टोंक जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)
Tonk District GK in Hindi / Tonk Jila Darshan
टोंक जिले का समान्य परिचय–
टोंक जिले का कुल क्षेत्रफल – 7,194 वर्ग किलोमीटर
टोंक जिले की मानचित्र स्थिति – 25°41′ से 26°24′ उत्तरी अक्षांश तथा 75°19′ से 76°16′ पूर्वी देशान्तर है।
टोंक जिले में कुल वनक्षेत्र – 331.56 वर्ग किलोमीटर
टोंक जिले का आकार पतंगाकार है। राजस्थान के आकार के समान आकार वाला जिला भी टोंक है।
राजस्थान में टोंक को नवाबों की नगरी के नाम से जाना जाता है।
टोंक जिले के उपनाम –
उपनाम - नवाबों की नगरी, राजस्थान का लखनऊ
टोंक जिला बेराठ प्रदेश का हिस्सा है।
1817 ई ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि के बाद यशवंत होलकर से अमीर खां पिंडारी को यह रियासत मिली।
टोंक रियासत के संस्थापक अमीर खां पिंडारी है। यह राजस्थान की एकमात्र मुस्लिम रियासत थी।
चौरासी - टोंक में बोली जाने वाली भाषा
टोंक जिले में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 4 है, जो निम्न है—
1. मालपुरा, 2. निवाई, 3. टोंक तथा 4. देवली उनियारा
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार टोंक जिले की जनसंख्या के आंकड़ें निम्नानुसार है—
कुल जनसंख्या—14,21,326
पुरुष—7,28,136; स्त्री—6,93,190
दशकीय वृद्धि दर—17.3%; लिंगानुपात—952
जनसंख्या घनत्व—198; साक्षरता दर—61.6%
पुरुष साक्षरता—77.1%; महिला साक्षरता—45.4%
टोंक जिले का ऐतिहासिक विवरण —
राजस्थान की राजधानी जयपुर की दक्षिण दिशा में 95 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती प्रसिद्ध बनास नदी के दक्षिण की ओर तथा जयपुर-कोटा राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे टोंक जिला मुख्यालय स्थित है।
टोंक जिले के मालपुरा, लावां, उनियारा व टोडारायसिंह आदि कई स्थान विशेष महत्त्व रखते हैं। जिले का कोई क्रमबद्ध इतिहास नहीं है। यत्र-तत्र बिखरे प्राचीन शिलालेख, ध्वसांवशेष, सिक्कों आदि से ही प्राचीन इतिहास के तथ्य उजागर होते है।
महाभारत काल में यह क्षेत्र संवादलक्ष था। मौर्य काल में यह मौर्य शासकों के अधीन था, जो बाद में मालव गणराज्य में मिला दिया गया, जिसका विवरण उनियारा ठिकाने के प्राचीन खण्डहरों से मिले सिक्कों ज्ञात होता है।
मध्यकाल में मुगल साम्राज्य के सम्राट अकबर के शासनकाल में जयपुर के राजा मानसिंह ने टारी और टोंकरा नामक जिलों को अपने अधिकार में लिया और टोंकरा के बारह गांव के भोला नामक ब्राह्मण को सन् 1643 में भूप के रूप में स्वीकार किया। उसके बाद में बारह ग्राम समूहों को एक सूत्र में बांध कर उसका नामकरण ‘टोंक’ किया।
राजपूत शासनकाल में टोंक जिले का बड़ा भाग कई खण्डों में चावंडा, सोलंकी, कछवाह, सिसोदिया एवं चौहान आदि राजपूतों के अधीन रहा और कई स्थानों पर उनकी राजधानियां रही। बाद में जयपुर, होल्कर और सिंधिया का इस क्षेत्र के बड़े भाग पर शासन रहा।
सन् 1806 में बनास नदी के उत्तरी भाग पर बलवन्त राव होल्कर से पिंडारियों के सरदार अमीर खां ने कब्जा कर लिया जिसे बाद में ब्रिटिश सैनिकों ने जीत लिया। सन् 1817 की संधि के अनुसार यह क्षेत्र अमीर खां को लोटा दिया। टोंक रियासत की स्थापना अमीर खाँ पिण्डारी ने 1817 ई. में की। राज्य की एकमात्र मुस्लिम रियासत टोंक थी। राजस्थान एकीकरण के द्वितीय चरण में टोंक को शामिल किया गया।
टोंक जिले ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल—
पचेवर का किला—यह किला मालपुरा, टोंक में स्थित है। चार बुर्जों के कारण इस दुर्ग को चौबुर्जा कहा जाता है। इस दुर्ग की यह विशेषता है कि दुश्मनों द्वारा चलाये गये तोपों के गोले या तो इस दुर्ग के उपर से निकल जाते हैं या इस दुर्ग की दीवारों में धंस जाते हैं। इस दुर्ग में ‘पाड़ा चक्की’ स्थित है।
असीरगढ़ का किला-इसके उपनाम-भूमगढ़ तथा अमीरगढ़ है। इस दुर्ग में 24 जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ मिली थी।
कंकोड़ का किला—इस दुर्ग के पास गुमानपुरा गाँव में ‘हाथी भाटा’ स्थित है।
जलदेवी—बावड़ी गाँव, टोडारायसिंह (टोंक)।
देवधाम जोधपुरिया—देवनारायण जी का दूसरा प्रमुख मन्दिर निवाई (टोंक) में है। यहाँ पर भाद्रपद शुक्ल अष्टमी व माघ शुक्ल सप्तमी को मेला भरता है।
श्री कल्याण जी का मन्दिर डिग्गी—इनको श्रीजी महाराज के नाम से भी जाना जाता है। इनका मंदिर मालपुरा (टोंक) में स्थित है। इसे ‘कल्हपीर’ तथा ‘कुष्ठ रोग’ के निवारक के नाम से जाना जाता है। यहाँ भाद्रपद शुक्ल एकादशी को विशाल मेला भरता है।
टोंक जिले में बहने वाली प्रमुख नदियाँ—
बनास, डाई, खारी तथा मांशी है।
बनास, डाई व खारी नदी का त्रिवेणी संगम राजमहल (टोंक) में होता है।
टोंक जिले के प्रमुख जलाशय —
बीसलपुर बाँध परियोजना—यह पेयजल परियोजना है। इसका निर्माण 1988-89 में शुरु हुआ तथा 2000 ई. में इसका कार्य पूर्ण हुआ।
बीसलपुर बाँध टोंक जिले की देवली तहसील के पास राजमहल में बनास, डाई व खारी नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित है। यह राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है। बीसलपुर बाँध से पेयजल की आपूर्ति अजमेर, टोंक व जयपुर को होती है। यह बाँध 574 मी. लम्बा है। इसे नाबार्ड की आर्थिक सहायता से बनाया गया।
टोरड़ी सागर बाँध—इसे सिंचाई विभाग द्वारा 1887 ई. में बनाया गया। यह बाँध सोहदरा नदी पर है। टोरड़ी सागर बाँध की सभी मोरिया खोलने पर यह बाँध पूरी तरह खाली हो जाता है।
बीसलपुर कन्जर्वेशन रिजर्व—टोंक, इसकी स्थापना 13 अक्टूबर 2010 को की गई।
टोंक जिले के अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य—
चारबेत लोकनाट्य—राजस्थान में चारबेत का एकमात्र केन्द्र टोंक है। इसका वाद्य यंत्र डफ है।
चारबेत चार प्रकार का होता है—भक्ति, शृंगार, रकी बखानी व गम्माज। चारबेत का प्रवर्तक अब्दुल करीम खां को माना जाता है।
रैढ़—इसे प्राचीन भारत का टाटा नगर कहते हैं। यहाँ से एशिया का सबसे बड़ा सिक्कों का भण्डार मिला है। यहाँ से मातृदेवी व गजमुखी यक्ष की मूर्तियां मिली है।
राज्य में चमड़े की रंगाई का एकमात्र कारखाना टोंक में है।
कर्पूर चन्द कुलिश—राजस्थान पत्रिका के सम्पादक कुलिश का जन्म टोंक जिले के मालपुरा तहसील के सोडा ग्राम में हुआ।
दामोदरलाल व्यास राजस्थान के लौह पुरुष व्यास का जन्म टोंक जिले की मालपुरा में हुआ।
वनस्थली विद्यापीठ—वनस्थली विद्यापीठ की स्थापना 1935 में हीरालाल शास्त्री एवम् उनकी पत्नी रतन देवी ने की। देश की पहली फोन इन सेवा एफ.एम. रेडियो वनस्थली के नाम से 30 जुलाई, 2007 को शुरू हुई। शांति बाई शिक्षा संस्थान (जीवन कुटीर)—इसकी स्थापना टोंक जिले में निवाई के समीप की । इसे 1943 में वनस्थली विद्यापीठ का नाम दिया गया। वर्तमान में यह डीम्ड विश्वविद्यालय पूर्णत : महिला शिक्षा पर आधारित है।
घण्टाघर—टोंक के पाँचवें नवाब सहादत अली खान ने 1937 में घण्टाघर का निर्माण करवाया।
राजमहल—यह महल बनास, डाई व खारी नदियों के संगम पर स्थित है।
स्मार्ट कार्ड योजना—टोंक जिले में पायलट आधार पर शुरु।
ऑल इंडिया मिल्ली कौंसिल का सम्मेलन मालपुरा में सम्पन्न।
मुबारक महल में बकरा ईद (ईद-उल जुहा) के अवसर पर ऊँट की बलि दी जाती थी। टोंक जिले के अंजुमन सोसाइटी ऑफ खानकाह-ए-अमीरिया ने 6 अक्टूबर 2014 को ईद-उल-जुहा त्यौहार के अवसर पर ऊँट की बलि की अपनी 150 वर्ष पुरानी परम्परा को समाप्त करने का फैसला किया। यह निर्णय ऊँट को पालतु पशु की श्रेणी में राज्यपशु का दर्जा देने के उपरान्त लिया गया।
तेलियों का मंदिर—टोंक में है।
नवाब इब्राहीम अली खाँ का शासन टोंक का स्वर्ण युग कहलाता है।
अरबी फारसी शोध संस्थान— 4 दिसम्बर 1978 को टोंक में स्थापित हो गई जिसे कसरेइल्म तथा साहित्य सेवियों की तीर्थस्थली भी कहा जाता है।मालपुरा में श्वेताम्बरों की दादाबाड़ी में दादागुरु के पद् चिह्न है। ये यहाँ कुशालपीर के नाम से विख्यात हैं।
गोयल आयोग—13 जून, 2005 को टोंक जिले के सोहेला कस्बे में बीसलपुर बाँध से पानी की मांग करते हुए लोगों पर पुलिस द्वारा गोलियां चलाई गई जिसमें 5 व्यक्ति मारे गए इसकी जाँच हेतु अनूप चन्द गोयल की अध्यक्षता में यह आयोग गठित किया गया।
राजस्थान में मिर्च की मण्डी टोंक में लगती है।
केन्द्रीय भेड़ एवं बकरी अनुसंधान एवम् प्रजनन केन्द्र-अविकानगर टोंक में है। (स्थापना-1962 में)
मालपुरी भेड़ मालपुरा (टोंक) की प्रसिद्ध है। इसकी ऊन का रेशा सबसे छोटा होता है। इसलिए यह ऊन गलीचे हेतु प्रसिद्ध है।
राजस्थान स्टेट टेनरीज लिमिटेड—टोंक-1971 में स्थापित। इस मिल से लैदर फोम, सोल लैदर आदि का निर्माण किया जाता है।
‘नमदे’ टोंक के प्रसिद्ध हैं।
संत पीपा की छतरी टोडा, टोंक में है।
सुनहरी कोठी—प्राचीन काल में यह शीश महल के नाम से जानी जाती थी।
राज्य में तामड़ा का सर्वाधिक उत्पादन टोंक में राजमहल, कुशालपुरा क्षेत्र से होता है।
बिचपुरिया स्तम्भ लेख—उणियारा,टोंक (224 ई.)। इस लेख से यज्ञानुष्ठान का पता चलता है।
माण्डव ऋषि की तपोस्थली—यह टोंक जिले के उणियारा में स्थित है। यहाँ पर तालाब है। यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा से 15 दिवसीय पशु मेला लगता है। इसे मिनी पुष्कर के नाम से भी जाना जाता है।
टोंक जिले के महत्पूर्ण प्रश्न–
टोंक नगर 1817 ईस्वी में किसके द्वारा बसाया गया था – नवाब अमीर खा
टोंक जिले की आकृति – पतंगाकार
राजस्थान की एकमात्र मुस्लिम रियासत – टोंक
नगर सभय्ता – टोंक में
टोंक जिले में कोई वन्य जीव अभ्यारण्य नहीं है
टोंक में स्थित अरबी फ़ारसी शोध संस्थान को किस नाम से जाना जाता है – कसरे- इलम
टोंक के किस नवाब का शासन काल स्वर्ण काल माना जाता है – इब्राहिम अली खा
टोंक के धन्ना जाट ने कहा जाकर रामानंद को अपना गुरु बनाया – वाराणसी
टोंक जिले में कोनसी लोक गायन शैली प्रसिद्ध है – चार बेत शैली
टोंक में स्थित सुनहरी कोठी का निर्माण किस नवाब ने करवाया था – नवाब वजीरूदोला
बीसलपुर परियोजना किस नदी पर है – बनास नदी पर
केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसन्धान संस्थान कहा है – अविकानगर , टोंक में
एशिया में सिक्को का सबसे बड़ा भंडार कहा से प्राप्त हुआ है – रैंढ़ , टोंक
वनस्थली विद्यापीठ को प्रारम्भ में किस नाम से जाना जाता था – जीवन कुटीर
डिग्गी कल्याण जी का मंदिर किस स्थान पर है – मालपुरा , टोंक में
राजस्थान पत्रिका के संस्थापक कपूरचंद कुलिश का जन्म स्थान – टोंक
राजस्थान के लौह पुरुष किसे कहा जाता है – दामोदर व्यास को
टोंक जिला किस राष्ट्रीय राजमार्ग पर पड़ता है – NH-12
टोंक रियासत को एकीकरण के कोनसे चरण में शामिल किया गया – द्वितीय चरण में
टोंक की प्रमुख नदी कोनसी है – बनास नदी
टोंक का प्रमुख खनिज कोनसा है – तामड़ा
टोंक के नवाब द्वारा अंग्रेजो के साथ सहायक सन्धि कब की गयी – 1817 में
टोंक का उपनाम क्या है – नवाबो की नगरी
प्राचीन राजस्थान का टाटा नगर किसे कहा जाता है – टोंक को
रैंढ़ किस जिले का प्राचीन नाम है – टोंक का
टोंक जिले का प्रयाग जहा बनास , डाई, खारी नदियों का त्रिवेणी संगम होता है – राजमहल , टोंक
ऐसा खनिज जिसका टोंक में सर्वाधिक उत्पादन होता है और राजस्थान का एकाधिकार भी है – गार्नेट
हाईटेक प्रिसिजन ग्लास फैक्ट्री कहा है – टोंक में
भारत में नामदा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध स्थान – श्रीनगर , टोंक
नमादो का विभिन्न रंग के टुकड़ो की सिलाई का कार्य कहलाता है – पैंच वर्क और चट्टा पटी का कार्य
टोंक का कोनसा स्थान मिनी पुष्कर कहलाता है – मांडकला
राजस्थानी यज्ञ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है – मांडकला
मांडव्य ऋषि की तपोस्थली कहां पर स्थित है- मांडकला
हाथी भाठा नामक पत्थर पर हाथी की मूर्ति किस स्थान पर है – गुमानपुरा में
भारतीय गुर्जर समाज का भारत में सबसे बड़ा पौराणिक तीर्थ कहा है – जोधपुरिया , टोंक में
जोधपुरिया , टोंक में किस लोक देवता का मंदिर है – श्री देव नारायण जी का
सिंहवाशिनी दुर्गा का प्राचीनतम अंक कहा से मिला है – नगर , टोंक से
डिग्गी किस वंश के राजपूतो का मुख्य केंद्र रहा है – खगरौत कछवाह राजपूतो का
टोंक का मालपुरा किसके उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है – खजूर
टोंक जिले का ऐसा कोनसा बांध है जिसकी सभी मोरिया खोलने पर एक बून्द भी पानी नहीं रहता – टोरडी सागर बांध
मकर सक्रांति के अवसर पर टोंक में मनाया जाने वाला विशेष उत्सव – दडा उत्सव
दडे का निर्माण किसे किया जाता है – सुतली और कपडे से
मुबारक महल कहा है – टोंक में
कसरे इलम तथा साहित्य सेवियो की तीर्थ स्थली कहा जाता है – अबुल कलम आजाद अरबी फ़ारसी शोध संस्थान को – 1978 को स्थापना
सर्वप्रथम राजकीय बस सेवा टोंक जिले में कब प्रारम्भ की गयी – 1952
धन्ना संत का जन्म किस स्थान पर हुआ – धुवन , टोंक
चारबैत शैली का प्रवर्तक कौन थे – अब्दुल करीम खान
Very nice
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