नहीं है। केवल मुख की पूजा होती है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा गणेश मंदिर है जहाँ केवल मुख की पूजा होती है। विवाह के अवसर पर प्रथम निमन्त्रण गणेश को भेजने की परम्परा है।
घुश्मेश्वर महादेव का मन्दिर—सिवाड़ (सवाईमाधोपुर) में स्थित है। यह देश के 12 ज्योर्तिलिंगों में विख्यात है। इस मन्दिर में शिवलिंग सदैव जल में डूबा हुआ रहता है, जिसके कारण भक्तों को दर्शन शीशे के माध्यम से होते हैं। यहाँ के पर्वत कैलाश पर्वत का अनुभव कराते हैं।
अभनेश्वर शिव मन्दिर—यह रणथम्भौर में स्थित है।
चमत्कार जैन मन्दिर—चमत्कार जी का मंदिर आलनपुर में है। यहाँ पर ऋषभदेव की प्रतिमा है। इस स्थान पर प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा को मेला भरता है।
रामेश्वरम घाट—चंबल, बनास व सीप नदियों के संगम स्थल पर चतुर्भुज नाथ का प्राचीन मंदिर है, जहाँ कार्तिक पूर्णिमा को मेला भरता है।
चौथ का बरवाड़ा—चौथ का बरवाड़ा नामक डूंगरी पर चौथ माता का मंदिर है, जहाँ पर माघ कृष्ण चतुर्थी से अष्टमी तक विशाल मेला भरता है। चौथ माता कंजरों की आराध्य देवी है।
काला-गौरा भैरू मंदिर —यह मंदिर नौ मंजिला है। तांत्रिक विद्या के लिए यह मंदिर प्रसिद्ध है।
सवाई माधोपुर जिले के महत्पूर्ण प्रश्न-
सवाईमाधोपुर बाघो की गिरती संख्या के लिए भी चर्चित स्थल है।
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All the best