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राजस्थान समान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

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Saturday, January 23, 2021

January 23, 2021

राजस्‍थान के प्रमुख जनजाति आन्दोलन

राजस्‍थान के प्रमुख जनजाति आन्दोलन

भगत आन्दोलन-

राजस्थान में भीलों में जनजागृति स्वामी दयानन्द सरस्वती की प्रेरणा से हुई थी। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की थी। दयानन्द सरस्वती राजस्थान में तीन बार आये थे-


करौली।

उदयपुर (यहाँ पर सत्यार्थ प्रकाश ग्रन्थ की रचना की थी- खड़ी बोली में)।


जोधपुर।

स्वामी दयानन्द सरस्वती को जोधपुर में नृत्यांग्ना नन्हीं जान ने दयानन्द सरस्वती के रसोईया जगन्नाथ के माध्यम से जहर दिलवा दिया था।


वह क्षेत्र जहां पर भीलों की आबादी अधिक होती हैं वह क्षेत्र भोमट अथवा मगरा कहलाता है जो मेवाड़ राज्य के दक्षिण-पश्चिम मे स्थित क्षेत्र है। भीलों पर नियन्त्रण करने के लिए 1841 में खैरवाड़ा(उदयपुर) में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने मेवाड़ भील कौर की स्थापना की थी।


भगत आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भीलों को आर्थिक एवं सामाजिक सुधार करना था इस आन्दोलन का नेतृत्व गोविन्द गिरी ने किया था, गोविन्द गिरी का जन्म डूंगरपुर के बांसिया गाँव के बन्जारे परिवार में हुआ। गोविन्द गिरी ने 1883 में सिरोही में ’’सम्प सभा/सभ्य समाज’’ (सम्प का अर्थ होता है आपसी एकता) की स्थापना की थी, सम्प सभा का कार्य स्थल मानगढ़ धाम की पहाड़ी(बांसवाड़ा) थी।


गोविन्द गिरी ने सम्प सभा का पहला अधिवेशन सन् 1903 में मानगढ़ पहाड़ी पर आयोजित किया था तथा यहाँ हर वर्ष अश्विन शुक्ल पूर्णिमा को आयोजन होने लगा। 7 दिसम्बर, 1908 को हजारों आदिवासी भील मानगढ़ पहाड़ी पर एकत्रित होकर सभा कर रहे थे, तभी मेवाड़ भील कोर की एक सैनिक टुकडी ने आकर मशीनगनों से गोलियां चलाना शुरू कर दी।


 इसके बाद 17 नवम्बर 1913 को मानगढ़ धाम पर अंग्रेजों ने फिर से गोलियाँ चलाई थी जिसमें लगभग 1500 भील मारे गये थे। इस घटना को ’’राजस्थान का जलिया वाला बाग हत्याकाण्ड ’’ कहते हैं। इस घटना के बाद गोविन्द गिरी और पुन्जिया नामक व्यक्ति को बन्दी बनाकर अहमदाबाद जेल भेज दिया। दस साल सजा भुगतने के बाद गोविन्द गिरी को सरकारी निगरानी में रिहा किया गया तथा गुजरात के पंचमहल जिले के कम्बोई नामक स्थान पर गोविन्द गिरी ने अपना अन्तिम समय बिताया।


17 नवम्बर 2012 को मानगढ़ धाम के हत्याकाण्ड के 100 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में राज्य सरकार ने इसे शहीद स्मारक घोषित किया था। मानगढ़ में गुरू की स्मृति में प्रतिवर्ष पौष महिने में मेला का आयोजन होता है।


गोविन्दगिरीः-

गोविन्द गिरी का जन्म डूँगरपुर राज्य के बाँसिया गाँव में एक बिणजारे के घर हुआ। साधारण तरीके से गाँव के पुजारी से शिक्षा प्राप्त करके वे साधु राजगिरी के शिष्य बन गये तथा बेड़सा गाँव में धुणी रमा कर भीलों के आस-पास गाँव वालों आध्यात्मिक शिक्षा देने शुरू किया और 1818 में वे दयानन्द सरस्वती के सम्पर्क में आये और उनसे प्रेरणा लेकर आदिवासी सुधार एवं स्वदेशी आन्दोलन शुरू किया।


मेर आन्दोलन-

जनजातियों में मेर जनजाति भी मुख्य है, जिसका आजीविका चलाने का मुख्य कार्य लूटपाट करना है तथा इस जनजाति का आबाद क्षेत्र मेरवाड़ा है। जो किसी एक रियासत के अधीन न होकर अजमेर, मारवाड़, मेवाड़ के अधीन था। अंग्रेजों द्वारा मेरों को अपने नियन्त्रण में लेने के कारण मेर जनजाति ने विद्रोह कर दिया।


अजमेर के अंग्रेज सुपरिन्टेन्डेट एफ. विल्डर ने 1818 में झाक व उसके आस-पास के गाँवों के साथ एक समझौता किया। इस समझौते तहत मेरों ने कभी लूटपाट न करने की सहमति जताई लेकिन 1819 में विल्डर ने मेरवाड़ा क्षेत्र पर आक्रमण किया। इस घटना से मेर भडक गये ओर 1820 में झाक नामक स्थान पर मेरों ने पुलिस चैकियों को घेर लिया और वहाँ पर तैनात पुलिस कर्मियों की हत्या कर दी। 1822 में मेरो के दमन हेतु ’’मेरवाड़ा बटालियन’’ का गठन किया तथा इसका मुख्यालय ब्यावर में स्थापित किया।


भील विद्रोह-

मेवाड़ के महाराणा और अंग्रेजों के मध्य सहायक संधि (13 जनवरी, 1818) होने से अंग्रेजों को मेवाड़ के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का मौका मिल गया।


इसके कारण 1818 में भीलों द्वारा लिए जाने वाला रखवाली कर/चैकीदारी कर तथा बालाई/सुरक्षा कर पर नियंत्रण करने का प्रयास किया, तथा भीलों पर अनेक प्रतिबंध लगा दिये इस कारण भीलों को विद्रोह करने के लिए मजबूर किया।


राज्य में प्रथम भील विद्रोह उदयपुर राज्य में ही हुआ।


1836 में भीलों पर स्थाई नियन्त्रण के लिए अंग्रेजों की ’’मेरवाड़ा बटालियन पद्धति’’ के अनुसार ’’जोधपुर लीजन’’ नाम से एक सैनिक टुकडी का गठन किया। जिसका मुख्यालय अजमेर रखा गया, बाद में इसका मुख्यालय सिरोही के बड़गाँव नामक स्थान पर रखा गया।


एकी/भोमट आन्दोलन-

भील किसानों को भारी लाग-बाग और बेगार से मुक्त कराने के उद्देश्य से मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में भोमट भील/एकी आन्दोलन/मातृकुण्डिया आन्दोलन शुरू किया। भोमट आन्दोलन के दौरान मोतीलाल तेजावत ने मेवाड़ सरकार को ज्ञापन दिया जिसमें आदिवासी भीलों की 21 मांगो का जिक्र किया, इसको ’’मेवाड़ पुकार’’ की संज्ञा दी गई।


भीलों को एकता के सूत्र में बाँधे रखने के उद्देश्यट से मोती लाल तेजावत ने माद्रापट्टा और जलसा में भील आन्दोलन शुरू किया।


यह आन्दोलन भोमट क्षेत्र से शुरू हुआ इसलिए इसे भोमट भील आन्दोलन तथा भीलों को एकता सूत्र में बाँधने के उद्देश्यर से शुरू हुआ इसलिए इसे एकी आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।


मोतीलाल तेजावत ने 1922 में लाग-बाग एवं जागीरदारों के जुल्मों के विरोध में विजयनगर राज्य के ’’नीमड़ा’’ नामक स्थान पर सम्मेलन बुलाया, जिसका सेना द्वारा दमन किया गया सैनिकों द्वारा की गई गोलीबारी में 1200 भील मारे गये इसे नीमड़ा हत्याकाण्ड या दूसरा जलियावाला बाग हत्याकाण्ड के नाम से जाना जाता है, तथा इस मामले को निपटाने के लिए सिरोही राज्य के दीवान रमाकांत मालवीय ने महात्मा गाँधी से मदद मांगी। गाँधी जी ने मणिलाल कोठारी को सिरोही भेजा तथा मोतीलाल तेजावत के आन्दोलन को उचित ठहराया। राजस्थान सेवा संघ के प्रयासों से इस आन्दोलन की गूंज ब्रिटेन की संसद उठी। इस आन्दोलन के दौरान सिरोही में हुए रोहिड़ा हत्याकाण्ड के बाद भीलों में हाकिम व हुकुम नहीं का नारा गूंजने लगा था। तेजावत ने भीलो में जागृति लाने हेतु ’’वनवासी संघ’’ की स्थापना की। तेजावत भीलों के ’’बावजी’’ के नाम प्रसिद्ध थे, क्योंकि भील जाति के लोग इनको अपना मसीहा मानते हैं। मोती लाल तेजावत को ’’मेवाड़ का गाँधी ’’ के नाम से जाना जाता है।


मोती लाल तेजावत:-

भील आन्दोलन के प्रणेता श्री मोती लाल तेजावत का जन्म 1886 में उदयपुर राज्य के फलासिया ठिकाने के कौल्यारी गाँव के ओसवाल जैन परिवार में हुआ। मोतीलाल तेजावत के पिता का नाम नन्दलाल व माता का नाम कैसरबाई था।


इनका विवाह लहर बाई नाम की महिला से हुआ। महात्मा गाँधी के कहने पर 1929 में मोतीलाल तेजावत ने आत्मसमर्पण किया था, आत्मसमर्पण के बाद तेजावत को उदयपुर में नजरबन्द रखा था। तेजावत का निधन 5 दिसम्बर 1963 को हुआ था।


मीणा आन्दोलन-

1851 में उदयपुर रियासत के जहाजपुरा परगने के मीणाओं द्वारा ब्रिटिश शासन की सुधारवादी व्यवस्था के विरूद्ध आन्दोलन किया गया।


सुधारवादी व्यवस्था के नाम से मेवाड़ के महाराजा मीणाओं से धन वसूल करते थे, इसलिए मीणाओं ने उपद्रव किया।


अंग्रेजों की शिकायत पर मेवाड़ के महाराजा ने हाकिम मेहता रघुनाथसिंह की जगह अजीत सिंह मेहता को मीणा के विद्रोह को दबाने भेजा। उदयपुर की सेना, भील पल्टन, एकलिंग पल्टन, एजेन्ट टु जनरल, मेवाड़ का पॉलिटिकल एजेन्ट व हाड़ौती का पॉलिटिकल एजेन्ट संयुक्त रूप से सेना लेकर दिसम्बर, 1854 को जहाजपुरा पहुँचे, तथा अन्त में मीणाओं ने आत्मसमर्पण किया।


मीणा कॉपर्सः-

अंग्रेज सरकार व रियासत द्वारा भविष्य में मीणाओं द्वारा किसी आन्दोलन को देखते हुए 1855 ई. में जयपुर, अजमेर, बूँदी एवं मेवाड़ की सीमाओं पर स्थित देवली नामक स्थान पर एक सैनिक छावनी स्थापित की, तथा बाद इसका नाम देवली रेजीमेन्ट/मीणा बटालियन रखा तथा 1921 में इस सैनिक छावनी में 43वीं एरिनपुरा रेजीमेण्ट को मिलाकर इसका नाम ’’मीणा कॉपर्स’’ कर दिया।


कुछ समय के बाद सरकार ने मीणाओं को चोरी व डकैती के लिए जिम्मेदार ठहराया जाने लगा तथा उनके घरों की तलाशी व रेड डालने लगे तथा चोरी का सामान बरामद नहीं होने पर चैकीदार मीणाओं से माल की कीमत वसूल करने लगे। अपने ऊपर पड़े इस दण्ड की क्षतिपूर्ति के लिए मीणाओं ने चोरी व डकैती का ही सहारा लिया इससे अपराध की प्रवृति अधिक पनपने लगी तथा भारत सरकार ने 1924 में ’’क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट’’ लागू किया। इस कानून के अन्तर्गत जरायम पेशा मानकर मीणा परिवार के 12 वर्ष तक के बच्चों को भी नजदीकी थाने में नाम दर्ज करवाना तथा रोजाना हाजिरी देने का प्रावधान रखा गया।


’’मीणा जाति सुधार कमेटी’’ नामक संस्था जिसने मीणाओं पर हो रहे अत्याचारों के विरूद्ध आवाज उठाई, इस कमेठी का गठन छोटूराम झरवाल, महादेव राम पबड़ी आदि मीणाओं ने किया। परन्तु कुछ सालों के बाद इस संस्था का रियासत द्वारा लोप कर दिया। मीणा जाति सुधार कमेटी का रियासत द्वारा लोप करने से मीणाओं में असंतोष बढ़ गया। जिसके फलस्वरूप 1933 में ’’मीणा क्षेत्रीय महासभा’’ का गठन किया। इस संस्था ने जरायम पेशा कानून को समाप्त करने की मांग की अतः सरकार ने इस संस्था का विघटन करवा दिया। 7 अप्रैल, 1944 को जैन मुनि मगन सागर जी के प्रयासों से मीणाओं का वृहद सम्मेलन नीम का थाना (सीकर) में आयोजित हुआ। इसके तहत ’’जयपुर राज्य मीणा सुधार समिति’’ नामक संस्था की स्थापना की तथा इसके अध्यक्ष बंशीधर शर्मा थे। इस समिति के द्वारा भी जरायम पेशा कानून को समाप्त करने की कोशिश की गई। 31 दिसम्बर, 1945 को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का उदयपुर में सम्मेलन हुआ राजेन्द्र कुमार व लक्ष्मीनारायण के प्रयासों से जरायम पेशा कानून रद्द करने का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ।


ठक्कर बापा जो कि ’’पिछड़ी जातियों के मसीहा’’ के नाम से जाना जाता था, ने जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल खाँ को पत्र लिख कर जरायम पेशा कानून रद्द करने की सलाह दी। इन सभी के प्रयत्नों से 4 मई, 1946 को जयपुर रियासत की सरकार द्वारा यह कानून रद्द कर दिया। 28 अक्टूबर, 1946 को एक विशाल सम्मेलन बागावास में आयोजित कर चैकीदार मीणाओं ने स्वेच्छा से चैकीदारी के काम से इस्तीफा दिया तथा इस दिन को ’’मुक्ति दिवस’’ मनाया गया। 1952 में जाकर जरायम पेशा कानून रद्द किया गया इस प्रकार 28 वर्षों के एक लम्बे संघर्ष का अन्त हुआ ।

राजस्थान में जनजाति आंदोलन के बारे मैं क्वेश्चन


जनजातीय आंदोलन का उद्देश्य-


➯राजस्थान में जनजातीय आंदोलन का मुख्य उद्देश्य आदिवासियों को सामाजिक रूप से उन्नत करना था।


दयानंद सरस्वती-


➯राजस्थान में सामाजिक सुधार आंदोलनों का जनक दयानंद सरस्वती को माना जाता है।


➯दयानंद सरस्वती नें सन् 1883 में परोपकारिणी सभा नामक संगठन बनाया।


1. भगत आंदोलन-


➯राजस्थान में जनजातियों के प्रभाव क्षेत्र दक्षिणी राजस्थान में आदिवासियों के सामाजिक सुधार के लिए सुरजी भगत ने आंदोलन प्रारम्भ किया जिसे भगत आंदोलन कहा जाता है।


➯भगत आंदोलन का वास्तविक जनक गोविंद गिरी था।


➯गोविंद गिरी दयानंद सरस्वती का आदिवासी शिष्य था।


➯भगत आंदोलन का नेतृत्व गोविंद गिरी ने किया था।


➯गोविंद गिरी का जन्म सन् 1858 में राजस्थान के डुंगरपुर जिले के बांसिया गांव में एक बंजारे के घर में हुआ था।


➯गोविंद गिरी ने दयानंद सरस्वती से आशीर्वाद लेकर दक्षिणी जनजातीय क्षेत्र में भगत आंदोलन को नई दिशा दी।


➯भगत आंदोलन को नई दिशा देने के लिए गोविंद गिरी ने सन् 1883 में राजस्थान के सिरोही जिले में सम्प सभा की स्थापना की।


➯भगत आंदोलन का वास्तविक जनक गोविंद गिरी को कहते है।


➯गोविंद गिरी को सामाजिक सुधार आंदोलन का नेतृत्व करने के कारण गुरू कहा जाने लगा था।


➯गुरू गोविंद गिरी ने भगत आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में मानगढ़ पहाड़ी पर कार्यस्थल या कार्यक्षेत्र बनाया था।


➯सम्प सभा का प्रथम वार्षिक अधिवेशन 7 दिसम्बर, 1908 को बांसवाड़ा जिले की मानगढ़ पहाड़ी पर आयोजित किया गया था।


➯सम्प सभा का दूसरा वार्षिक अधिवेशन 7 दिसम्बर 1913 को बांसवाड़ा जिले की मानगढ़ पहाड़ी पर आयोजित किया गया था।


➯सम्प सभा के दूसरे वार्षिक अधिवेशन में कर्नल शैटर्न के नेतृत्व में मेवाड़ भील कौर के सैनिकों ने गोलीबारी की जिसमें लगभग 1500 भील मारे गए तथा गुरू गोविंद गिरी को गिरफ्तार कर लिया गया था।


➯मानगढ़ पहाड़ी कि इस गोलिबारी घटना को मानगढ़ हत्याकांड कहते है।


➯गुरू गोविंद गिरी ने अपना अंतिम समय कम्बोई (गुजरात) में व्यतित किया था।


➯गुरू गोविंद गिरी का समाधि स्थल राजस्थान के बांसवाड़ा जिले की मानगढ़ पहाड़ी पर बना हुआ है।


➯राजस्थान सरकार का पर्यटन विभाग गुरू गोविंद गिरी समाधि स्थल को मानगढ़ धाम नाम से पर्यटन के लिए विकसित कर रहा है।


➯भगत आंदोलन का उद्देश्य भीलों को मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूक करना तथा भील समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करना था।


➯गुरू गोविंद गिरी का गीत "भूरटिया नी मानू रे नी मानू" आज भी भील क्षेत्र में प्रचलित है।


2. एकी आंदोलन या भोमट भील आंदोलन (1921)-


➯एकी आंदोलन या भोमट भील आंदोलन का नेतृत्व मोतीलाल तेजावत द्वारा किया गया था।


➯एकी आंदोलन या भोमट भील आंदोलन का उद्देश्य भीलों में एकता स्थापित करना था।


➯एकी आंदोलन या भोमट भील आंदोलन की शुरुआत राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जले के मातृकुंडिया धाम में हुई थी।


➯एकी आंदोलन का कार्यस्थल चित्तौड़गढ़ जिले के मातृकुंडिया धाम को बनाया गया था।


➯एकी आंदोलन के तहत पहली आम सभा झाड़ोल (उदयपुर) में हुई थी।


➯एकी आंदोलन का प्रभाव क्षेत्र भोमट का पठारी भाग था इसी कारण एकी आंदोलन को भोमट आंदोलन भी कहा जाता है।


➯भीलों ने मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में 7 मार्च, 1922 को राजस्थान के अजमेर जिले के नीमड़ा गांव में भील सभा का आयोजन किया था।


➯7 मार्च, 1922 की नीमड़ा गांव की भील सभा पर मेवाड़ भील कौर के सैनिकों ने गोलीबारी की जिसमें लगभग 1200 भील मारे गए तथा इस गोलीबारी कांड को नीमड़ा हत्याकांड कहते है।


➯सन् 1929 में गांधी जी के कहने पर मोतीलाल तेजावत ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया तथा सन् 1945 तक जेल में रहे थे।


➯मोतीलाल तेजावत को आदिवासियों का मसीहा तथा भीलों का संत मावजी कहते है।


➯राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित मातृकुंडिया धाम को राजस्थान तथा मेवाड़ा का हरिद्वार कहते है।


3. मीणा आंदोलन या मीणा जनजाति आंदोलन-


➯मीणा आंदोलन जयपुर के आसपास रहने वाले मीणा जनजाति के द्वारा चलाया गया आंदोलन था।


➯मीणा जनजाति के दो भाग माने जाते है-


1. जमीदार मीणा


2. चौकीदार मीणा


➯सन् 1924 में ब्रिटिश सरकार ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट/अधिनियम/ कानून पारित किया।


➯क्रिमिनल ट्राइब्स अधिनियम के अन्तर्गत सन् 1930 में जयपुर राज्य जयराम पेशा कानून बनाया गया था।


➯जयराम पेशा कानून के अन्तर्गत 12 वर्ष से अधिक आयु के सभी मीणा युवकों को यह आदेश दिया गया की उन्हें प्रतिदिन थाने में उपस्थिति दर्ज करानी होगी।


➯जयराम पेशा कनून को समाप्त करने के लिए 1933 में मीणा क्षेत्रीय महासभा की स्थापना की गई।


➯सन् 1944 में नीम का थाना (सीकर) में मीणाओं की महासभा हुई इस सभा की अध्यक्षता जैन मुनि मगन सागर ने की थी।


➯इस सभा के दौरान सन् 1944 में मीणा समाज में जागृति के लिए मीणा राज्य सुधार समिति का गठन किया गया था।


➯मीणा राज्य सुधार समिति का अध्यक्ष पंडित बंशीधर शर्मा को बनाया गया था।


➯चौकीदार मीणाओं को एक टैक्स या हर्जाना देना पड़ता था चाहे चोरी कोई भी करे हर्जाना चौकीदार मीणाओं को ही देना पड़ता था इसी को दादरसी कानून कहा जाता था।


➯सन् 1945 में मीणाओं का राज्यव्यापी आंदोलन चला।


➯28 अक्टूबर 1946 को मीणाओं ने मुक्ति दिवस के रूप में मनाया था।

➯सन् 1952 में क्रिमिनल ट्राइब्स तथा जयराम पेशा कानून रद्द कर दिये गये और मीणाओं को अपने मूलभूत अधिकारों की प्राप्ति हुई।


Thursday, January 21, 2021

January 21, 2021

1857 की क्रांति के बारे मैं सम्पूर्ण जानकारी

 


राजस्थान में 1857 की क्रांति - ( rajasthan 1857 ki kranti )

राजस्थान में 1857 की क्रांति का सूत्रपात राजनीतिक जन-जागरण में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा गया है। राजस्थान में राजपूताना के अधिकांश राजाओं के पास अपनी संगठन शक्ति और दूरदर्शितापूर्ण नीतियों का अभाव था। इसी कारण से मुगल बादशाहों की अधीनता के बाद धीरे-धीरे वे अंग्रेजों के अधीन भी होते गए।

 व्यापार के बहाने ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आयी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने 100 वर्ष तक भारत में विभिन्न तरीकों से शोषणकारी नीतियों के द्वारा शोषण किया। गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेजली द्वारा सहायक संधि की नीति प्रारंभ की गई  अंग्रेजों को अपनी विदेश नीति के तहत उत्तरदायित्व था कि देशी राज्यों की बाह्य सुरक्षा प्रदान करना। लेकिन खर्चा स्वयं राज्यों को उठाना पड़ता था।


इसके बाद लॉर्ड हार्डिंग की आर्थिक पार्थक्य की नीति के तहत राजस्थान के राजाओं ने अंग्रेजों से सन्धियां की। 1848 में लॉर्ड डलहौजी गवर्नर जनरल बनकर भारत आए थे। इन्होंने भारत में एक नए सिद्धांत राज्यों के विलय की नीति लागू की। इस नीति के तहत भारत के अनेक रियासतों को अंग्रेजी राज्यों में मिला लिया गया। गोद निषेध नीति लागू करने वाला गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ही था। 


सेना में एनफील्ड राइफलों में गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग से भी भारतीय सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को बहुत बुरा झटका लगा। ईस्ट इंडिया कंपनी की विभिन्न शोषणकारी नीतियों के कारण भारतीय शासक जमीदार भारतीय सैनिक जनसाधारण लोगों में अंग्रेजों के विरुद्ध असंतोष उत्पन्न हो गया। 


यह असंतोष 1857 की क्रांति के रूप में अंग्रेजी शासन को भारत से उखाड़ फेंकने की दिशा में पहला प्रयत्न था। राजस्थान में 1857 के विद्रोह की जानकारी सार रूप में इस प्रकार दी जा रही है।

राजस्थान में 1857 की क्रांति के समय छावनियां -

1857 की क्रांति के समय राजस्थान में 6 सैनिक छावनियां थी। जो इस प्रकार हैं-

याद करने का सूत्र  -     ए ननी देख ब्याव 


एरिनपुरा छावनी

नसीराबाद छावनी

नीमच छावनी

देवली छावनी

खेरवाड़ा छावनी

ब्यावर छावनी

नसीराबाद छावनी -

  

यह सबसे शक्तिशाली छावनी थी। राजस्थान में 1857 की क्रांति की शुरुआत नसीराबाद से ही हुई थी। अजमेर राजस्थान में ब्रिटिश सत्ता का प्रमुख केंद्र था। अजमेर से बंगाल नेटिव इन्फेंट्री हटाए जाने तथा मेर पलटन को वहां नियुक्त करने के कारण 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के सैनिकों में असंतोष बढ़ गया था। चर्बी वाले कारतूस का ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रयोग करने पर सैनिक असंतोष बढ़ गया था ।


  नसीराबाद छावनी ने 18 मई 1857 को शाम 4 बजे विद्रोह किया था। राजपूत सरदार डूंगरसिंह ने नसीराबाद छावनी को लूट लिया था। अंग्रेजी कम्पनी का विरोध करने वाले सैनिक 18 जून 18 57 को दिल्ली पहुंच गए और अंग्रेजी सेना पर आक्रमण करके उसे पराजित कर दिया।


नीमच छावनी-

यह छावनी राजस्थान में न होकर राजस्थान  से बाहर मध्यप्रदेश में स्थित थी।यह राजस्थान और मध्यप्रदेश के  सीमावर्ती क्षेत्र  में स्थित थी। लेकिन इसकी जिम्मेदारी मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट कैप्टन शावर्स के पास थी। क्रांति का दूसरा केंद्र नीमच बना जहां 3 जून 1857 की क्रांति फूट पड़ी।


2 जून को कर्नल एबोर्ट  ने हिंदू और मुसलमान सिपाहियों को गंगा और कुरान की शपथ दिलाई थी कि वह ब्रिटिश शासन के प्रति वफादार रहेंगे। कर्नल एबोर्ट  ने स्वयं भी बाइबिल को हाथ में लेकर शपथ ली थी। लेकिन 3 जून 1857 को नसीराबाद की क्रांति का समाचार नीमच पहुंचा तो उसी दिन रात्रि के 11:00 बजे वहां भी विद्रोह हो गया। 

क्रांतिकारियों ने छावनी को घेर लिया और उसको आग लगा दी। बंगलों  पर तैनात किए गए सैनिकों ने क्रांतिकारी पर गोली चलाने से इंकार कर दिया और कुछ समय बाद ही विभिन्न क्रांतिकारियों के साथ मिल गए। सैनिकों ने हीरासिंह के नेतृत्व में विद्रोह किया था।

 

डूंगला नामक स्थान पर नीमच छावनी से बचकर भागे हुए 40 अंग्रेज अफसर व उनके परिवार के लोगों को क्रांतिकारियों ने बंधक बना लिया। लेकिन मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट मेजर शावर्स ने मेवाड़ की सेना की सहायता से उन्हें छुड़ाकर उदयपुर पहुंचाया। 

महाराणा स्वरूप सिंह ने उन्हें पिछोला झील के जग मंदिर में शरण प्रदान की। 5 जून 1857 को क्रांतिकारियों ने आगरा होते हुए दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। क्रांतिकारियों ने आगरा जेल में बंद सभी कैदियों को मुक्त कर दिया और सरकारी खजाने को लूट लिया।

 

एरिनपुरा छावनी - ( पाली , जोधपुर )

यह स्थान राजस्थान के वर्तमान जिला सिरोही में स्थित है। 1857 के विद्रोह के समय यह मारवाड़ रियासत का एक भाग था। 21 अगस्त 1857 को छावनी के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था। क्रांतिकारियों ने शिवनाथ सिंह के नेतृत्व में चलो दिल्ली मारो फिरंगी का नारा लगाते हुए दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।


खेरवाड़ा छावनी -

 यह छावनी उदयपुर में स्थित थी। छावनी ने 1857 की क्रांति में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया था। यहां भीलों की टुकड़ी ( कोर भील ग्रुप ) थी।


देवली छावनी -

यह छावनी टोंक जिले में स्थित थी। नीमच के क्रांतिकारी देवली भी पहुंचे और उन्होंने छावनी को आग लगा दी। बताया जाता है कि देवली छावनी में कोई भी ब्रिटिश सैनिक हताहत नहीं हुआ क्योंकि छावनी को पहले खाली किया जा चुका था और वहां से ब्रिटिश अधिकारियों को मेवाड़ स्थित जहाजपुर कस्बे में बसा दिया गया था। 


क्रांतिकारियों ने कोटा रेजिमेंट के 60 व्यक्तियों को देवली छावनी से अपने साथ चलने के लिए बाध्य किया परंतु रास्ते में यह सैनिक भाग निकलने में सफल हो गए और कुछ दिनों पश्चात वापस देवली आ गए। देवली में जून 1857 में विद्रोह हुआ था ।


ब्यावर छावनी -

ब्यावर छावनी वर्तमान अजमेर जिले में स्थित थी। 1857 की क्रांति में ब्यावर छावनी ने प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया था। ब्यावर में मेर जाति की टुकड़ी थी। 


राजस्थान में 1857 की क्रान्ति के समय पॉलिटिकल एजेंट के नाम :-

1. मेवाड़ में पॉलिटिकल एजेन्ट :- मेजर शार्क्स
2. मारवाड़ में पॉलिटिकल एजेन्ट :- मैकमोहन
3. जयपुर में पॉलिटिकल एजेन्ट :- ईडन
4. कोटा में पॉलिटिकल एजेन्ट :- मेजर बर्टन


राजस्थान के प्रमुख अमर शहीदों के नाम :-

1. प्रताप सिंह बारहठ :- (1918)

2. रूपाजी एवं कृपाजी धाकड़ :- (1922)
3. बालमुकन्द बिरला :- (1942)
4. सागरमल गोपा :- (1946)
5. काली बाई भील :- (1947)


विद्रोह स्थल - नेतृत्व करता - समय - दमन करता

दिल्ली - बहादुर शाह जफर - 12 मई 1857 - निकलसन हडसन

कानपुर - नाना साहब - 5 जून 1857 - कॉलिन कैंपबेल

लखनऊ - बेगम हजरत महल - 4 जून 1857 - कॉलिंग कैंपबेल, आउटड्रम

जगदीशपुर - कंवर सिंह - 12 जून 1857 - विलियम ट्रेलर

झांसी - लक्ष्मी बाई ,तांत्या टोपे - 4 जून 1857 - जनरल ह्यूरोज

फैजाबाद - मोहम्मद अहमदुल्ला - जून 1857 - जनरल रेनॉल्ट

बरेली - खान बहादुर खान - जून 1857 - कैंपबेल

इलाहाबाद - लियाकत अली - 6 जून 1857 - जनरल नील


नोट :- बेगम हजरत महल को महक परी और लक्ष्मीबाई को महल परी कहा जाता है


रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु पर जनरल ह्यूरोज ने कहा था कि इन सोई हुई क्रांतिकारियों में यह औरत अकेली मर्द है सेनापति हडसन ने 20 सितंबर 1857 को बहादुर शाह जफर को हिमायू के मकबरे से गिरफ्तार किया तथा उन्हें रंगून भेज दिया गया जहां 1862 में उनकी मृत्यु हुई अंग्रेजों का दिल्ली पर पुनः नियंत्रण 20 सितंबर 1857 को हो गया


1857 की क्रांति का स्वरूप

सैनिक विद्रोह - जॉन सिले और लॉरेंस ने इस विद्रोह को सैनिक विद्रोह कहा

T R होम ने इसे सभ्यता और बर्बरता का संघर्ष कहा

जेम्स आउट ने इसे हिंदू मुस्लिम षड्यंत्र कहा

सावरकर ने इसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा


1857 की क्रान्ति के समय तांत्या टोपे की भूमिका:-

तांत्या टोपे 2 बार राजस्थान आयें। 8 अगस्त, 1857 को वह भीलवाड़ा आये, इस समय इन्होने रार्बट्स को हराया और टोपे ने झालावाड़ के शासक पृथ्वीसिंह को भी हराया।

11 दिसम्बर 1857 को दूसरी बार राजस्थान आये। इस समय उन्होने बांसवाड़ा को जीता।

मेजर ईंड़न को सूचना का पता चला तो वह तांत्या टोपे का पीछा करते हुए बांसवाड़ा पहुंचा।

बांसवाड़ा से उदयपुर अन्त में तांत्या टोपे के विष्वासघाती मित्र मानसिंह नरूका ने धोखा किया व ईंड़न को टोपे का पता बता दिया एवं इन्हें फांसी की सजा दी गईं।


1857 की क्रान्ति की असफलता के कारण:-

राजस्थान के राजाओें ने क्रान्तिकारियों का साथ न देकर ब्रिटिष सरकार का साथ दिया।

क्रान्ति नेतृत्वहीन थी।

क्रान्तिकारियों में एकता व सम्पर्क का अभाव था।


1857 की क्रान्ति के प्रभाव:-

राजस्थान की रियासतें पूर्णतः ब्रिटिष सरकार के हाथों में चली गई।

राजस्थान की जनता पर देषी रियासतों और अंग्रेजों की गुलामी का दोहरा अंकुष लगा।

समाज में राष्ट्रीय और राजनैतिक चेतना का उदय हुआ।

यातायात के साधनों का विकास हुआ।


1857 की क्रांति के संबधित प्रश्न उत्तर

Q.1 1857 का विद्रोह कहाँ से प्रारंभ हुआ था ? – मेरठ


Q.2 1857 की क्रांति की शरुवात कब हुई थी ? – 10 मई 1857


Q.3 1857 के विद्रोह में किस नेता का नाम ‘धोन्दु पंत’ था ? – नाना साहब 


Q.4 1857 की क्रांति के समय इंग्लैंड के प्रधानमंत्री कौन थे ? – लॉर्ड पर्मस्टन


Q.5 मंगल पांडे को कब फासी दी गई थी ? – 8 अप्रैल 1857 


Q.6 1857 के विद्रोह में अहम भूमिका निभाने वाले मंगल पांडे किस बटालियन से था ? – 34 वीं नेटिव इन्फ़ेट्री


Q.7 वह आधुनिक इतिहासकार, जिसने 1857 के विद्रोह को “स्वतंत्रता की पहली लड़ाई” कहा था ? – वी. डी. सावरकर


Q.8 दिल्ली में विद्रोह का सैन्य नेतृत्व किसने किया था ? – बख्त खाँ


Q.9 1857 का विद्रोह भारत के किस हिस्से में हुआ था ? – उत्तरी और मध्य भारत में


Q.10 1857 विद्रोह के समय किसने इलाहाबाद को आपातकालीन मुख्यालय बनाया था ? – लॉर्ड कैनिंग


Q.11 1857 में पंजाब में किसने अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह किया ? – नामधारी सिखों ने


Q.12 भारत के शिक्षित वर्ग 1857 की क्रांति में …………? – तटस्थ रहे 


Q.13 1857 के विद्रोह के नेता तात्या टोपे का मूल नाम क्या था ? – रामचन्द्र पांडुरंग


Q.14 रानी लक्ष्मीबाई का मूल नाम क्या था ? – मणिकर्णिका


Q.15 मंगल पांडे की घटना कहाँ हुई थी ? – बेरक पुर


Q.16 1857 के विद्रोह में किसने सबसे पहेले अपना बलिदान दिया था ? – मंगल पांडे


Q.17 1857 की क्रांति में किसे मान सिंह ने धोखा दिया और फिर अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर फांसी से दी ? – तात्या टोपे


Q.18 महारानी विक्टोरिया ने भारतीय प्रशासन को ब्रिटिश ताज के नियंत्रण में लेने की घोषणा कब की थी ? – 1 नवम्बर 1858


Q.19 1857 के विद्रोह को किसने शरू किया था ? – सिपाहियों ने


1857 Ki Kranti Ke Questions Answers


Q.20 पहला भारतीय सिपाही कौन, था जिसने चर्बी वाले कारतूस का प्रयोग करने से इंकार कर दिया ? – मंगल पांडे


Q.21 रानी लक्ष्मी बाई को अंतिम युद्ध में सामना किससे करना पड़ा था ? – हयुरोज


Q.22 1857 के विद्रोह के सरकारी इतिहासकार कौन थे ? – एस. एन. सेन


Q.23 1857 के विद्रोह की असफलता के बाद बहदूर शाह-२ को कहाँ निर्वासित कर दिया गया ? – रंगून


 Q.24 1857 के विद्रोह के बाद भारतीय फौज के नाव अगठ के लिए कौनसा आयोग बनाया गया ? – पिल आयोग


Q.25 रानी लक्ष्मीबाई की समाधि स्थल कहाँ है ? – ग्वालीयर


Q.26 इलाहाबाद में 1857 के संग्राम का नेता कौन था ? – मौलवी लियाकत अली


Q.27 1857 के विद्रोह में कुँवर सिंह ने कहा से नेतृत्व किया था ? – बिहार से  


Q.28 बेगम हजरत महल ने 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किस शहर से किया था ? – लखनऊ


Q.29 1857 के विद्रोह के दौरान बहादुर शाह ने किसे शाह-ए-आलम का किताब दिया था ? – बख्त खान


Q.30 1857 की क्रांति का प्रतीक क्या था ? – कमल एवं चपाती


Q.31 1857 का विद्रोह का असफल होने मुख्य कारण ?  – केन्द्रीय संगठन की कमी के कारण


Q.32 1857 के विद्रोह को एक “षड्यंत्र” की संज्ञा किसने दी थी ? – जेम्स आउटम व डब्ल्यू डेलर


Q.33 बरेली विस्तार का नेता कौन था ? – खान बहादुर खाँ


Q.34 1857 के संघर्ष में सबसे ज्यादा भाग लेने वाले सिपाहियों की संख्या कहाँ से थी ? – अवध से


राजस्थान में 1857 की क्रांति के G.K. questions in hindi : -


1. राजस्थान में सर्वप्रथम 1857 की क्रांति की शुरुआत कहाँ से और कब हुई ?
उत्तर : - नसीराबाद ( अजमेर ) से 28 मई 1857 को हुई ।


2. राजस्थान में 1857 की क्रांति के समय कितनी सैनिक छावनियाँ थी ?
उत्तर : - 6 सैनिक छावनियाँ थी, नसीराबाद, नीमच, एरिनपुरा, ब्याबर, खैरवाडा और देवली ।


3. राजस्थान में 1857 की क्रांति में कौनसी छावनियों ने भाग नहीं लिया ?
उत्तर : - ब्यावर और खैरवाडा ने ।


4. राजस्थान में 1857 की क्रांति का तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर : - सेना में एनफील्ड राइफलों में चरबी लगे कारतूसों का प्रयोग ।


5. भारत में 1857 के विद्रोह की शुरुआत सर्वप्रथम कहाँ से हुयी ?
उत्तर : - मेरठ से 10 मई 1857 को ।


6. नीमच छावनी में 1857 का विद्रोह किसके नेतृत्व में हुआ ?
उत्तर : - हीरासिंह के नेतृत्व में ।


7. राजस्थान में नीमच छावनी में 1857 का विद्रोह कब हुआ ?
उत्तर : - 3 जून, 1857 को ।


8. राजस्थान में एरिनपुरा छावनी में 1857 का विद्रोह कब और किसने किया ?
उत्तर : - 21 अगस्त 1857 को, पूर्बिया सैनिकों ने किया ।


9. राजस्थान में आउवा का विद्रोह किसके नेतृत्व में हुआ ?
उत्तर : - ठाकुर कुशाल सिंह के नेतृत्व में।


10. आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह और कैप्टन हीथकोट की सेना में कहाँ पर युद्ध हुआ ?
उत्तर : - बिथौडा ( पाली ) में, 8 सितम्बर 1857 को ।


11. आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह ने एजीजी पैट्रिक लॉरेंस को किस स्थान पर और कब पराजित किया ?
उत्तर : - चेलावास स्थान पर, 18 सितम्बर 1857 को ।


12. मोकमैसन कहाँ का पॉलिटीकल एजेंट था ?
उत्तर : - जोधपुर का ।


13. कोटा का विद्रोह किनके नेतृत्व में आरम्भ हुआ ?
उत्तर : - जयदयाल और मेहराबखान ।


14. कोटा का पॉलिटीकल एजेंट कौन था ?
उत्तर : - मेजर बर्टन ।


15. मेवाड के किस शासक ने अंग्रेज अफसर व उनके परिवार को अपने यहाँ पर शरण दी ?
उत्तर : - महाराजा स्वरूप सिंह ने, पिछोला झील के जगमन्दिर में ।


16. धौलपुर में किनके नेतृत्व में 1857 का विद्रोह हुआ ?
उत्तर : - राव रामचन्द्र व हीरालाल के नेतृत्व में ।


17. ताँत्या टोपे सर्वप्रथम राजस्थान में कब आये ?
उत्तर : - 8 अगस्त 1857 को, भीलवाडा में आये ।


18. ताँत्या टोपे और जनरल राबर्ट्स की सेना में किस स्थान पर युद्ध हुआ ?
उत्तर : - कुआडा नामक स्थान पर, (कोठारी नदी के तट पर है) ।


19. ताँत्या टोपे कितनी बार राजस्थान आये ?
उत्तर : - दो बार ।


20. अंग्रेजों ने ताँत्या टोपे को किसकी सहायता से पकडा ?
उत्तर : - नरवर के जागीरदार मानसिंह नरूका की सहायता से ।




1857 की क्रांति-प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये (100) महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर  


अंग्रेजी भारतीय सेना में चर्बी वाले कारतूसों से चलने वाली एनफील्ड राइफल को शामिल किया गया- दिसंबर 1856 में

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य तात्कालिक कारण था- अंग्रेजों का धर्म में हस्तक्षेप का संदेश

मंगल पांडे की घटना हुई थी- बैरकपुर में

मंगल पांडे सिपाही था- 34वी बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के

1857 के विद्रोह के दौरान बहादुर शाह ने’ साहब ए आलम बहादुर’ का खीताब दिया था- बख्त खान को

1857 की क्रांति का प्रमुख कारण था- ब्रिटिश साम्राज्य की नीति

1857 की क्रांति सर्वप्रथम प्रारंभ हुई- मेरठ से

1857 के स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित पहली घटना थी- सैनिकों का दिल्ली के लाल किले पर पहुंचना

1857 के स्वाधीनता संग्राम का प्रतीक था- कमल और रोटी

1857 के संग्राम के झांसी, मेरठ, दिल्ली तथा कानपुर केंद्रों में से सबसे पहले अंग्रेजों ने पुना अधिकृत किया- दिल्ली को

1857 के स्वाधीनता संघर्ष की वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई की जन्म स्थली है- वाराणसी

1857 के बरेली विद्रोह का नेता था- खान बहादुर

महारानी लक्ष्मी बाई की समाधि स्थित है- ग्वालियर में

रानी लक्ष्मीबाई को अंतिम युद्ध में सामना करना पड़ा- ह्यूरोज का

का विद्रोह लखनऊ में जिसके नेतृत्व में आगे बढ़ा, वह थी- बेगम आफ अवध

इलाहाबाद में 1857 के संग्राम का नेता था- मौलवी लियाकत अली

1857 के संघर्ष में भाग लेने वाले सिपाहियों के सर्वाधिक संख्या थी- अवध से

नाना साहब का” कमांडर इन चीफ”था – तात्या टोपे

अजीमुल्ला खा सलाहकार थे- नाना साहब के

वर्ष 1857 के विद्रोह के संदर्भ में नाना साहब, कुंवर सिंह, खान बहादुर खान तथा तात्या टोपी में से वह जिसे, उसके मित्र ने धोखा दिया, तथा जिसे अंग्रेजों द्वारा बंदी बनाकर मार दिया गया- तात्या टोपे को

1857 के क्रांतिकारियों में वह जिसका वास्तविक नाम’ रामचंद्र पांडुरंग’ था- तात्या टोपे

कुंवर सिंह, 1857 के विद्रोह के एक प्रमुख नायक थे| वह संबंध थे- बिहार से

पटना के 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नेता थे- राजपूत कुंवर सिंह

असम में 1857 की क्रांति का नेता था- दीवान मनीराम दत्त

857 के विद्रोह का बिहार में 15 जुलाई, 1857 से 20 जनवरी, 1858 तक केंद्र था- जगदीशपुर

जगदीशपुर का वह व्यक्ति जिसने 1857ई . के विप्लव में क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया- कुंवर सिंह

जगदीशपुर के राजा थे- कुंवर सिंह

1857 ई. की क्रांति में अंग्रेजों व जोधपुर के संयुक्त सेना को पराजित करने वाला था- आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह

अजमेर, जयपुर, नीमच तथा आउवा में से राजस्थान में 1857 की क्रांति का केंद्र नहीं था- जयपुर

चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, शहादत खान तथा माखनलाल चतुर्वेदी में से 1857 में अंग्रेजों से संघर्ष किया- शहादत खान ने

मौलवी अहमदुल्लाह शाह, मौलवी इंदादुल्लाह , मौलाना फज्लेहक खेराबादी तथा नवाब लियाकत अली में से 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों का सबसे कट्टर दुश्मन था- मौलवी अहमदुल्लाह शाह

1857 के विद्रोह को देखने वाले उर्दू कवि थे- मिर्जा ग़ालिब

सुप्रसिद्ध उर्दू शायर मिर्ज़ा ग़ालिब का मूल निवास था- आगरा

आजादी की पहली लड़ाई 1857 में भाग नहीं लिया- भगत सिंह ने

1857 के विद्रोह में बेगम हजरत महल, कुंवर सिंह, ऊधम सिंह तथा मौलवी अहमदुल्लाह मैं से संबंध नहीं था- ऊधम सिंह

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों की सर्वाधिक सहायता करने वाला राजवंश था- ग्वालियर के सिंधिया

भारत में शिक्षित मध्य वर्ग ने – 1857 के विद्रोह से तटस्थता बनाए रखी थी

खेतिहर मजदूर, साहूकार, कृषक तथा जमीदार वर्गों में 1857 के विद्रोह में भाग नहीं लिया – साहूकार तथा जमीदार ने

झांसी, चित्तौड़, जगदीशपुर तथा लखनऊ में से वह क्षेत्र जो 1857 विद्रोह से प्रभावित नहीं था- चित्तौड़

बिहार के दानापुर, पटना, आरा , मुजफ्फरपुर, मुंगेर में से 1857 के विद्रोह से अप्रभावित भाग था- मुंगेर

1857 के विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल था- लार्ड कैनिंग

1857 विद्रोह के समय बैरकपुर में ब्रिटिश कमांडिंग ऑफिसर था- जान बेनेट हैरसे

1857 मैं इलाहाबाद को आपातकालीन मुख्यालय बनाया था- लार्ड कैनिंग ने

1857 के विद्रोह के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री थे- विश्वकांट पामस्टर्न

1857 का विद्रोह मुख्यत: असफल रहा- किसी सामान्य योजना और केंद्रीय संगठन की कमी के कारण

1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम असफल हुआ क्योंकि – भारतीय सिपाहियों में उद्देश्य की एकता की कमी थी, प्राय: भारतीय राजाओं ने ब्रिटिश सरकार का साथ दिया, ब्रिटिश सिपाही कहीं अच्छे सज्जीत कथा संगठित थे

अंग्रेज राजपूत राज्यों में 1857 के विद्रोह को दबाने में सफल रहे क्योंकि- स्थानीय शासकों ने क्रांतिकारियों का साथ नहीं दिया

जनरल जॉन निकलसन, जनरल नील, मेजर जनरल हैवलॉक तथा सर हेनरी लारेंस मैं से वह ब्रिटिश अधिकारी जिन्होंने लखनऊ में अपना जीवन खोया था- जनरल नील, मेजर जनरल हैवलॉक तथा सर हेनरी लारेंस

1857 के विद्रोह को एक’ षड्यंत्र’ की संज्ञा दी- सर जेम्स आउट्रम एव डब्ल्यू . टेलर ने

वह आधुनिक इतिहासकार जिसने 1857 के विद्रोह को स्वतंत्रता की पहली लड़ाई कहा था-वी.डी. सावरकर

भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का सरकारी इतिहासकार था-एस.एन.सेन

भारतीय भाषा में 1857 के विप्लव के कारणों पर लिखने वाला प्रथम भारतीय था- सैयद अहमद खां

“तथाकथित प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम ना प्रथम,न राष्ट्रीय और न ही स्वतंत्रता संग्राम था” यह कथन सम्बद्ध है- आर. सी. मजूमदार से

1857 की क्रांति के बारे में सही अवधारणा है- इसने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की शासन प्रणाली को मृतप्राय बना दिया

महारानी विक्टोरिया ने भारतीय प्रशासन को ब्रिटिश ताज के नियंत्रण मैं लेने की घोषणा की थी- 1 नवंबर, 1858 को

साम्राज्ञी विक्टोरिया ने 1858 को घोसड़ा में भारतीयों को बहुत सी चीजें दिए जाने का आश्वासन दिया था| वह आश्वासन जिसे ब्रिटिश शासन ने पूरा किया था- रियासतों को हड़पने की नीति समाप्त कर दी जाएगी

महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा(1858 ) का उद्देश्य था- भारतीय राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने के किसी भी विचार का परित्याग करना तथा भारतीय प्रशासन को ब्रिटिश क्राउन के अंतर्गत रखना

पब्लिक सर्विस आयोग, पील आयोग, हंटर आयोग तथा साइमन कमीशन मैं 1857 के विद्रोह के दमन के बाद भारतीय फौज के नव संगठन से संबंधित है – पील आयोग

1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने सिपाहियों का इन प्रांतों से चयन किया- गोरखा, सिख एव पंजाबी उत्तर प्रांत से अन्य जन आंदोलन 

1857 के विद्रोह के ठीक बाद बंगाल में सन्यासी विद्रोह, संथाल विद्रोह, नील उपद्रव तथा पावना उपद्रव में से विप्लव हुआ- नील विद्रोह का

नील कृषकों की दुर्दशा पर लिखी गई पुस्तक” नील दर्पण” के लेखक थे- दीनबंधु मित्र

‘वंदे मातरम’ गीत लिखा है- बंकिमचंद्र चटर्जी ने

आनंदमठ उपन्यास की कथावस्तु आधारित है- सन्यासी विद्रोह पर

वह विद्रोह जिसका उल्लेख बंकिमचंद्र चटर्जी ने अपने उपन्यास आनंद मठ में करके प्रसिद्ध किया-सन्यासी विद्रोह

मुंगेर के बरहीयाताल विरोध का उद्देश्य था- बकास्त भूमि की वापसी की मांग

19वी शताब्दी के दौरान होने वाले” वहाबी आंदोलन” का मुख्य केंद्र था- पटना

कूका आंदोलन के संगठित किया- गुरु राम सिंह ने

पागलपंथी विद्रोह वस्तुतः एक विद्रोह था- गारो का

‘पागल पंथ’ की स्थापना की थी- करमशाह ने

फराजी विद्रोह का नेता था- दादू मियां

फराजी थे- हाजी शरिअतुल्लाह के अनुयायी

वेलु थम्पी ने अंग्रेजो के विरुद्ध आंदोलन का नेतृत्व किया था – केरल में

महाराष्ट्र में रामोशी कृषक जत्था स्थापित किया था- वासुदेव बलवंत फड़के ने

रामोसी विद्रोह सही रूप में जिस भौगोलिक इलाके में हुआ था, वह था- पश्चिमी घाट

गड़करी विद्रोह का केंद्र था- कोल्हापुर

मानव बलि प्रथा का निषेध करने के कारण अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने वाली जनजाति का नाम- खोंद

कोल विद्रोह(1831- 32) का नेतृत्व किया- बुध्दू भगत ने

बघेरा विद्रोह हुआ- बड़ौदा में

छोटा नागपुर जनजाति विद्रोह हुआ था- 1820ई. मैं

संथाल विद्रोह का नेतृत्व किया- सिध्दू कान्हू एव भैरव चांद

1855ई . मैं संथालों ने किस अंग्रेज कमांडर को हराया- मेजर बारो

भील विद्रोह, कोल विद्रोह, रम्पा विद्रोह तथा संथाल विद्रोह में से वह घटना जो महाराष्ट्र में घटित हुई- भील विद्रोह

मेवाड़, बागड़, और पास के क्षेत्रों के भीलो में सामाजिक सुधार के लिए’ लसोणिया आंदोलन’ का सूत्रपात किया- गोविंद गिरी ने

उलगुलन विद्रोह जुड़ा था- बिरसा मुंडा से

जिस आदिवासी नेता को जगत पिता(धरती आबा) कहा जाता था, वह था- बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा का कार्यक्षेत्र था- रांची

जनजाति लोगों के संबंध में’ आदिवासी’ शब्द का प्रयोग किया था- ठक्कर बापा ने

भारत में19वी शताब्दी के जनजातीय विद्रोह के लिए जिसने साझा कारण मुहैया किया- जनजातीय समुदायों की प्राचीन भूमि संबंधी व्यवस्थापक संपूर्ण

हौज विद्रोह हुआ- (1820- 21 ई.) के दौरान

खैरवार आदिवासी आंदोलन हुआ- 1874ई. मैं

संभलपुर के अनेक ब्रिटिश विरोधी विद्रोहो का नेता था- सुरेंद्र साईं

नील विद्रोह, संथाल विद्रोह, दक्कन के दंगे तथा सिपाही विद्रोह का सही कालानुक्रम है- संथाल विद्रोह, सिपाही विद्रोह, नील विद्रोह, दक्कन के दंगे

1921 का मोपला विद्रोह हुआ था- केरल में

अंग्रेजों के विरुद्ध भीलो द्वारा क्रांति प्रारंभ की गई थी- मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र में

ताना भगत आंदोलन उत्तराउराव ने प्रारंभ किया था- 1914 में

महात्मा गांधी एवं उनके विचारों से प्रभावित होने वाले प्रथम आदिवासी नेता थे- जोड़ानांग

वाराणसी में प्रथम संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की थी-जोनाथन डंकन ने 

सर्वप्रथम’भगवतगीता’ अंग्रेजी में अनुवाद किया था-चार्ल्स विल्किंस ने 

कालिदास की प्रसिद्द रचना सकुन्तला का पहली बार अंग्रेजी में अनुवाद किया था-सर विलियम जोंस ने 

ब्रिटिश सरकार के जिस अधिनियम ने सबसे पहली बार भारत में शिक्षा के लिए 1 लाख रूपये दिए थे-चार्टर अधिनियम,1813


Wednesday, January 20, 2021

January 20, 2021

राजस्थान समान्य ज्ञान/Rajasthan General Knowledge In Hindi

 


राजस्थान का इतिहास




January 20, 2021

राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलन

राजस्थान में प्रजामण्डल आन्दोलन 


प्रजामण्डल का अर्थ ( Praja Mandal Meaning

  

राजस्थान प्रजामंडल ट्रिक


प्रजा का मण्डल (संगठन)। 1920 के दशक में ठिकानेदारों और जागीरदारों के अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ रहे थे। इसी के कारण किसानों द्वारा विभिन्न आंदोलन चलाये जा रहे थे। साथ ही गांधी जी के नेतृत्व में देश में स्वतंत्रता आन्दोलन भी चल रहा था। इन सभी के कारण राज्य की प्रजा में जागृती आयी और उन्होंने संगठन(मंडल) बनाकर अत्याचारों के विरूद्ध आन्दोलन शुरू किया जो प्रजामण्डल आंदोलन कहलाये।


इन आन्दोलनो का मुख्य उद्देश्य रियासती शासन के अधीन उत्तरदायी शासन प्राप्त करना था। उत्तरदायी शासन से तात्पर्य संघ बनाने, भाषण देने आम सभा करने और जुलूस निकालने आदि की स्वतंत्रता दी जाये।


राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलनों को स्थापित करने का बीज सुभाष चंद्र बॉस द्वारा आयोजित किया गया था । जब 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में जोधपुर की यात्रा की थी।


इसकी पृष्ठभूमि राजस्थान राज्यों में चल रहे कृषक आन्दोलन थे। कृषक आन्दोलन उस व्यापक असन्तोष के अंग थे, जो प्रचलित राजनीतिक और आर्थिक ढांचे में विद्यमान था। कृषकों ने विभिन्न आन्दोलनों के माध्यम से उस समय के ठिकानेदारों और जागीरदारों के अत्याचारों को तथा कृषि संबंध में आये विचार को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


जागीरदारी व्यवस्था उस पैतृकवादी स्वरुप को छोड़कर शोषणात्मक स्वरुप ले चुकी थी। प्रचलित व्यवस्था में असन्तोष व्यापक था। उनके असन्तोष को मूर्तरूप देने के लिए संगठन की आवश्यकता थी। 1919 ई. में राजस्थान  सेवा संघ के स्थापित हो जाने से जनता की अभिव्यक्ति के लिए एक सशक्त माध्यम मिल गया।


1920 से 1929 तक राजस्थान में होने वाले कृषक आन्दोलन का नेतृत्व इसी संघ के द्वारा किया गया था


राजस्थान में प्रजामण्डल आन्दोलन ( Praja Mandal movement in Rajasthan )


जयपुर प्रजामण्डल (1931)


बूंदी प्रजामण्डल (1931)


मारवाड़ प्रजामण्डल (1934)


कोटा प्रजामण्डल (1938)


धौलपुर प्रजामण्डल (1936)


बीकानेर प्रजामण्डल (4 अक्टूबर 1936)


शाहपुरा (18 अप्रेल 1938)


मेवाड़ प्रजामण्डल (24 अप्रेल 1938)


अलवर प्रजामण्डल (1938)


भरतपुर प्रजामण्डल (मार्च 1938)


सिरोही प्रजामण्डल (22 जनवरी 1939)


करौली प्रजामण्डल (अप्रेल 1938)


किशनगढ़ प्रजामण्डल (1939)


कुशलगढ़ प्रजामण्डल (अप्रेल 1942)


बांसवाड़ा प्रजामण्डल (1943)


डूंगरपुर प्रजामण्डल (26 जनवरी 1944)


प्रतापगढ़ प्रजामण्डल (1945)


जैसलमेर प्रजामण्डल (15 दिसम्बर 1945)


झालावाड़ प्रजामण्डल (25 नवम्बर 1946)


Jaipur Praja Mandal ( जयपुर प्रजामण्डल )

किसने जयपुर में प्रजामंडल का गठन किया

स्थापना कपूरचंद पाटनी की अध्यक्षता में 1931 में गठित पर्याप्त जन सहयोग नही मिलने के कारण ये प्रजामण्डल लगभग 5 वर्षो तक निष्क्रिय रहा जो राजस्थान का प्रथम प्रजामंडल था।


पुर्नगठन 1936 ईस्वी में सेठ जमनालाल लाल बजाज व हीरालाल के प्रयासों से चिरंजीलाल मिश्र की अध्यक्षता में पुनर्गठन किया गया जमनालाल लाल बजाज का जन्म 4 नवंबर 1889 को सीकर जिले के काशी का बांस नामक गाँव मे हुआ। राजस्थान के प्रथम मनोनीत मुख्यमंत्री बने, भारत छोड़ो आन्दोलन मे भाग न लेकर जयपुर के प्रधानमंत्री मिर्जा स्माईल से समझौता किया जिसे Gental Man Agreement कहा जाता है 


इस नवगठित प्रजामण्डल ने 1937 से कार्य करना प्रारंभ कर दिया, 1938 ईस्वी में जमनालाल बजाज इस प्रजामण्डल के अध्यक्ष बने। 8 से 9 मई 1938 को इस प्रजामण्डल का प्रथम अधीवेशन हुआ।


हीरालाल शास्त्री जी के प्रयासों से शेखावाटी किसान सभा का विलय जयपुर प्रजामण्डल में कर दिया गया। प्रलय प्रतिक्षा नामों नमः शास्त्री जी का लोकप्रिय गीत था


Jaipur Public Council Act of 1939 ( जयपुर लोक परिषद अधिनियम )


इस अधिनियम में यह प्रावधान किया गया के जो भी गैर सरकारी संस्थाएं है उनका सरकार में पंचीयन करवाना आवश्यक है 1 फरवरी 1939 को जयपुर प्रजामण्डल को अवैध घोषित कर जमनालाल बजाज का जयपुर में प्रवेश निषेध किया गया , जमनालाल बजाज तथा अन्य सभी मुख्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया


बंदी नेताओं के साथ सरकार का व्यवहार अभी भी अनुचित ही था। जमनालाल बजाज को मोरा सागर डाक बंगले में पढ़ने के लिये अखबार तक नही दिया जाता था 1 फरवरी 1939 को प्रजामण्डल ने सत्याग्रह प्रारंभ किया जिसका नेतृत्व चिरंजीलाल मिश्र कर रहे थे


स्त्रियों ने भी अपना सहयोग दिया , हीरालाल शास्त्री जी की पत्नी तथा दुर्गा देवी शर्मा का नाम इन मे उल्लेखनीय है हीरालाल शास्त्री की घोषणा के अनुसार 12 मार्च 1939 को “जयपुर दिवस” मनाया गया। सरकार द्वारा प्रजामण्डल को मान्यता देने व गाँधी के निर्देश 18 मार्च 1939 को सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया।


Jodhpur Prajamandal ( जोधपुर प्रजामंडल )


मरवाड़ प्रजामण्डल 1934 मे भंवरलाल सरार्फ ,अभयमल जैन एवम अचलेश्वर प्रसाद द्वारा स्थपना । मारवाड़ लोक परिषद 16 मई 1938 रणछोड़ दास गट्टानी(अध्यक्ष),अभयमल जैन (महामंत्री)भीमराज पुरोहित, जयनारायण व्यास ,अचलेश्वर प्रसाद शर्मा द्वारा स्थापना ।


1920- चांदमल सुराणा द्वारा मारवाड़ सेवा संघ की स्थापना।

1921- सेवा संघ द्वारा अंग्रेजी तौल चालू करने का विरोध ।

1922-24- राज्य से मादा पशुओं की निकासी का विरोध।

1924 मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना, प्रधानमंत्री सर सुखदेव प्रसाद को हटाने हेतु आंदोलन

1928 मारवाड़ लोक राज्य परिषद के अधिवेशन पर रोक।देशद्रोह के जुर्म में जयनारायण व्यास को 6 वर्ष की कैद।

1931 व्यासजी व अन्य साथी जेल से रिहा।

1937 व्यासजी मारवाड़ से निष्कासित।अचलेश्वर प्रसाद को राजद्रोह के अपराध में ढाई वर्ष की सजा।

16 मई1938 मारवाड़ लोक परिषद की स्थापना

1899 में जन्मे जयनारायण व्यास, राजस्थान के लोकनायक ,शेर, ए राजस्थान मास्टर जी ने 1938 में जोधपुर प्रजामंडल का गठन किया गया।

फरवरी 1939 व्यासजी पर से प्रतिबंध हटा।व्यासजी राज्य सलाहकार मण्डल में शामिल।।

1941 जोधपुर नगरपालिका के चुनाव।परिषद को बहुमत।व्यसजी अध्यक्ष निर्वाचित।


मई 1942 सरकार व परिषद में तनाव।व्यासजी का इस्तीफा।परिषद द्वारा प्रधानमंत्री सर डोनाल्ड फील्ड को हटाने के लिए आंदोलन। 26 मई व्यसजी गिरफ्तार।परिषद का सत्याग्रह।


जून 1942 सत्याग्रहियों द्वारा जेल में दुर्व्यवहार के विरुद्ध भूख हड़ताल। 19 जून1942 बालमुकुन्द बिस्सा की मृत्यु।


अगस्त 1942 लोक परिषद भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल।


भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल में बंद इन्ही की पेरणा से डीडवाना निवासी बालमुकंद बिस्सा ने जेल में सुधार के लिए भूख-हाफत 8 की जिससे 19 जून 1942 को इनकी मृत्यु ही गई इसलिये इन्हें राजस्थान का जतिन दास कहा जाता हैं।


सितम्बर1945 पण्डित नेहरू जोधपुर आये। नेहरू जी की सलाह पर सर डोनाल्ड फील्ड की जगह सी एस वैंकटाचरी प्रधानमंत्री नियुक्त।


1947 महाराजा उम्मेदसिंह का देहांत। हनुमंतसिंह महाराजा बने। 13 मार्च 1947 डाबड़ा किसान सम्मेलन पर हमला । चुन्नीलाल शर्मा व 4 किसान शहीद। मथुरादास माथुर, द्वारका दास पुरोहित, नृसिंह कछवाहा आदि घायल। अगस्त 1947 महाराजा जोधपुर की महाराजा धौलपुर के मार्फ़त जिन्ना से मुलाकात।


अक्टूबर 1947 वैंकटाचार्य के स्थान पर महाराजा अजीतसिंह प्रधानमंत्री। दिसम्बर1948 में वी पी मेनन व महारजा के बीच जोधपुर के राजस्थान में शामिल होनेके सम्बंध में वार्ता। महाराजा की सहमति । 30 मार्च 1949 सरदार पटेल द्वारा वृहद राजस्थान का जयपुर में उदघाटन।जोधपुर राज्य का अस्तित्व समाप्त।


Mevad Prajamandal ( मेवाड प्रजामंडल )


उदयपुर में प्रजामंडल आंदोलन की स्थापना श्री माणिक्य लाल वर्मा ने की थी मेवाड़ में प्रवेश पर रोक के कारण उन्होंने अजमेर में रहकर प्रजामंडल की स्थापना पूरी योजना बनाई थी


भूरेलाल भैया, हीरालाल कोठारी, रमेश चंद्र व्यास, भवानी शंकर वैद्य आदि के सहयोग से उदयपुर में 24 अप्रैल 1938 को श्री बलवंत बलवंत सिंह मेहता के अध्यक्षता में मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना हुई


उदयपुर सरकार द्वारा मेवाड़ प्रजामंडल को 24 सितंबर 1938 को गैरकानूनी घोषित कर दिया परंतु उसी दिन नाथद्वारा में निषेधाज्ञा के बावजूद कार्यकर्ताओं द्वारा जुलूस निकाला गया था


भूरेलाल बया को सड़क केले मेवाड़ का काला पानी में नजरबंद किया गया था गिरफ्तार करके, विजयदशमी के दिन प्रजामंडल कार्यकर्ताओं ने सत्याग्रह प्रारंभ किया क्रांतिकारी रमेश चंद्र व्यास को पहला सत्याग्रह बनकर गिरफ्तार होने का श्रेय प्राप्त है


श्री माणिक्य लाल वर्मा ने मेवाड़ का वर्तमान शासन नामक पुस्तिका छपवाकर मेवाड़ में वितरित की थी लोगों को जागृति लाने के लिए मेवाड़ प्रजामंडल मेवाड़ वासियों से एक अपील नामक पर्चे बांटे थे 24 जनवरी 1939 को मेवाड़ माणिक्य लाल वर्मा की पत्नी नारायणी देवी वर्मा एवं पुत्री प्रजामंडल आंदोलन में भाग लेने के कारण राज्य से निष्कासित कर दिया गया था


मेवाड़ प्रजामंडल में बेकार एवं बेल्ट प्रथा के विरुद्ध अभियान चलाया गया और मेवाड़ सरकार को आंदोलनकारियों के सामने झुकना पड़ा और मेवाड़ की पहली नैतिक विजय है


मेवाड़ प्रजामंडल में कांग्रेस द्वारा 9 अगस्त 1942 में शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रुप से भाग लिया था और 20 अगस्त 1942 को प्रजा मंडल की कार्यसमिति ने मेवाड़ राणा को पत्थर से चेतावनी दी कि यदि 24 घंटे के भीतर महाराणा ब्रिटिश सरकार के संबंध विच्छेद नहीं करते तो जन आंदोलन प्रारंभ किया जाएगा


3 मार्च 1947 को मेवाड़ के भावी संविधान की रूपरेखा की घोषणा की गई इसके अनुसार 46 सदस्यों की धारा सभा में 18 स्थान विशिष्ट वर्ग हेतु सुरक्षित किए गए थे और 28 स्थान संयुक्त चुनाव प्रणाली द्वारा जनता से चुने जाने थे 23 मई 1947 को मेवाड़ के वैज्ञानिक सलाहकार के मुंशी द्वारा संविधानिक सुधारों की नई प्रस्तुति दी गई थी जिसमें 56 सदस्य विधान सभा के गठन का प्रावधान था


6 मई 1948 को महाराणा ने अंतिम सरकार बनाने एवं विधानसभा निर्वाचन के बाद उत्तरदाई सरकार का गठन करने की घोषणा की परंतु इसी दौरान 18 अप्रैल 1948 को उदयपुर राज्य का राजस्थान में विलय हो गया इस प्रकार मेवाड़ प्रजामंडल के प्रयासों के आगे वही सरकार को झुकना पड़ा और धीरे-धीरे उत्तरदाई शासन की स्थापना के कदम उठाने पड़े


Shahpura Prajamandal  ( शाहपुरा प्रजामंडल )


शाहपुरा के शासक उम्मेदसिंह के समय राज्य में राष्ट्रीय आंदोलन चला।  श्री माणिक्यलाल वर्मा के सहयोग से 18 अप्रैल,1938 को श्री रमेशचन्द्र औझा, लादूराम व्यास व अभयसिंह डांगी के द्वारा शाहपुरा प्रजामंडल की स्थापना की गई।


1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय प्रजामण्डल ने शासक को अंग्रेजों से संबंध तोड़ने की माँग की।  रमेशचंद्र ओझा, लादूराम व्यास व लक्ष्मीनारायण काँटिया को बंदी बनाया गया।  शाहपुरा के प्रो. गोकुललाल असादा पहले से ही अजमेर में बंदी थे।


1946 में बन्दियों को रिहा कर शाहपुरा के शासक सुदर्शनदेव ने गोकुललाल असावा की अध्यक्षता में नया विधान तैयार कराया, जिसे 14 अगस्त,1947 को राज्य में लागू कर दिया गया व असावा के नेतृत्व में लोकप्रिय सरकार की स्थापना की।


शाहपुरा राज्य की प्रथम देशी रियासत थी, जिसमे 14 अगस्त, 1947 को जनतांत्रिक व पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना हुई।  27 सितंबर, 1947 को राजाधिराज सुदर्शनदेव ने गोकुल लाल असावा को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।


पहले शाहपुरा व किशनगढ़ को अजमेर में मिलाने का निर्णय किया गया था, किंतु जनता के विरोध के कारण उसे रद्द कर 25 मार्च, 1948 में शाहपुरा का विलय संयुक्त राजस्थान में हो गया।


Sirohi Prajamandal  ( सिरोही प्रजामण्डल )


1934 में वृद्धिशंकर त्रिवेदी द्वारा सिरोही प्रजामंडल स्थापित किया गया लेकिन यह निष्क्रिय था।  सिरोही के कुछ कार्यकर्त्ताओं ने बाद में बंबई में 16 अप्रैल 1935 को ‘प्रवासी सिरोही प्रजामंडल’ की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य सिरोही के शासक स्वरुप रामसिंह की छत्रछाया में एक उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना था।


कुछ समय पश्चात 22 जनवरी, 1939 को गोकुलभाई भट ने सिरोही में प्रजामंडल की स्थापना की और आंदोलन चलाया, जिसमें कार्यकर्त्ता बंदी बनाए गए।  गोकुलभाई भट्ट इस सिरोही प्रजामंडल के अध्यक्ष थे। गोकुलभाई भट्ट को राजस्थान का गाँधी भी कहा जाता है


1942 की अगस्त क्रांति में भी सिरोही में आंदोलन चला। 1946 में तेजसिंह सिरोही की गद्दी पर बैठा, किंतु जनता द्वारा आंदोलन करने पर अभयसिंह को गद्दी पर बैठाया गया।


5 अगस्त, 1949 को आबू पर्वत सिरोही को वापस लौटा दिया गया और मंत्रिमण्डल में प्रजामण्डल का प्रतिनिधि जवाहरमल सिंधी को शामिल किया गया।


Bikaner Prajamandal  ( बीकानेर प्रजामंडल )

1913ई. मे बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने बीकानेर राज्य के लिए ‘प्रतिनिधि सभा’ का गठन किया।महाराजा गंगा सिंह ने बीकानेर राज्य मे प्रतिनिधि सभा (रिप्रेजेण्टेटिव असेंबली) की स्थापना की घोषणा कर अगले वर्ष उसके प्रथम अधिवेशन का उद्घाटन किया।


उस समय इसमे कुल 35 सदस्य थे। 1917 ई.मे इसे ‘विधानसभा’ का नाम दिया गया। 1937 ई. तक इसकी सदस्य संख्या बढ़कर 45 कर.दी गई थी। इस प्रकार बीकानेर राजस्थान का पहला राज्य था जिसनें बीकानेर मे प्रजामण्डल आंदोलन को आगे से बढा़कर संरक्षण प्रदान किया।


डी. आर. मानकर ने लिखा-भारत के लिए संघात्मक संविधान के सर तेज बहादुर सप्रू के प्रस्ताव को स्वीकार था।


डाॅ. करणीसिंह लिखते हैं कि बीकानेर गर्व के साथ कह सकता हैं कि यह राजपूताना मे प्रथम राज्य था।


1928ई. मे महाराजा ने ग्राम पंचायतों को दीवानी, फौजदारी और प्रबंध संबंधी निश्चित अधिकार प्रदान किये। 1937 ई. मे महाराजा ने अपने राज्य मे म्युनिसिपल बोर्ड और डिस्टि्क्ट बोर्ड कायम किये। महाराज गंगासिंह जी प्रथम भारतीय नरेश थे जिन्होंने प्रिवीपर्स तथा सिविल लिस्ट पद्धति चालू की।


4 जुलाई 1932 ई.से बीकानेर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम आरंभ कर दिया, जो मार्शल लाॅ की ही भांति कठोर था। 4अक्टूबर,1936 को बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना की मेघाराम वैध को अध्यक्ष बनाया।


मार्च, 1937 मे सरकार ने प्रजामण्डल के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। 22 मार्च 1937 को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के तत्वाधान मे दिल्ली मारवाड़ी लाईब्रेरी मे एक सभा का आयोजन किया। मछाराम ने ‘कलकत्ता मे बीकानेर राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की तथा ‘बीकानेर की थोथी पोथी’ नामक पुस्तिका प्रकाशित की।


22 जुलाई,1942 को रघुवरदयाल गोयल के नेतृत्व मे व्यापक जनाधर वाली ‘प्रजा परिषद’की स्थापना हुई। 3 फरवरी,1943 को महाराजा गंगासिंह का निधन हो गया।उनका पुत्र सार्दूलसिंह बीकानेर का राजा हुआ। उसने भी दमन की नीति जारी रखी 21 जून ,1946 को महाराजा ने घोषणा की राज्य मे उतरदायी शासन की स्थापना की जायेगी


बीकानेर मे चना निकासी विवाद: 1947ई.

महाराजा सार्दूलसिंह ने 22 जुलाई,1946 को पं. जवाहरलाल नेहरु को एक पत्र लिखा कि तिरंगा झण्डा काग्रेस का झण्डा हैं। बीकानेर राज्य एक स्वतंत्र ईकाई हैं। इस पर 12 अगस्त ,1946को नेहरू ने महाराजा को पत्र लिखकर उनके विचारों से अपनी सहमति व्यक्त की।


अमर शहीद जीनगर बीरबल सिहं ढालिया: 30जून 1946 को हमेशा हमेशा के लिए अपनी आंखे मूंद कर ली। 1 जुलाई 1946 को शहीद के पार्थिव शरीर का जुलूस निकाला। जिसमे.आजाद हिंद फौज के कर्नल अमरसिहं तिरंगा झण्डा लिये थे, बीकानेर प्रजामंडल ने 17 जुलाई, 1946 को बीरबल दिवस मनाया।



राजस्थान  के प्रमुख आंदोलन से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी


प्रश्न गोविंद गिरी द्वारा स्थापित संपसभा का प्रथम सम्मेलन हुआ?

उत्तर मानगढ़ की पहाड़ी पर

प्रश्न मानगढ़ हत्याकांड हुआ था?

उत्तर 17 नवंबर 1993

प्रश्न दुधवाखारा किसान आंदोलन किसके नेतृत्व में किया गया?

उत्तर  चौधरी हनुमान सिंह

प्रश्न कौन सी भील महिला राजस्थान की स्वतंत्रता सेनानी थी?

उत्तर काली बाई

प्रश्न बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना कब की गई?

उत्तर 1936 (मक्का ,राम वैद्य के द्वार)

प्रश्न राजस्थान में एकी आंदोलन को किसके नेतृत्व प्रदान किया?

उत्तर मोतीलाल तेजावत

प्रश्न अजमेर में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की गई थी?

उत्तर विजय सिंह पथिक के द्वारा

प्रश्न राजस्थान सेवा संघ की स्थापना कब की गई?

उत्तर वर्धा में (1919)

प्रश्न वीर क्षेत्र में बाबाजी के नाम से जाने जाते थे?

उत्तर मोतीलाल तेजावत

(Important Questions for Rajasthan ke Pramukh Andolan)

प्रश्न 1927 में कुमार मदन सिंह के नेतृत्व में किसानों ने कहा आंदोलन किया था?

उत्तर करौली में

प्रश्न पंडित नैनू राम किस आंदोलन से संबंधित थे?

उत्तर बूंदी बारां किसान आंदोलन (2 अप्रैल 1923)

प्रश्न नींबू चुडा किसान आंदोलन हत्याकांड राजपूताना की किस रियासत में हुआ था?

उत्तर अलवर (14 मई 1925)

प्रश्न मीणाओं ने रियासत काल के किस अधिनियम के विरुद्ध आंदोलन किया?

उत्तर जरायम पेशा (अधिनियम 1930 में)

प्रश्न भगतपंथआंदोलन नई साड़ी आंदोलन स्थापना किसके द्वारा की गई थी?

उत्तर गोविंद गुरु

प्रश्न बिजोलिया आंदोलन का दूसरी बार प्रारंभ होने का कारण था?

उत्तर चंवरी कर

प्रश्न शेखावटी की किस महिला ने किसान आंदोलन का नेतृत्व किया?

उत्तर किशोरी देवी

प्रश्न मेवाड़ में प्रजामंडल आंदोलन का संस्थापक कौन था?

उत्तर  माणिक्य लाल वर्मा

प्रश्न राजस्थान के किस आंदोलन में सेवा संघ के साथ हुए समझौते को सरकार ने बॉल वैश्विक फैसले की संज्ञा दी?

उत्तर बेंगू किसान आंदोलन

प्रश्न किस राजपूत राज्य के प्रजामंडल की स्थापना कोलकाता में की गई थी?

उत्तर बीकानेर प्रजामंडल

प्रश्न राजस्थान का जलियावालाबाग के नाम से प्रसिद्ध स्थान मानगढ़ धाम किस जिले में स्थित है?

उत्तर बांसवाड़ा

प्रश्न टच कमीशन संबंधित है?

उत्तर बेगू किसान आंदोलन

प्रश्न राजस्थान के किस क्रांतिकारी की बरेली की जेल में अपना के कारण व्यक्ति हुए?

उत्तर प्रताप सिंह बाहरहट


प्रजामण्डल आंदोलन से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न -


डूँगरपुर प्रजामण्डल की स्थापना किसके द्वारा की गयी ?

- भोगीलाल पंड्या द्वारा (1944)

भारत छोड़ो आंदोलन के संचालन हेतु ' आज़ाद मोर्चा ' का गठन कहाँ हुआ था ?

- जयपुर

चुन्नी लाल व अमृतलाल पायक का सम्बन्ध किस प्रजामंडल आंदोलन से जुड़ा रहा ?

- प्रतापगढ़ प्रजामंडल

' जैसलमेर में गुंडा राज ' नामक पुस्तक किसके द्वारा लिखी गयी ?

- सागरमल गोपा

किस राजपूत राज्य के प्रजामंडल की स्थापना कलकत्ता में की गयी ?

- बीकानेर प्रजामंडल

" काँगड़ कांड " किस प्रजामण्डल आंदोलन के दौरान घटित हुआ ?

- बीकानेर प्रजामंडल

1938 ई. में स्थापित मेवाड़ प्रजामण्डल का प्रथम अध्यक्ष कौन था ?

- बलवंत सिंह मेहता

करौली प्रजामण्डल की स्थापना 1938 में किसके द्वारा की गयी ?

- त्रिलोकचंद माथुर

31 दिसम्बर, 1945 से 1 जनवरी, 1946 तक उदयपुर में ऑल इंडिया स्टेट्स पीपल्स कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता किसने की ?

- पंडित जवाहर लाल नेहरू

कृष्ण दिवस किस कहाँ मनाया गया ?

- मारवाड़ 

हाड़ौती सेवा संघ का संस्थापक कौन था ?

- नयनू राम शर्मा

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने किस अधिवेशन में देशी रियासतों के स्वतंत्रता आंदोलन को अपने अंग के रूप में अपनाया ?

- हरिपुरा अधिवेशन

सिरोही राज्य प्रजामंडल का संस्थापक कौन था ?

- गोकुल भाई भट्ट

बीकानेर प्रजामंडल के प्रथम अध्यक्ष कौन थे ?

- मघाराम वैद्य

जेंटिलमेन्स एग्रीमेंट किस किस के बीच हुआ ?

- मिर्जा स्माइल व हीरालाल शास्त्री के मध्य (1942)

मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना किसके द्वारा की गयी ?

- माणिक्य लाल वर्मा

बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना किस वर्ष हुई ?

- 1936

मीठा लाल व्यास का सम्बन्ध किस प्रजामंडल से है ?

- जैसलमेर राज्य प्रजामण्डल

बीरबल दिवस किस प्रजामण्डल में मनाया गया ?

- बीकानेर प्रजामण्डल में

जयपुर हितकारिणी सभा को स्थापना किसने की ?

- पण्डित हीरालाल शास्त्री

' मेवाड़ राज्य का शासन ' किताब किसके द्वारा लिखी गयी ?

- माणिक्य लाल वर्मा

बांसवाड़ा प्रजामण्डल की स्थापना किसने की थी ?

- भूपेंद्र नाथ त्रिवेदी (1945)


Tuesday, January 19, 2021

January 19, 2021

राजस्थान मे किसान आंदोलन

( राजस्थान मे किसान आंदोलन )

1. बिजौलिया किसान आंदोलन ( Bijaulia Kisan Movement 1897-1941 )-

बिजौलिया किसान आंदोलन मेवाड़ रियासत में हुआ था जिसे धाकड़ जाट किसान आंदोलन भी कहा जाता है। 1897 ई. में साधू सिताराम दास के नेतृत्व में बिजौलिया किसान आन्दोलन की षुरूआत हुई। उस समय बिजोलिया के ठिकानेदार राव कृष्णसिंह थे और महाराणा फतेह सिंह थे बिजोलिया के किसानों से भू राजस्व निर्धारण और संग्रहण के लिए लाटा कुंता पद्धति प्रचलित थी इसके अंतर्गत किसान अपनी मेहनत की कमाई से भी वंचित रह जाता था 

प्रथम प्रयास के लिए 1897 में उपरमाल के किसानों ने गिरधारीपुरा नमक ग्राम में सामूहिक रूप से किसानों की ओर से नानजी और ठाकरे पटेल को उदयपुर भेजकर ठिकाने के जुल्मों के विरुद्ध महाराणा से शिकायत करने का निर्णय किया लेकिन कोई कार्यवाही नहीं होने के कारण ठिकानेदार राव कृष्ण सिंह द्वारा नानजी और ठाकरी पटेल को उपरमाल से निर्वासित कर दिया गया

1903 ई. में कृष्ण सिंह ने चंवरी कर लगा दिया। 5 रू. का यह कर किसानों की कन्याओं के विवाह के संबंधित था

उसके बाद 1906 में कृष्ण सिंह के निधन के पष्चात् पृथ्वी सिंह ने किसानों पर तलवार बंधाई कर लगा दिया। जो राज्यभिषेक संबंधी कर था। जिसके कारण किसानों ने साधु सीताराम दास, फतेह करण चारण एवं ब्रह्मदेव के नेतृत्व में विद्रोह किया

किसानों ने अपनी कन्याओं के विवाह स्थगित कर आन्दोलन तेज कर दिया। 1916 ई. में विजयसिंह पथिक इस आंदोलन से जुड़े, उनका वास्तविक नाम भूपसिंह गुर्जर था। अतः साधू सिताराम दास व रामनारायण चौधरी के आग्रह पर बिजौलिया के किसान नेतृत्व को स्वीकार कर लिया। इन्होने कानपुर से प्रकाषित प्रताप नामक समाचार पत्र के माध्यम से बिजौलिया के किसानों की दुर्दषा को उजागर किया। 

1917 में उपरमाल पंच बोर्ड की स्थापना की जिस का सरपंच श्री मन्ना पटेल को बनाया गया किसानों की मांगों के औचित्य की जांच करने के लिए अप्रैल 1919 में न्यायमूर्ति बिंदु लाल भट्टाचार्य जांच आयोग गठित हुआअतः गांधी जी जैसे बड़े नेता भी इस आन्दोेलन से जुडे

राजपूताने के एडीजी रोबर्ट होलेंड स्वयं 4 फरवरी 1922 को बिजोलिया गए होलैंड के प्रयासों से 11 जून 1922 को सम्मानजनक समझौता हुआ परिणामस्वरूप किसानों के 84 मे से 35 करो को समाप्त करने का आष्वासन दिया किन्तु 1922 ई. तक उन्हे क्रियान्वित नहीं किया गया। अतः किसानों ने आन्दोलन पुनः आरम्भ किया।

बिजौलिया किसान आंदोलन के दौरान विजयसिंह पथिक पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया जिसके कारण 1927 को पथिक जी इस आंदोलन से अलग हो गए और नेतृत्व सेठ जमुनालाल जी एवं हरिभाऊ जी उपाध्याय के हाथ में आ गया

आन्दोलन के अन्त में माणिक्यलाल वर्मा, हरिभाऊ उपाध्याय तथा जमनालाल बजाज ने बिजौलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व किया। 1941 ई. में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी विजय राघवाचार्य ने राजस्व विभाग के मंत्री डॉक्टर मोहन सिंह मेहता को बिजोलिया भेजा उन्होंने माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में किसानों की सभी मांगे मान मान कर उनकी जमीने वापस दिलवा दी

लगभग 44 वर्षो तक चला किसान आन्दोलन अन्त में सफल हुआ। यह आन्दोलन पूर्णतः अहिंसात्मक किसान आन्दोलन था। श्री वर्मा जी के जीवन की यह प्रथम बड़ी सफलता थी यह आंदोलन भारत वर्ष का प्रथम व्यापक और शक्तिशाली किसान आंदोलन था

2. बेंगु किसान आंदोलन ,चित्तौड़गढ़ ( Bengu Kisan Movement 1921-23 )

बिजोलिया किसान आन्दोलन से प्रभावित चित्तौड़गढ़ रियासत में बेगू किसान आंदोलन 1921 में मेनाल नामक स्थान पर किसानों से लाग बाग और उनकी लगान के कारण रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में शुरू हुआ  किसानो ने रामनाराणण चौधरी के नेतृत्व में बेगू में किसान सभा आयोजित की। उन्होंने फैसला किया कि ना तो फसल का कुंता कराया जायेगा और ना ही लगाते दी जाएगी

बेगू की जागीरदार ठाकूर अनूपसिंह ने सभा पर फायरिंग करवा दी। जिसमें रूपाजी धाकड़ व कृपा जी धाकड़ दो किसान मारे गए। अतः आन्दोलन और तेज हुआ। आंदोलन की शुरूआत रामनारायण चौधरी ने की बाद में इसकी बागड़ोर विजयसिंह पथिक ने सम्भाली थी।

ठाकुर अनूपसिंह को किसानों के आगे झुकना पड़ा। अनूप सिंह ने किसानों की मागे मान ली। अंग्रेजों ने अनूपसिंह को नजरबंद कर दिया और अनूपसिंह व किसानों के मध्य समझौते को बोल्शेविक समझोते का नाम दिया। आन्दोलन की जांच के लिए ट्रेच आयोग का गठन किया किसानों ने उसका बहिष्कार किया 13 जुलाई 1923 को किसानों की अहिंसक सभा पर ट्रेंच द्वारा लाठीचार्ज करवाया गया रूपा जी,  कृपा जी नामक दो किसान शहीद हुए

पथिक जी ने बेगू आंदोलन की बागडोर संभाली और अंततः आंदोलन के कारण बने दबाव से बेगू ठीकाने में व्याप्त मनमानी के राजगढ़ ठाकुर शाही के स्थान पर बंदोबस्त व्यवस्था लागू की गई

3. अलवर में किसान आंदोलन ( Kisan movement in Alwar )

सुअरपालन विरोधी आंदोलन (1921):
अलवर में बाड़ों में सुअर पालन किया जाता था, जब कभी इन सुअर को खुला छोड़ा जाता था, तब ये फसल नष्ट कर देते थे। जिसका किसानों ने विरोध किया, जबकि सरकार ने सुअरों को मारने पर पाबंदी लगा रखी थी। लेकिन अंत में 1921 में सरकार के द्वारा सुअरों को मारने की अनुमति दे दी एवं आंदोलन शांत हो गया।

नीमूचणा किसान आंदोलन ( Neemuchana Kisan Movement 1923-24):
1923-24 मेंअलवर के महाराजा जयसिंह द्वारा लगान की दर बढ़ाने पर 14 मई, 1925 को नीमूचणा गांव में 800 किसानों ने एक सभा आयोजित की जिस पर पुलिस ने गोलियां चलाई जिसमें सैकड़ों किसान मारे गए। गांधीजी ने इस आंदोलन को जलियांवालाबाग कांड –  ‘Dyrism Double Distilled’ से भी वीभत्स की संज्ञा दी । सरकार को लगान के बारे में किसानों के समक्ष झुकना पड़ा आंदोलन रुक गया

4. मारवाड़ में किसान आन्दोलन ( Marwar Kisan Movement )

मारवाड़ में भी किसानों पर बहुत अत्याचार होता था। 1923 ई० में जयनारायण व्यास ने ‘मारवाड़ हितकारी सभा’ का गठन किया और किसानों को आन्दोलन करने हेतु प्रेरित किया, परन्तु सरकार ने ‘मारवाड़ हितकारी सभा’ को गैर – कानूनी संस्था घोषित कर दिया।

सरकार ने किसान आन्दोलन को ध्यान में रखते हुए मारवाड़ किसान सभा नामक संस्था का गठन किया, परन्तु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई। अब सरकार ने आन्दोलन का दमन करने हेतु दमन की नीती का सहारा लिया, परन्तु उससे भी कोई लाभ नहीं हुआ।

चण्डावल तथा निमाज नामक गाँवों के किसानों पर निर्ममता पूर्वक अत्याचार किये गये तथा डाबरा में अनेक किसानों को निर्दयता पूर्वक मार दिया गया। इससे सम्पूर्ण देश में उत्तेजना की लहर फैल गई, किन्तु सरकार ने इसके लिए किसानों को उत्तरदायी ठहराया।

आजादी के बाद भी जागीरदार कुछ समय तक किसानों पर अत्याचार करते रहे, परन्तु राज्य में लोकप्रिय सरकार के गठन के बाद किसानों को खातेदारी के अधिकार मिल गये।

5. बूंदी किसान आंदोलन ( Bundi Kisan Movement 1926):-

बूंदी किसान आंदोलन को बरड़ किसान आंदोलन भी कहते हैं। 1926 में पंडित नैनू राम शर्मा के नेतृत्व में बूंदी के किसानों ने लगान लाग बाग की ऊंची दरों के विरुद्ध आंदोलन छेड़ा। इनके नेतृत्व में डाबी नामक स्थान पर किसानों का एक सम्मेलन बुलाया, पुलिस ने किसानों पर गोलिया चलाई, जिसमें झण्डा गीत गाते हुए नानकजी भील शहीद हो गए।
कुछ समय बाद माणिकलाल वर्मा ने इसका नेतृत्व किया। यह आंदोलन 17 वर्षं तक चला एवं 1943 में समाप्त हो गया।

6. मातृकुण्डिया किसान आंदोलन, चित्तौड़गढ़ ( Matrukundia Kisan Movement ):-

मातृकुण्डिया किसान आंदोलन 22 जून, 1880 में हुआयह एक जाट किसान आंदोलन था। इसका मुख्य कारण नई भू-राजस्व व्यवस्था थी। इस समय मेवाड़ के शासक महाराणा फतेहसिंह थे।

7. भोमट का भील आन्दोलन ( Bhomat Bhil movement 1918)

1918 ई० में मेवाड़ सरकार के प्रशासनिक सुधारों के विरुद्ध भोमट के भीलों ने आन्दोलन छेड़ दिया। गोविन्द गुरु ने भीलों में एकता स्थापित करने का प्रयास किया। मोतीलाल तेजावत ने भील आन्दोलन का नेतृत्व किया, जिसके कारण इस आन्दोलन ने और जोर पकड़ लिया।

भीलों ने लागत तथा बेगार करने से इनकार कर दिया। सरकार ने आन्दोलन को कुचलने के लिए दमन – चक्र का सहारा लिया, किन्तु उसे सफलता नहीं मिली। इस आन्दोलन से भीलों को अनेक सुविधाएँ प्राप्त हुई। भीलों में सर्वप्रथम मोतीलाल तेजावत ने राजनीतिक चेतना जागृत की। इसके बाद भीलों की आर्थिक स्थिति को सुधारने तथा उनके अन्ध – विश्वासों को दूर करने के लिए बनवासी संघ की स्थापना की गई।

8. दूधवा-खारा किसान आंदोलन ( Dudhawa-Khara Kisan Movement 1946-47):-

यह बीकानेर रियासत के चुरू में हुआ। बीकानेर रियासत के दूधवाखारा व कांगड़ा गांव के किसानों ने जागीरदारों के अत्याचार व शोषण के विरुद्ध आंदोलन किया। इस समय बीकानेर के शासक शार्दुलसिंजी (गंगासिंहजी के पुत्र) थे। इस आंदोलन का नेतृत्व रघुवरदयाल गोयल, वैद्य मघाराम, हनुमानसिंह आर्य के द्वारा किया गया। जागीरदारों ने किसानों पर भीषण अत्याचार किए गए आंदोलन को कुचल दिया

9. शेखावटी किसान आंदोलन ( Shekhawati Kisan Movement 1925):-

सीकर मे ठाकुर कल्याण सिंह द्वारा 1922 ईस्वी में 25% से 50% तक भूमि लगान वसूल किए जाने के कारण किसानों ने व्यापक आंदोलन प्रारंभ कर दिया यह आंदोलन पलथाना, कटराथल, गोधरा, कुन्दनगांव आदि गांवों में फैला हुआ था। खुड़ी गांव और कुन्दन गांव में पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही में अनेक किसान मारे गये। शेखावटी किसान आंदोलन में जयपुर प्रजामण्डल का योगदान था। 1946 में हीरालाल शास्त्री के माध्यम से आंदोलन समाप्त हुआ।

शेखावाटी आंदोलन सीकर आंदोलन का ही विस्तार था जिसमें झुनझुनु चुरु क्षेत्र के किसानों द्वारा विभिन्न स्थान पर सामंतो एवं ठाकुर के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई गई

10. किषोरीदेवी महिला आंदोलन (25 अप्रैल, 1934):-

सीहोर के ठाकुरद्वारा जाट महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के विरोध में 25 अप्रैल 1934 को कटराथल नामक स्थान पर सरदार हरलालसिंह की पत्नि किषोरदेवी के नेतृत्व में जाट महिलाओं का एक सम्मेलन बुलाया गया। जिसमें लगभग 10,000 महिलाओं ने भाग लिया। श्रीमती रमादेवी, श्रीमती दुर्गादेवी, श्रीमती उत्तमादेवी ने इस आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था।ठाकुर देशराज की पत्नी श्रीमती उत्तमा देवी के ओजस्वी भाषण ने महिलाओं में साहस और निर्भयता का संचार किया  किषोरीदेवी के प्रयासों से शेखवाटी क्षेत्र में राजनैतिक चेतना जागृत हुई।

11. मेव किसान आंदोलन ( Meow Kisan Movement 1931):-

यह अलवर व भरतपुर (मेवात) में हुआ। मेव जाति का आंदोलन 1931 में ही शुरू हुआ था  अलवर, भरतपुर के मेव बाहुल्य क्षेत्र को मेवात कहते हैं। यह लगान विरोधी आंदोलन था। आंदोलन का नेतृत्व मोहम्मद अली के द्वारा किया गया। 1932 में तो इसका नेतृत्व यासीन खान ने किया अलवर के किसानों ने लगान देने से इनकार कर दिया 1933 में ब्रिटिश सरकार ने किसानों की कुछ मांगे मानकर आंदोलन रुका

12 जयसिंहपुरा किसान हत्याकाण्ड (1934):-

21 जून 1934 को डूंडलोद के ठाकुर के भाई ईश्वर सिंह ने जयसिंहपुरा में खेत जोत रहे किसानों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई जिसमें अनेक किसान शहीद हुए। जयपुर रियासत में जयसिंहपुरा शहीद दिवस मनाया गया 

ईश्वर सिंह व उसके साथियों पर मुकदमा चलाया गया उन्हें कारावास की सजा हुई जयपुर राज्य में यह प्रथम मुकदमा था जिसमें जाट किसानों के हत्यारों को सजा दिलाना संभव हो सका

13. सीकर शेखावाटी किसान आंदोलन

जयपुर रियासत में सीकर टिकाने के ठाकुर कल्याण सिंह द्वारा बड़ी हुई दर् के विरोध में लगान वसूलने पर राजस्थान जाट क्षेत्रीय सभा (1931) के तत्वाधान में पलथाना में जाट सम्मेलन 1933 आयोजित किया गया इसके बाद 13 अगस्त 1934 को एवं तत्पश्चात 15 मार्च 1935 को वे किसानों व जागीरदारों के मध्य समझौतों का पालन न करने पर इस मुद्दे को अखिल भारतीय स्तर पर तथा जून 1935 को प्रसन्न के माध्यम से (हाउस ऑफ कॉमंस )में उठाया गया फलस्वरुप जयपुर महाराजा के साथ मध्यस्ता में समझौता हुआ

14. जाट किसान आंदोलन

22 जून 1880 को चित्तौड़गढ़ के रशिम परगना स्थित मातृकुंडिया नामक स्थान पर हजारों जाट किसानों ने भू राजस्व व्यवस्था के विरुद्ध जबरदस्त प्रदर्शन किया उस समय मेवाड़ महाराणा फतेह सिंह अवयस्क थे

15. जयपुर राज्य प्रजामंडल द्वारा जाट सम्मेलन

3 दिसंबर 1945 को जयपुर राज्य प्रजामंडल द्वारा ताज सर नामक स्थान पर विशाल जाट सम्मेलन का आयोजन किया गया प्रजामंडल समिति के सदस्य हीरालाल शास्त्री टीकाराम पालीवाल सरदार हरलाल सिंह और एडवोकेट श्री विद्याधर कुल्हारी थे
इनके द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन राज्य के भूमि सुधारों के इतिहास में मैग्नाकार्टा कहा जा सकता है यह एक संपूर्ण दस्तावेज था जिसमें किसानों से संबंधित सभी समस्याओं भूमि का स्थाई बंदोबस्त Lagaan की न्यायोचित दर भूमि पर किसान का स्वामित्व बेदखली के विरुद्ध सुरक्षा लाग बाग वह बेगार तथा खेतों पर लगाए गए पेड़ों के अधिकार आदि का समाधान प्रस्तुत किया गया था


राजस्थान  के प्रमुख आंदोलन से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी

प्रश्न गोविंद गिरी द्वारा स्थापित संपसभा का प्रथम सम्मेलन हुआ?

उत्तर मानगढ़ की पहाड़ी पर

प्रश्न मानगढ़ हत्याकांड हुआ था?

उत्तर 17 नवंबर 1993

प्रश्न दुधवाखारा किसान आंदोलन किसके नेतृत्व में किया गया?

उत्तर  चौधरी हनुमान सिंह

प्रश्न कौन सी भील महिला राजस्थान की स्वतंत्रता सेनानी थी?

उत्तर काली बाई

प्रश्न बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना कब की गई?

उत्तर 1936 (मक्का ,राम वैद्य के द्वार)

प्रश्न राजस्थान में एकी आंदोलन को किसके नेतृत्व प्रदान किया?

उत्तर मोतीलाल तेजावत

प्रश्न अजमेर में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की गई थी?

उत्तर विजय सिंह पथिक के द्वारा

प्रश्न राजस्थान सेवा संघ की स्थापना कब की गई?

उत्तर वर्धा में (1919)

प्रश्न वीर क्षेत्र में बाबाजी के नाम से जाने जाते थे?

उत्तर मोतीलाल तेजावत

(Important Questions for Rajasthan ke Pramukh Andolan)

प्रश्न 1927 में कुमार मदन सिंह के नेतृत्व में किसानों ने कहा आंदोलन किया था?

उत्तर करौली में

प्रश्न पंडित नैनू राम किस आंदोलन से संबंधित थे?

उत्तर बूंदी बारां किसान आंदोलन (2 अप्रैल 1923)

प्रश्न नींबू चुडा किसान आंदोलन हत्याकांड राजपूताना की किस रियासत में हुआ था?

उत्तर अलवर (14 मई 1925)

प्रश्न मीणाओं ने रियासत काल के किस अधिनियम के विरुद्ध आंदोलन किया?

उत्तर जरायम पेशा (अधिनियम 1930 में)

प्रश्न भगतपंथआंदोलन नई साड़ी आंदोलन स्थापना किसके द्वारा की गई थी?

उत्तर गोविंद गुरु

प्रश्न बिजोलिया आंदोलन का दूसरी बार प्रारंभ होने का कारण था?

उत्तर चंवरी कर

प्रश्न शेखावटी की किस महिला ने किसान आंदोलन का नेतृत्व किया?

उत्तर किशोरी देवी

प्रश्न मेवाड़ में प्रजामंडल आंदोलन का संस्थापक कौन था?

उत्तर  माणिक्य लाल वर्मा

प्रश्न राजस्थान के किस आंदोलन में सेवा संघ के साथ हुए समझौते को सरकार ने बॉल वैश्विक फैसले की संज्ञा दी?

उत्तर बेंगू किसान आंदोलन

प्रश्न किस राजपूत राज्य के प्रजामंडल की स्थापना कोलकाता में की गई थी?

उत्तर बीकानेर प्रजामंडल

प्रश्न राजस्थान का जलियावालाबाग के नाम से प्रसिद्ध स्थान मानगढ़ धाम किस जिले में स्थित है?

उत्तर बांसवाड़ा

प्रश्न टच कमीशन संबंधित है?

उत्तर बेगू किसान आंदोलन

प्रश्न राजस्थान के किस क्रांतिकारी की बरेली की जेल में अपना के कारण व्यक्ति हुए?

उत्तर प्रताप सिंह बाहरहट

राजस्थान में किसान आंदोलन के कारण

1. बिजौलिया किसान आंदोलन-


✍ यह भारत का प्रथम अहिंसात्मक और संगठनात्मक किसान आंदोलन था।
✍ इस आंदोलन को प्रारम्भ करने का श्रय मेवाड़ रियासत को दिया जाता है।
✍ बिजौलिया ठिकाने के संस्थापक अशोक परमार थे जो भरतपुर के जगनेर के रहने वाले थे।
✍ अशोक परमार ने खानवा के युद्ध मे राणा सांगा का साथ दिया था इससे खुश होकर राणा सांगा ने अशोक परमार को बिजौलिया कि उपरमाल जागीर प्रदान कर दी।
✍ उपरमाल जागीर कि सदरमुकाम राजधानी थी।
✍ वर्तमान मे बिजौलिया भीलवाड़ा मे स्थित है।
✍ बिजौलिया मे अधिकांश ( 60% ) किसान धाकड़ जाती के थे।

👉 बिजौलिया किसान आंदोलन के कारण-

✍ दौषपुर्ण भू-राजस्व पद्दती और भू-राजस्व कि वसुलि का गलत तरीका ( लाटा और कूँता )
✍ बिजौलिया मे 84/86 लागबाग लि जाती थी।
✍ किसानो कि कर्जदारी
✍ निःशल्क बेगार

👉 बिजौलिया किसान आंदोलन के कुल तीन चरण थे।

(अ) बिजौलिया किसान आंदोलन का प्रथम चरण-( 1897-1915 तक )

✍ प्रथम चरण मे बिजौलिया किसान आंदोलन का नेतृत्व साधु सिताराम दास के द्वारा किया गया।
✍ 1894 मे जागीदार राव गोविंद दास कि मृत्यु के बाद उसका बेटा किशन सिंह/कृष्ण सिंह नया जागीदार बना।
✍ कष्ण सिंह के काल मे किसानो से 84 प्रकार कि लाग बाग लि जाती थी।
✍ सन् 1897 मे किशन सिंह/कृष्ण सिंह कि शिकायत करने हेतु किसानो ने नानजी पटेल व ठाकरी पटेल को मेवाड़ के राणा फतेह सिंह के पास भेजा।
✍ बिजौलिया किसान अांदोलन के दौरान मेवाड़ का राणा फतेह सिंह था।
✍ किसानो कि शिकायत कि जाँच हेतु महाराणा फतेह सिंह ने हाकिम हुसैन को भेजा था।

✍ सन् 1903 मे किशन सिंह ने एक नई लाग लागू कि जो चवरी कर के नाम से प्रसिद्ध थी जिसके अन्तर्गत प्रत्येक किसान को अपनी बेटी के  विवाह पर 5 रुपये लाग के रुप मे देने होगे।

✍ सन् 1906 मे कृष्ण सिंह कि मृत्यु के बाद उनका पुत्र पृथ्वी सिंह नया जागीदार बना।
✍ पृथ्वी सिंह ने जागीदार बनते हि तलवार बंधि कर नामक एक नई लाग लागू कर दी।
✍ तलवार बंधि कर उतराधिकारी कर था।
✍ एेसी परिस्थितियो मे किसानो ने साधु सिताराम दास, फतहकरण चारण और ब्रह्मदेव से शिकायत कि थी।
✍ जागीदार ने फतहकरण चारण और ब्रह्मदेव को राज्य से बाहर निकाल दिया और साधु सिताराम दास को पुस्तकाल्य कि नौकरी से हटा दिया।
✍ सन् 1914 मे पृथ्वी सिंह कि मृत्यु के बाद उनका पुत्र केशरी सिंह नया जागीदार बना जिसने लाग बाग को यथावत रखा।
✍ सन् 1916 मे साधु सिताराम दास ने उमा जी के खेड़े/ बारीसल गाँव मे किसान पंच बोर्ड कि स्थापना कि थी।

(ब) बिजौलिया किसान आंदोलन का दुसरा चरण-( 1916-1922 तक )

✍ सन् 1916 मे साधु सिताराम दास ने बिजौलिया किसान आंदोलन कि बागडोर विजय सिंह पथिक को सौंप दी।

✍ इस समय विजय सिंह पथिक, क्रांतिकारी रास बिहारी बोस, सचिनानंद संथाल के संगठन मे कार्य कर रहे थे।
✍ विजय सिंह पथिक को रास बिहारी बोस ने सशस्त्र क्रांति सन् 1915 के लिए राजस्थान खरवा के ठाकुर गोपाल सिंह खरवा के यहा भेजा परन्तु गोपाल सिंह खरवा व विजय सिंह पथिक पकड़े गये।
✍ विजय सिंह पथिक को कैद करके अजमेर के टाेडगढ़ दुर्ग मे बंद किया
✍ जैल से फरार होने के बाद भुपसिंह ने अपना नाम बदल कर विजय सिंह पथिक रखा।
✍ विजय सिंह का वास्तविक नाम भुपसिंह था।
✍ भुपसिंह का जन्म सन् 1873 मे उतरप्रदेश के बुलंद शहर के गुढ़ावरी मे हुआ तथा यह जाती से गुर्जर थे।
✍ जैल से फरार होने के बाद भुपसिंह ने चितोड़गढ़ के ओछड़ी गाँव मे विधा प्रचारणी सभा का गठन किया।

✍ इस समय साधु सिताराम दास, माणिक्य लाल वर्मा, प्रेमचंद भील और भवरलाल सराफ विजय सिंह पथिक से भेट कर विजय सिंह पथिक को बिजौलिया किसान आंदोलन का नेतृत्व सौप दिया।
✍ विजय सिंह पथिक ने किसानो को पंचायतो के माध्यम से गठित करने के आदेश दिये और दुसरे विश्व युद्ध मे चंदा देने से मना कर दिया।
✍ सन् 1917 मे विजय सिंह पथिक ने बेरिसाल गाँव मे उमाजी के खेड़े मे उपरमाल पंच बोर्ड कि स्थापना हरियाली अमावस्या के दिन किया।
✍ इस पंच बोर्ड का सरपंच/अधयक्ष मुन्ना पटेल/ मुन्ना लाल पटेल को बनाया गया।
✍ इसी समय साधु सिताराम दास और प्रेमचंद भील को पकड़ कर जैल मे बंद कर दिया।
✍ इन्हे छुड़ाने के लिए बाल गंगाधर तिलक ने महाराणा फतेह सिंह को पत्र लिखा।
✍ बाल गंगाधर तिलक ने बिजौलिया किसान आंदोलन मे अप्रत्यक्ष रुप से भाग लिया था।
✍ बिजौलिया किसान आंदोलन के दौरान माणिक्य लाल वर्मा द्वारा रचित गीत पंछिड़ा ने किसानो को प्रोत्साहित किया।
✍ विजय सिंह पथिक ने कानपुर से छपने वाले समाचार पत्र प्रताप के माध्यम से इस आंदोलन को समस्त उतरी भारत मे फैला दिया।
✍ प्रताप समाचार पत्र का सम्पादन गणेश शंकर विधार्थी करते थे।

👉 बिजौलिया किसान आंदोलन के लेख निम्न समाचार पत्रो मे भी छापे गये।


(1) प्रयाग से अभ्युदय समाचार पत्र

(2) कलक्ता से विश्व मित्र समाचार पत्र
(3) महाराष्ट्र से मराठा समाचार पत्र (अग्रेजी भाषा) व केसरी समाचार पत्र (मराठी भाषा) इन दोनो समाचार पत्रो के सम्पादक बाल गंगाधर तिलक थे।
✍ इस आंदोलन के दौरान गाँधी जी ने अपने निजि सचिव भुला देसाई को विजय सिंह पथिक को बुलाने हेतु मेवाड़ भेजा।
✍ परिणाम स्वरूप विजय सिंह पथिक सन् 1920 मे नागपुर अधिवेशन मे भाग लेने के लिए पँहुचे।
✍ सन् 1919 मे वर्धा (महाराष्ट्र) मे राजस्थान सेवा संघ कि स्थापना कि
✍ बिजौलिया किसान आंदोलन मे किसानो कि तरफ से राजस्थान सेवा संघ ने प्रतिनिधित्व किया था।
✍ राजस्थान सेवा संघ का प्रधान कार्यालय सन् 1921 मे विजय सिंह पथिक ने अजमेर मे बनाया था

👉 राजस्थान सेवा संघ के निर्देशन मे 2 समाचार पत्र निकाले गए

✍ राजस्थान केसरी व नवीन राजस्थान ये दोनो समाचार पत्र अजमेर से राजस्थान सेवा संघ द्वारा प्रकासित किये जाते थे।

✍ ब्रिटिश सरकार ने बिजौलिया किसान आंदोलन कि समस्याओ कि जाँच हेतु न्याय मुर्ति बिंदुलाल भट्टाचार्य कि अध्यक्षता मे एक अायोग गठन किया गया।

✍ इस आयोग ने किसानो के पक्ष मे अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कि थी।
✍ 4 फरवरी 1922 को ए.जी.जी. रोबर्ट हाॅलैण्ड स्वंय बिजौलिया पहुचे 11 फरवरी 1922 को रोबर्ट हाॅलैण्ड को अथक प्रयासो से किसानो और जागीरदारो को मध्य समझौता हुआ।

👉 इस समझौते के अनुसार-

✍ 84 लाग-बाग को घटाकर 35 लाग-बाग कर दी गई।

✍ इस आंदोलन के दौरान जिन किसानो को जैल मे बंद किया गया था उन्हे रिहा कर दिया गया।
✍ इस समझौते मे किसानो की तरफ से राजस्थान सेवा संघ की और से प्रतिनिधित्व माणिक्य लाल वर्मा और रामनारायण चौधरी आदि उपस्थित हुए।

(स) बिजौलिया किसान आंदोलन का तीसरा चरण-( 1923-1941 तक )

✍ 10 सितम्बर 1923 को बेगू किसान आंदोलन के दौरान विजय सिंह पथिक को कैद कर लिया गया।

✍ माणिक्य लाल वर्मा, जमनालाल बजाज के साथ 1929 मे विजय सिंह पथिक के मतभेद हो गये जिस कारण विजय सिंह पथिक इस आंदोलन से अलग हो गया।

✍ तीसरे चरण का नेतृत्व जमनालाल बजाज और हरिभाऊ उपाध्याय के द्वारा किया गया।
✍ 21 अप्रेल 1931 को माणिक्य लाल वर्मा ने गाँधी जी की तकनीक पर इस सत्याग्रह को प्रारम्भ किया।
✍ 1941 ई. मे तीन व्यक्तियो ( 1. मेवाड़ के पोलिटिक्ल एजेंट-विलिक्सन, 2. मेवाड़ राजस्व मंत्री-मोहनलाल, 3. मेवाड़ प्रधानमंत्री-वी.राघवाचार्य )  कि मध्यस्ता के कारण यह आंदोलन समाप्त हो गया।
✍ राजस्थान मे किसान आंदोलन का जनक साधु सीताराम दास था।
✍ भारत मे किसान आंदोलन का जनक विजय सिंह पथिक था।
✍ आंदोलन के दौरान विजय सिंह पथिक को महात्मा की संज्ञा प्रदान की गई।
✍ यह आंदोलन भारत मे सबसे लम्बी अवधि ( 44 वर्षो ) तक चलने वाला किसान आंदोलन था।

बेंगू किसान आंदोलन राजस्थान

2. बेगू किसान आंदोलन-

✍ वर्तमान मे बेगू भीलवाड़ा मे है जो प्रारम्भ मे मेवाड़ रियासत के अधिन था।

✍ बेगू किसान आंदोलन बिजौलिया किसान आंदोलन से प्रभावित था।
✍ बेगू के किसानो से 25 प्रकार की लाग-बाग ली जाती थी।
✍ लगान की दर ऊँची होने के कारण और गलत भू-राजस्व की लाग-बाग व्यवस्था के कारण बेगू के किसानो ने भीलवाड़ा मे मैनाल के भैरूकुण्ड मे एक विशाल किसान सम्मेलन हुआ और इसी घटना से बेगू किसान आंदोलन का प्रारम्भ माना जाता है।
✍ इस आंदोलन का नेतृत्व विजय सिंह पथिक के कहने पर राजस्थान सेवा संघ के मंत्री रामनारायण चौधरी द्वारा किया गया।

✍ रामनारायण चौधरी ने किसानो की ओर से दी गई मांगे रखी-


1. किसान फसलो का कुँता नही करवाएंगे।
2. किसान नये भूमी बंदोबस्त के आधार पर ही कर देंगे।

👉 बेगू किसान आंदोलन के अन्य तथ्य-

✍ बेगू किसान आंदोलन कि जाँच हेतु कमीश्नर ट्रेन्च की अध्यक्षता मे 1922 ई. मे ट्रेन्च आयोग का गठन किया गया।
✍ ट्रेन्च आयोग ने बेगू कि 25 लाग-बाग से केवल 4 लाग-बाग को ही दोषपुर्ण बताया।

✍ ट्रेन्च आयोग की रिपोर्ट का विरोध करने के लिए 13 जुलाई 1923 को गोविंदपुरा गाँव मे किसानो का एक विशाल सम्मेलन हुआ इस सम्मेलन पर कमीश्नर ट्रेन्च के आदेश पर गोलिया चलाई गई जिसमे रूपा जी व कृपा जी नामक दो किसान शहीद हो गए।
✍ इस घटना के बाद विजय सिंह पथिक बेगू पँहुचे परन्तु 10 सितम्बर 1923 को विजय सिंह पथिक को गिरफदार कर लिया गया और यह आंदोलन असफल रहा।
✍ इस आंदोलन मे सर्वाधिक गुर्जर जाति ने भाग लिया।

3. बूंदी किसान आंदोलन- (1922-23)

✍ बूंदी किसान आंदोलन मे महिलाओ का नेतृत्व अंजना चौधरी द्वारा किया गया।

✍ बूंदी का नित्यानन्द स्वामी स्थाई किसान नेता था जिसने किसानो मे जन जागृती जागृत की थी।
✍ 17 फरवरी 1929 को विजय सिंह पथिक राॅबर्ट हाॅलेण्ड से मिले और किसानो के लिए एक समान जनक समझौता करवाया।
✍ बूंदी किसान आंदोलन का नेतृत्व भवरलाल सोनी द्वारा किया गया था।
✍ बूंदी किसान आंदोलन को बरड़ किसान आंदोलन भी कहा जाता है।

👉 डाबी काण्ड-

✍ 2 अप्रेल 1923 को बूंदी के डाबी गाँव मे किसानो ने एक सभा का आयोजन किया।

✍ इस सभा पर  पुलिश अधिक्षक इकराम हुसैन के आदेश पर सैनिको द्वारा गोलिया चलाई गई जिसमे नानक जी भील और देविलाल गुर्जर शहीद हो गये।
✍ जिस समय नानक जी भील को गोली लगी उस समय नानक जी भील विजय सिंह पथिक द्वारा रचित झण्डा गीत गा रहे थे।
✍ इकराम हुसैन को राजस्थान का जनरल डायर कहा जाता है।
✍ माणिक्य लाल वर्मा ने नानक जी भील कि याद मे अर्जी शीर्षक नामक एक गीत लिखा।

4. अलवर किसान आंदोलन-

✍ यह किसान आंदोलन तीन चरणो मे सम्पन हुआ।

(अ) नीमू चाणा किसान आंदोलन।
(ब) मेव किसान आंदोलन।
(स ) 1941-47 के मध्य प्रजामण्डल के दौरान उदारवादी आंदोलन।

(अ) नीमू चाणा किसान आंदोलन

✍ सन् 1922 मे अलवर के महाराजा जयसिंह ने इजारा पद्धति के अन्तर्गत भू-राजस्व को बढ़ा दिया।

✍ इजारा पद्धति सर्वप्रथम किर्नवालिस ने लागू की थी पहली बार यह पद्धति सन् 1876 मे लागू हुई थी।
✍ माधवसिंह और गोविंद नामक किसानो द्वारा इसकी सिकायत क्षेत्रीय महासभा दिल्ली को कि गई और इसके विरूद्ध पुकार नामक समाचार पत्र मे लेख छपवाये।
✍ 14 मई 1925 को किसानो ने अलवर जिले कि बानसूर तहसिल मे नीमूचाणा गाँव मे एक विशाल सभा का आयोजन किया।
✍ इस विशाल सभा पर कमांडर छाजूसिंह के आदेश पर गोलिया चलाई गई जिसमे लगभग 156 किसान मारे गये।
✍ महात्मा गाँधी ने इस हत्याकाण्ड को दौहरा डायर शाही कि संज्ञा दी।
✍ गाँधी जी ने इस हत्याकाण्ड को जलियावाला बाग हत्याकाण्ड से झगन्य काण्ड बताया है।
✍ राजस्थान सेवा संघ ने इस हत्याकाण्ड कि जाँच करवाई और 31 मई 1925 को अजमेर से छपने वाले समाचार पत्र तरूण राज मे अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कि।
✍ रामनारायण चौधरी ने व्यक्तिगत रूप से इस हत्याकाण्ड कि जाँच कि और इसे नीमू चाणा हत्याकाण्ड कि संज्ञा दी।
✍ लाहौर से छपने वाले समाचार पत्र रियासत मे इस हत्याकाण्ड को जलियावाला बाग हत्याकाण्ड भी कहा है।
✍ इस नीमू चाणा हत्याकाण्ड का असली दोषी पंजाब पुलिश का अधिकारी गोपालदास था।
✍ 18 नवम्बर 1925 को किसानो और महाराजा जयसिंह के मध्य समझौता हुआ जिसमे महाराजा जयसिंह ने किसानो कि सभी मांगो स्वीकार कर ली और यह आंदोलन समाप्त हो गया।

(ब) मेव किसान आंदोलन

✍ मेव किसान आंदोलन मे जन जागृती मोहमद अली द्वारा सन् 1932 मे अजुमन-ए-खादी-मुल इस्लाम नामक संस्था से जागृत कि गई।

✍ सन् 1932 मे हरियाणा के गुड़गाँव के यासिन अली के द्वारा मेव जाति मे जन जागृती जागृत कि गई।

5. मारवाड़ किसान आंदोलन

✍ मारवाड़ राजपुताने कि सबसे बड़ी रियासत थी।

✍ यहा पर किसानो को तीन प्रकार के शासन का विरोद्ध करना पड़ा।
(1) राजा
(2) अंग्रेज
(3) जागीदार
✍ सन् 1915 मे मारवाड़ मे राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक जागृती लाने के लिए मरूधर मित्र हितकारणी सभा का गठन किया गया और यह मुल रूप से राजनैतिक संगठन था।
✍ सन् 1920-21 मे मारवाड़ मे तोल आंदोलन प्रारम्भ किया गया। 
✍ सन् 1920 मे भ्रष्ट नोकरशाही और अराजकता के विरूद्ध चांदमल खुराना/सुराणा ने मारवाड़ सेवा संघ कि स्थापना कि।
✍ सन् 1923 मे जयनारायण व्यास द्वारा मारवाड़ हितकारणी सभा का गठन हुआ।
✍ जो मारवाड़ सेवा संघ का हि परिवर्तित नाम था।
✍ इस मारवाड़ हितकारणी सभा का अध्यक्ष चांदमल खुराना/सुराणा को बनाया गया।
✍ इस सभा के माध्यम से जयनारायण व्यास ने लगान कि ऊँची दर, बेगार के विरूद्ध व मारवाड़ कि आर्थिक स्थिति के लिए जन साधारण को जागृत किया।
✍ मारवाड़ हितकारणी सभा के विरोध मे सन् 1924 मे राजभक्त देश हितकारणी सभा का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष किशनलाल बोपाना थे।
✍ जयनारायण व्यास ने यंग इण्डिया समाचार पत्र के माध्यम से मारवाड़ शीर्षक नाम से आंदोलन जारी रखा।
✍ मारवाड़ हितकारणी सभा द्वारा किसानो को जागृत करने के लिए दो पत्रिकाए निकाली गई।
(1) पोपा बाई की पोल।
(2) मारवाड़ की अवस्था।
✍ सन् 1931 मे मारवाड़ युथ लीग कि स्थापना कि गई।
✍ सन् 1938 मे मारवाड़ लोक परिषद का गठन काया गया।
✍ मारवाड़ लोक परिषद को मारवाड़ मे किसान आंदोलन कि जननी माना जाता है।
✍ मारवाड़ मे जन जागृती का जनक जयनारायण व्यास को माना जाता है।
✍ दिसम्बर 1938 मे गुजरात के हरिपुरा मे कांग्रेस का अधिवेशन हुआ और इस अधिवेशन मे यह तय किया गया कि कांग्रेस राजपुताना कि रियासतो के आंदोलन का समर्थन करेगी।
✍ इस अधिवेशन कि अध्यक्षता सुभाष चन्द्र बोस ने कि थी।
✍ 28 मार्च 1942 को मारवाड़ लोक परिषद के द्वारा समस्त मारवाड़ मे उतरदायी सरकार दिवस मनाने कि घोषणा कि गई।
✍ 13 मार्च 1947 को डिडवाना ( नागौर ) के डाबड़ा गाँव मे किसानो कि सभा पर सरकार द्वारा गोलिया चलई गई जिसमे अनेक लोग मारे गये।


✍ डाबड़ा काण्ड कि आलोचना निम्न समाचार पत्रो मे कि गई।


(1) वन्दे मातृम समाचार पत्र (मुम्बई)
(2) हिन्दुस्तान टाईमस समाचार पत्र (दिल्ली)
(3) प्रजा सेवक समाचार पत्र (जोधपुर)
(4) लोकवाणी समाचार पत्र (जयपुर)
✍ डाबड़ा समेलन का आयोजन मथुरादास द्वारा किया गया।
✍ 6 मार्च 1949 को मारवाड़ टेंनेसी एक्ट पारित हुआ जिसमे किसानो को जमीनो का मालिना हक दे दिया गया व इसी के साथ ये आंदोलन समाप्त हो गया।

6. बीकानेर रियासत मे किसान आंदोलन

✍ बीकानेर किसान आंदोलन का मुख्य कारण आबीयाना कर (जल कर) था।

✍ गंग नहर के पानी को लेकर किसानो आंदोलन किया गया था जिसमे महाराजा गंगा सिंह ने जागीदारो को समर्थन किया।
✍ गंग नहर का निर्माता गंगा सिंह हि था जिन्होने सन् 1925 मे इस नहर कि निव रखी थी।
✍ इस नहर का सुभारम्भ अकटुबर 1927 को किया गया।
✍ गंग नहर के क्षेत्र के किसानो ने जमीदार एसोसियसन का गठन किया।
✍ बीकानेर किसान आंदोलन का सर्वप्रथम विरोध सन् 1937 मे जीवनराम  के द्वारा किया गया था।
✍ यह विरोध लगान कि गलत दर व बैगार प्रथा के विरूद्ध था जिसमे जीवनराम का साथ प्रजामण्डल द्वारा भी दिया गया।
✍ दुधवा खारा (चरू) मे किसान आंदोलन का नेतृत्व सन् 1945 मे हनुमान सिंह द्वारा किया गया।
✍ इस समय जागीदार सुरजमल था व राजा शार्दुलसिंह था।

👉 कागड़ा काण्ड-

✍ कागड़ा रतनगढ़ का एक छोटा सा गाँव है जहा सन् 1946 मे अकाल के बावजुद भी जागीदारो ने जबरन भूमी कर वसुल किया।
✍ किसानो द्वारा विरोध किये जाने पर गोलिया चलाई गई जीस कारण ही 6 जुलाई 1946 को बीकानेर दिवस मनाया गया।
✍ कागड़ा काण्ड कि घटना के बाद ही बीकानेर दिवस 6 जुलाई 1946 को मनाया गया।
✍ सन् 1948 मे बीकानेर लोक मण्डल कि स्थापना कि गई।

👉 किसान आंदोलनो के अन्य तथ्य-

✍ जकात आंदोलन को शेखावाटी किसान आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है।

✍ शेखावाटी किसान आंदोलन का नेतृत्व रामनारायण चौधरी के द्वारा किया गया था।
✍ सन् 1931 मे क्षेत्रीय किसान जाट महासभा का गठन किया गया।
✍ सन् 1934 मे देशराज के नेतृत्व मे सीकर किसान आंदोलन



राजस्थान के किसान आंदोलन के प्रश्न


प्रश्न 1 निम्न में से कौन सा समाचार-पत्र 1920 में विजयसिंह पथिक ने वर्धा से प्रकाशित किया था –

A) नवीन राजस्थान
B) तरूण राजस्थान
C) राजस्थान केसरी
D) नवजीवन
उत्तर. राजस्थान केसरी

प्रश्न 2 “अंजुमन-खादिम-उल-इस्लाम” की स्थापना निम्न में से किस रियासत में हुई थी –

A) अजमेर
B) जयपुर
C) जोधपुर
D) अलवर
उत्तर. अलवर

प्रश्न 3 1883 में गोविन्द गिरी ने मेवाड़, डूंगरपुर, गुजरात और मालवा के भील और गिरासिया जाति के लोगों को संगठित करने के लिए किस सभा की स्थापना की –

A) सम्प सभा
B) नीमड़ा सभा
C) मीणा क्षेत्रिय महासभा
D) परोपकारिणी सभा
उत्तर. सम्प सभा

प्रश्न 4 ‘मानगढ़ धाम’ जो राजस्थान का ‘जलियांवाला बाग’ नाम से प्रसिद्ध है कहां स्थित है –

A) राजसमंद
B) बांसवाडा
C) अलवर
D) बीकानेर
उत्तर. बांसवाडा


प्रश्न 5 मोतीलाल तेजावत सर्वाधिक योग्य नेता माने जाते हैं –

A) किसान आंदोलन
B) मजदूर आंदोलन
C) भील आंदोलन
D) छात्र आंदोलन
उत्तर. भील आंदोलन

प्रश्न 6 निम्न लिखित में से कौन सी घटना को महात्मा गांधी ने ‘डायर के कृत्य से दुगनी वीभत्स’ काण्ड बताया –

A) नीमचाणा घटना, मई 1925 की
B) चन्दावल की घटना, मार्च 1942
C) डाबड़ा की घटना, मार्च 1947
D) बरड़ की घटना, जून 1922
उत्तर. नीमचाणा घटना, मई 1925 की

प्रश्न 7 सीताराम साधु का निम्न में से किस आन्दोलन से संबंध था –

A) शेखावाटी कृषक आन्दोलन
B) हाड़ौती कृषक आन्दोलन
C) बिजोलिया कृषक आन्दोलन
D) मेवात कृषक आन्दोलन
उत्तर. बिजोलिया कृषक आन्दोलन

प्रश्न 8 मेवाड़ भील कोर्प किस वर्ष स्थापित की गयी थी –

A) 1818
B) 1852
C) 1832
D) 1837
उत्तर. 1837

प्रश्न 9 1890 के दौर में बिजौलिया के जागीरदार कौन थे –

A) चौहान
B) परमार
C) राणावत
D) शक्तावत
उत्तर. परमार

प्रश्न 10 निम्न में से कौन सा स्थान 1920 के किसान आन्दोलनों के दौरान शेखावटी के पंचपाणे ठिकानों में से एक नहीं था –

A) डूंडलोद
B) मलसीसर
C) मन्डावा
D) श्रीमाधोपुर
उत्तर. श्रीमाधोपुर

प्रश्न 11. स्वतंत्रता प्राप्ति के समय राजस्थान में देशी रियासत थी

A) 16
B) 12
C) 19
D) 18
उत्तर.  19

प्रश्न 12. राजस्थान मध्य भारत सभा की स्थापना अजमेर में किस वर्ष हुई थी

A) 1923
B) 1922
C) 1920
D)1929
उत्तर.  1920

प्रश्न 13. जयपुर में सर्वप्रथम जनचेतना का सूत्रपात किसने किया

A) अर्जुन लाल सेठी
B) केसरी सिंह बाहरठ
C) हरीभाई कीकर
D) मोतीलाल तेजावत
उत्तर.  अर्जुन लाल सेठी

प्रश्न 14. डूंगरजी व जवारजी किस जिले के थे

A) सिरोही
B) सीकर
C)कोटा
D) भीलवाड़ा
उत्तर.  सीकर

प्रश्न 15. ट्रेंच कमीशन किस के संबंधित है

A) बेंगू किसान आंदोलन से
B) शेखावाटी किसान आंदोलन से
C) बिजोलिया किसान आंदोलन से
D) निमुचाणा घटना से
उत्तर.  बेंगू किसान आंदोलन से


प्रश्न 16. बिजोलिया किसान आंदोलन में किस जाति के किसान सर्वाधिक संख्या में थे

A) धाकड़
B)भील
C) गरासिया
D) उपाध्याय
उत्तर.  धाकड़

प्रश्न 17. राजस्थान में स्वतंत्रता आंदोलन के समय कौन सा शहर पत्रकारिता का मुख्य केंद्र था

A) जयपुर
B) अलवर
C) भीलवाड़ा
D)अजमेर
उत्तर.   अजमेर

प्रश्न 18. राजपूताना मध्य भारत सभा नामक राजनीतिक संस्था की स्थापना कहां हुई

A) पंजाब
B) दिल्ली
C) हरियाणा
D) गुजरात
उत्तर.   दिल्ली

प्रश्न 19. मोतीलाल तेजावत द्वारा एकी आंदोलन कहां से प्रारंभ किया गया

A) कोटा
B)अलवर
C) चित्तौड़गढ़
D) सिरोही
उत्तर.   चित्तौड़गढ़

प्रश्न 20. रस्तापाल हत्याकांड किस जिले से संबंधित है

A) डूंगरपुर
B) बांसवाड़ा
C) ब्यावर
D)अजमेर
उत्तर.   डूंगरपुर

प्रश्न 21. राजस्थान के भीलों के लिए गोविंद गुरू द्वारा गठित सामाजिक-धार्मिक संगठन निम्नलिखित में से कौन सा है –

A) संप सभा
B) ब्रह्म समाज
C) ग्राम सभा
D) आत्मीय सोसाइटी
उत्तर. संप सभा

प्रश्न 22. ‘ऊपरमाल किसान पंचबोर्ड’ की स्थापना की गई-

A) 1915
B) 1916
C) 1917
D) 1918
उत्तर. 1917

प्रश्न 23. किस आन्दोलन के दौरान जागीरदार व किसानों के मध्य हुए समझौते को बोल्शेविक की संज्ञा दी गई-

A) अलवर किसान आन्दोलन
B) बेगूं किसान आन्दोलन
C) बिजौलिया किसान आन्दोलन
D) दूधवा-खारा किसान आन्दोलन
उत्तर. बेगूं किसान आन्दोलन

प्रश्न 24. नीमूचणा हत्याकाण्ड, जिसे गांधीजी ने ‘जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड से भी वीभत्स’ कहा है, कब हुआ-

A) 14 मई, 1925
B) 14 मई, 1926
C) 14 जुलाई, 1925
D) 14 जुलाई, 1926
उत्तर. 14 मई, 1925


प्रश्न 25. नीमड़ा हत्याकाण्ड कब घटित हुआ-

A) 1922
B) 1923
C) 1924
D) 1925
उत्तर. 1922

प्रश्न 26. बिजोलिया किसान आन्दोलन में किस जाति के किसान सर्वाधिक संख्या में थे-

A) सिखी
B) मनसा
C) मेव
D) धाकड़
उत्तर. धाकड़

प्रश्न 27. बिजोलिया किसान आंदोलन के दौरान प्रवर्तित विद्या प्रचारिणी सभा के प्रवर्तक थे-

A) रामनारायण चौधरी
B) विजय सिंह पथिक
C) माणिक्य लाल वर्मा
D) जमना लाल बजाज
उत्तर. विजय सिंह पथिक

प्रश्न 28 .“मेवाड़ पुकार” 21 सूत्री मांगपत्र का संबंध किससे था-

A) मोतीलाल तेजावत
B) माणिक्यलाल वर्मा
C) विजय सिंह पथिक
D) साधु सीताराम दास
उत्तर. मोतीलाल तेजावत

प्रश्न 29. निम्नलिखित में से किसने डूंगरपुर और वाँसदान में भील आंदोलन का नेतृत्व किया –

A) जमनालाल बजाज
B) अर्जुनलाल सेठी
C) स्वामी गोविन्द गिरि
D) दामोदर दास राठी
उत्तर. स्वामी गोविन्द गिरि


प्रश्न 30. निम्न में से कौन 1921-1922 में मेवाड़ के भीलों के आदिवासी किसान आंदोलन के महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों में से एक हैं –

A) मोतीलाल तेजावत

B) रावत केशरी सिंह

C) रावत जोधसिंह

D) हरलाल सिंह

उत्तर. मोतीलाल तेजावत


प्रश्न 31. स्वतंत्रता सेनानी विजय सिंह पथिक निम्न में से किस समाचार पत्र के संपादक थे-

A) हरिजन

B) राजस्थान केसरी

C) तलवार

D) समाचार दर्पण

उत्तर. राजस्थान केसरी


प्रश्न 32. 1916 में निम्न में से किसने बिजोलिया किसान पंचायत का आयोजन किया था –

A) नानजी पटेल

B) विजय सिंह पथिक

C) माणिक लाल वर्मा

D) मदन मोहन मालवीय

उत्तर. विजय सिंह पथिक


प्रश्न 33 राजस्थान के भीलों के लिए गोविंद गुरू द्वारा गठित सामाजिक-धार्मिक संगठन निम्न में से कौन सा था –

A) संप सभा

B) ब्रह्म समाज

C) ग्राम सभा

D) आत्मीय सोसाइटी

उत्तर. संप सभा


प्रश्न 34 1922 में राजपूताना में गवर्नर जनरल के एजेंट निम्न में से कौन थे –

A) चाल्र्स मेटकाफ

B) रिचर्ड वेलेस्ले

C) राॅबर्ट हाॅलैंड

D) वाॅरेन हेस्टिंग्स

उत्तर. राॅबर्ट हाॅलैंड


प्रश्न 35 बांसवाड़ा में स्थापित राजस्थान के राज्य जनजातीय विश्वविद्यालय का नाम बदलकर …………. के नाम पर रखा गया है –

A) भोगीलाल पंड्या

B) गोविंद गुरू

C) मोतीलाल तेजावत

D) माणिक्य लाल वर्मा

उत्तर. गोविंद गुरू


प्रश्न 36 विजयसिंह पथिक का मूल नाम क्या था –

A) भूपसिंह

B) नरेन्द्रनाथ

C) मूलशंकर

D) रामदास

उत्तर. भूपसिंह


प्रश्न 37 दक्षिण राजस्थान में भगत आंदोलन का संस्थापक कौन थे –

A) ठक्कर बापा

B) मोतीलाल तेजावत

C) गोविन्द गिरि

D) विजयसिंह पथिक

उत्तर. गोविन्द गिरि


प्रश्न 38 मेवाड़, डूंगरपुर, सिरोही, बांसवाड़ा में स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व निम्न में से किसने किया था –

A) दामोदरदास राठी

B) अर्जुनलाल सेठी

C) स्वामी गोविन्द गिरि

D) जमनालाल बजाज

उत्तर. स्वामी गोविन्द गिरि


प्रश्न 39 सन् 1947 ई. में वीरबाला कालीबाई किस घटना में शहीद हुई थी-

A) पुनवाड़ा काण्ड में

B) काब्जा काण्ड में

C) रास्तापाल काण्ड में

D) डाबरा काण्ड में

उत्तर. रास्तापाल काण्ड में


प्रश्न 40 सम्प सभा की स्थापना किसने की –

A) माणिक्यलाल वर्मा

B) जयनारायण व्यास

C) बलवंतसिंह मेहता

D) गोविन्द गिरी

उत्तर. गोविन्द गिरी


प्रश्न 41. किसान पंचायत जिनकी स्थापना सन 1916-1917 ई में की गई थी इस संगठन का संबंध था

A) नीमचाणा कांड

B) डाबड़ा काण्ड

C) बिजोलिया

D) चंडावल कांड

उत्तर.  बिजोलिया


प्रश्न 42. कौन सी घटना को महात्मा गांधी ने डावर के कृत्य से दुगनी वीभत्स कांड बताया

A) नीमुचाणा घटना

B) मानगढ़ पहाड़ी हत्याकाण्ड

C)हाडौती

D) बिजौलिया

उत्तर.   नीमुचाणा घटना


प्रश्न 43. बिजोलिया आंदोलन से कौन संबंद्धत नहीं था

A) विजय सिंह पथिक

B) रामनारायण चौधरी

C) हरिभाई किकर

D गोविंद राम

उत्तर.   गोविंद राम


44. मेवाड़ का बिजोलिया आंदोलन किसके नेतृत्व में हुआ

A) विजय सिंह पथिक

B) रामनारायण चौधरी

C) जय नारायण व्यास

D) कृपा जी

उत्तर.  विजय सिंह पथिक


प्रश्न 45. मारवाड़ यूथ लीग के संस्थापक कौन थे

A) केसरी सिंह बारहठ

B) गोपाल सिंह खरवा

C) मोतीलाल तेजावत

D) जय नारायण व्यास

उत्तर.   जय नारायण व्यास


प्रश्न 46. बेंगू किसान आंदोलन के नेता जो शहीद हुए

A) रामनारायण चौधरी

B) कृपा जी

C) विजय सिंह पथिक

D) सीताराम दास

उत्तर.  कृपा जी


प्रश्न 47. राजस्थान जाट क्षत्रिय सभा की स्थापना हुई

A) 1930

B)1937

C) 1931

D) 1923

उत्तर.   1931


प्रश्न 48. निमुचाणा को किस आंदोलन के संदर्भ में याद किया जाता है

A) बिजोलिया किसान आंदोलन

B) अलवर किसान आंदोलन

C) किसानों पर आरोपित करना

D) मानगढ़ पहाड़ी हत्याकाण्ड

उत्तर. अलवर किसान आंदोलन


प्रश्न 49. कौनसा स्थान किसान आंदोलन से जुड़ा नहीं है

A) बेंगु

B) बिजोलिया

C) रुपवास

D) बानसूर

उत्तर.  रुपवास


प्रश्न 50. 18 वीं शताब्दी के मध्य में जाट वंश का किन रियासतों पर अधिपत्य था

A) कोटा बूंदी

B) धौलपुर भरतपुर

C) जोधपुर जैसलमेर

D) बाड़मेर बीकानेर

उत्तर.  धौलपुर भरतपुर





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