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राजस्थान समान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

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Wednesday, April 14, 2021

April 14, 2021

सवाई माधोपुर जिला दर्शन (राजस्‍थान के जिले) Swai Madhopur District GK in Hindi / Swai Madhopur Jila Darshan

 सवाई माधोपुर जिला दर्शन (राजस्‍थान के जिले)

Swai Madhopur District GK in Hindi / Swai Madhopur Jila Darshan

परिचय-

इसकी स्थापना जयपुर नरेश माधोसिंह प्रथम द्वारा की गई।

यहां के रणथम्भौर के दुर्ग में स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर में श्रद्धालु अपने सभी मंगल कार्यो के आमन्त्रण पत्र सबसे पहले भेजते है। यह विशेष आस्था का केन्द्र बन चुका है।

सवाई माधोपुर जिले का कुल क्षेत्रफल = 10,527 किमी²
सवाई माधोपुर जिले की जनसंख्या (2011) = 13,38,114
सवाई माधोपुर जिले का संभागीय मुख्यालय = भरतपुर


इतिहास-

इस शहर की स्थापना सवाई माधोसिंह प्रथम ने 19 जनवरी 1763 में की थी, जो जयपुर के महाराजा थे।

18वीं शताब्दी में महाराजा सवाई माधोसिंह द्वारा इस शहर की स्थापना करने के बाद उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम ‘सवाई माधोपुर’ पड़ा।

भौगोलिक स्थिति-


भौगोलिक स्थिति: 25°59′N 76°22′E

सवाई माधोपुर जिले में निम्‍न तहसीलें हैं- गंगापुर सिटी, सवाई माधोपुर, बौली, बामनवास और खंडार.

सवाई माधोपुर राजस्थान के प्रमुख शहरों में से एक है। यह शहर ‘रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान’ के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

यह स्थान केवल राष्ट्रीय उद्यान के लिए ही नहीं, बल्कि अपने मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार सवाई माधोपुर जिले की जनसंख्‍या के आंकड़ें निम्‍नानुसार है —

कुल जनसंख्या—13,35,557

पुरुष—7,04,031; स्त्री—6,31,520

दशकीय वृद्धि दर—19.6%; लिंगानुपात—897

जनसंख्या घनत्व—297; साक्षरता दर—65.4%

पुरुष साक्षरता—81.5%; महिला साक्षरता—47.5%

सवाई माधोपुर जिले में कुल पशुधन – 8,03,502 

सवाई माधोपुर जिले में कुल पशु घनत्‍व – 179 

सवाई माधोपुर का ऐतिहासिक विवरण —

जयपुर के कच्छवाहा शासक माधोसिंह प्रथम ने 1763 ई. में सवाईमाधोपुर की स्थापना की। सवाई माधोपुर 3 जून, 2005 तक कोटा संभाग में था तथा 4 जून 2005 को गठित नवीन संभाग भरतपुर में सवाई माधोपुर को शामिल किया गया।

राजस्‍थान के पूर्व में स्थित सवाई माधोपुर जिला अपनी नैसर्गिक सुन्‍दरता से देश-विदेश के सैलानियों के आकर्षण का केन्‍द्र है। यहां स्थित रणथम्‍भौर अभयारण्‍य (बाघ परियोजना) का स्‍थान विश्‍व के पर्यटन मानचित्र पर है। जिले में ही देवताओं में प्रथम पूज्‍य श्री गणेशजी का ऐतिहासिक त्रिनेत्र गणेश मन्दिर है। ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्‍व का प्रसिद्ध रणथम्‍भोर का अभेद्य दुर्ग है। सवाई माधोपुर में राव हम्‍मीर जैसे देशभक्‍त एवं हठी राजा हुये, जो शरणागत की रक्षा एवं यहां की आन-बान एवं शान के लिये लड़ते हुये अपने प्राणों की आहूति दी थी। यह वही स्‍थान है जहां की रानियों ने शान के साथ जौहर कर प्राण न्‍यौछावर किये थे।

सवाई माधोपुर की नदियाँ—

सवाई जिले से किसी भी प्रमुख नदी का उद्गम नहीं होता है। परन्‍तु यहां बहने वाले नदियों में चम्बल, बनास, मोरेल तथा सीप प्रमुख है।

रामेश्वरम घाट—चम्बल, बनास व सीप नदियों का त्रिवेणी संगम स्थल है। मीणाओं का प्रयागराज यही है।

सवाई माधोपुर के जलाशय —

मोरेल बाँध—मोरेल नदी पर मिट्टी का बाँध।

सवाई माधोपुर में चम्बल नदी के जल को 124 मीटर ऊँचा उठाने के लिए लिफ्ट लगाई गई है।

कालीसील परियोजना—कालीसील नदी पर।

पीपलदा सिंचाई परियोजना—चम्बल नदी पर, सवाई माधोपुर में है। इस परियोजना से सवाईमाधोपुर की खण्डार तहसील को पेयजल सुविधा प्राप्त होगी।

ईसरदा बाँध—बनास नदी पर। इस परियोजना से जयपुर को पेयजल सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। इस बाँध को ‘कॉपर डेम’ भी कहते हैं।

मोरासागर—सवाई माधोपुर, यह बाँध पान की खेती के लिए प्रसिद्ध है।

सवाई माधोपुर के वन्य जीव अभयारण—

रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान—

स्थापना—1955, वन्य जीव अभयारण के रूप में की गई थी। वर्ष 1973-74 में यहाँ बाघ परियोजना की शुरुआत की गई। 1 नवम्बर 1980 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया। देश की सबसे कम क्षेत्रफल की बाघ परियोजना। यह अभयारण्‍य लगभग चार सौ वर्ग किलोमीटर में फैला-पसरा है। यहाँ का काला गरूड़ पक्षी प्रसिद्ध है। क्षेत्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय प्रस्तावित। 28 जून, 2008 को रणथम्भौर अभयारण से दो प्रसिद्ध बाघ सुल्तान व बाघिन बबली का विस्थापन सरिस्का उद्यान में किया गया।

रणथम्भौर राष्ट्रीय—उद्यान में बाघों की गणना के लिए सुनिता नारायण की अध्यक्षता में ”टास्‍क फोर्स” का गठन किया एवम् इसके लिए पगमार्क विधि, डी.एन.ए. तकनीक एवम् केमरा ट्रैप तकनीक का प्रयोग किया है।

रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में 1960 में इंग्लैण्ड की महारानी ऐलिजा बेथ, 1985 में राजीव गाँधी, 2000 में बिल क्लिंटन (अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति) 2005, में मनमोहन सिंह ने भ्रमण किया।इस उद्यान में बाघिन मछली थी जो सम्पूर्ण भारत में सबसे वृद्ध होकर देहान्‍त हुआ था। मछली को झालरा वाली बाघिन के नाम से भी जाना जाता था। इस पर राज्य सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया था। इसके चहरे पर बने मछली जैसे निशान के कारण ही इस का नाम मछली रखा गया था. साथ ही इस बाघिन को टाइगर क्विन, लेडी ऑफ लेक व क्रोक्रोडाईल किलर के नाम से भी जाना जाता था। मछली नामक यह बाघिन रणथम्भौर आने वाले पर्यटकों में सबसे अधिक चर्चित थी। रणथम्भौर की इस महारानी का रणथम्भौर व सरिस्का को आबाद करने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा था।

सवाई माधोपुर के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्‍थल—

रणथम्भौर दुर्ग—इसके उपनाम-चित्तौड़ दुर्ग का छोटा भाई, दुर्गाधिराज तथा बख्तर बंद। यह दुर्ग 7 पहाडिय़ों के बीच अण्डाकार आकृति में है।

अबुल फजल का कथन—”और सभी दुर्ग नंगे है केवल यही दुर्ग बख्तयार बंद हैं।” इसका निर्माण 8वीं सदी में ठाकुर रति देव ने करवाया।

जलालुद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग पर दो बार आक्रमण किया लेकिन असफल रहा और निराश जलालुद्दीन ने कहा ”मैं ऐसे 10 दुर्गों को मुसलमान के एक बाल बराबर भी नहीं समझता हूँ।”

रणथम्भौर दुर्ग का साका—1301 ई. में। अलाउद्दीन खिलजी व हम्मीर के मध्य युद्ध हुआ जिसमें हम्मीर के सेनापति रणमल व रतिपाल ने हम्मीर के साथ विश्वासघात किया और दुर्ग के गुप्त द्वार खिलजी को बता दिये। हम्मीर ने केसरिया किया एवम् उसकी रानी रंग देवी ने जोहर किया। कहा जाता है कि हम्‍मीर की पुत्री देवलदे ने एक दिन पहले पहले ही पद्मला तालाब में कूदकर जलजौहर किया। यह राजस्‍थान का एकमात्र जलजौहर था।

यह राजस्थान का प्रथम जौहर व साका कहलाता है। अमीर खुसरो ने कहा कि ”आज कुफ्र का गढ़ इस्लाम का घर हो गया।”

रणथम्‍भोर दुर्ग के दर्शनीय स्थल—

इस दुर्ग का दरवाजा, मुख्य प्रवेश द्वार-नौलखा दरवाजा है, जिसका जीर्णोद्धार जयपुर के जगतसिंह ने करवाया।

जोगीमहल—1961 में वन विभाग ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। वर्तमान में यह पर्यटकों का विश्रामगृह है।

अधूरा स्वप्न या अधूरी छतरी—इसका कार्य हाड़ी रानी कर्मावती ने आरम्भ करवाया।

सुपारी महल—इस महल में मन्दिर, मस्जिद व गिरीजाघर तीनों एक साथ स्थित है, जो भावात्मक एकता का अनूठा उदाहरण है।

जैतसिंह की छतरी या न्याय की छतरी—हम्मीर ने अपने पिता की याद में लाल पत्थरों से 32 खम्भों की छतरी बनवाई। हम्मीर इस छतरी में बैठकर न्याय करता था इसलिए इसे न्याय की छतरी कहते हैं। इस छतरी में भूरे पत्थरों का शिवलिंग बना हुआ है।

जौरा-भौंरा महल, रणिहाड़ तालाब, रणत्या डूंगरी, पदमला तालाब, हम्मीर महल, हम्मीर कचहरी, पीरसदरुद्दीन की दरगाह, लक्ष्मीनारायण मंदिर आदि सभी दर्शनीय स्थल रणथम्भौर दुर्ग में हैं।

कुक्काराज की घाटी, रणथम्भौर दुर्ग (सवाईमाधोपुर) में तथा कुत्ते की छतरी भी यहीं है।

खण्डार का किला—इसका उपनाम रणथम्भौर का सहायक दुर्ग या रणथम्भौर का पृष्ठ रक्षक। इस दुर्ग में प्राचीन जैन मन्दिर हैं, जिसमें महावीर स्वामी की ‘पद्मासन मुद्रा’ में तथा पार्श्‍वनाथ की आद्मकद मूर्ति है। अष्टधातु शारदा तोप इसी दुर्ग में है।

झाईन दुर्ग—सवाई माधोपुर में स्थित यह दुर्ग भी रणथम्‍भौर का सहायक दुर्ग या रणथम्‍भौर दुर्ग की कुंजी कहलाता है। अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्‍भौर दुर्ग से पहले इसी दुर्ग पर विजय हासिल की थी।

त्रिनेत्र गणेश मंदिर—रणथम्भौर (सवाईमाधोपुर)। इसे रणत भंवर गजानन्द तथा लेटे हुए गणेश जी भी कहते हैं। यहाँ पर देश का सबसे प्राचीन गणेश मेला भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को भरता है। यहाँ पर गणेश जी की प्रतिमा में गर्दन, हाथ व शरीर नहीं है। केवल मुख की पूजा होती है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा गणेश मंदिर है जहाँ केवल मुख की पूजा होती है। विवाह के अवसर पर प्रथम निमन्त्रण गणेश को भेजने की परम्परा है।

घुश्मेश्वर महादेव का मन्दिर—सिवाड़ (सवाईमाधोपुर) में स्थित है। यह देश के 12 ज्योर्तिलिंगों में विख्यात है। इस मन्दिर में शिवलिंग सदैव जल में डूबा हुआ रहता है, जिसके कारण भक्तों को दर्शन शीशे के माध्यम से होते हैं। यहाँ के पर्वत कैलाश पर्वत का अनुभव कराते हैं।

अभनेश्वर शिव मन्दिर—यह रणथम्भौर में स्थित है।

चमत्कार जैन मन्दिर—चमत्कार जी का मंदिर आलनपुर में है। यहाँ पर ऋषभदेव की प्रतिमा है। इस स्थान पर प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा को मेला भरता है।

रामेश्वरम घाट—चंबल, बनास व सीप नदियों के संगम स्थल पर चतुर्भुज नाथ का प्राचीन मंदिर है, जहाँ कार्तिक पूर्णिमा को मेला भरता है।

चौथ का बरवाड़ा—चौथ का बरवाड़ा नामक डूंगरी पर चौथ माता का मंदिर है, जहाँ पर माघ कृष्ण चतुर्थी से अष्टमी तक विशाल मेला भरता है। चौथ माता कंजरों की आराध्य देवी है।

काला-गौरा भैरू मंदिर —यह मंदिर नौ मंजिला है। तांत्रिक विद्या के लिए यह मंदिर प्रसिद्ध है।

सवाई माधोपुर जिले के महत्पूर्ण प्रश्न-

यहां का श्यामोता गांव मिट्टी के बर्तन व खिलौनो के लिए प्रसिद्ध है।
बांसटोरडा नामक स्थान संगमरमर की मुर्तियो के लिए जाना जाता है।
रणथम्भौर के दुर्ग में 32 खम्भो की छतरी विशेष आकर्षण का केन्द्र है।
रणथम्भौर में दो अलग अलग पर्वत श्रृंखलाए अरावली व विंध्यांचल मिलती है।
मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित रामेश्वर घाट पर चम्बल, बनास व सीप नदी त्रिवेणी संगम बनाती है।
सवाईमाधोपुर बाघो की गिरती संख्या के लिए भी चर्चित स्थल है।

यहां वाइल्ड लाइफ ट्रेनिंग सेंटर सफारी भी मौजुद है।
यहां के चौथ का बरवाड़ा नामक स्थान पर चौथ माता का मंदिर स्थित है जंहा पर प्रतिवर्ष माघ कृष्ण तृतीया से अष्टमी तक मेला भरता है।
यहाँ का मोरा सागर बांध पान की खेती के लिए प्रसिद्ध है।
यही पर काला गौरा भैरव का नौ मंजिला मंदिर है
यह सर्वाधिक खस उत्पादक जिला है तथा अमरूद मण्डी के रूप में प्रसिद्ध है।
यहां पर रायसीना क्षेत्र में चीनी मिट्टी पाई जाती है।
इसरदा बांध बनास नदी पर बनाया गया है।
यह जिला अमरूद के लिए प्रसिद्ध है।
राज्य में सर्वाधिक बीहड़ भूमि का प्रसार इस जिले में है।
राज्य के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री श्री टीकाराम पालीवाल भी इसी जिले से है।
चौथ माता का आराध्य स्थल भी सवाईमाधोपुर है।
1301 में रणथम्भौर के दुर्ग मे साका हुआ था।



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Saturday, April 3, 2021

April 03, 2021

टोंक जिला दर्शन (राजस्‍थान के जिले) Tonk District GK in Hindi / Tonk Jila Darshan

टोंक जिला दर्शन (राजस्‍थान के जिले)

Tonk District GK in Hindi / Tonk Jila Darshan

टोंक जिले का समान्य परिचय–

टोंक जिले का कुल क्षेत्रफल – 7,194 वर्ग किलोमीटर

टोंक जिले की मानचित्र स्थिति – 25°41′ से 26°24′ उत्तरी अक्षांश तथा 75°19′ से 76°16′ पूर्वी देशान्‍तर है।

टोंक जिले में कुल वनक्षेत्र – 331.56 वर्ग किलोमीटर

टोंक जिले का आकार पतंगाकार है। राजस्थान के आकार के समान आकार वाला जिला भी टोंक है।

राजस्‍थान में टोंक को नवाबों की नगरी के नाम से जाना जाता है।

टोंक जिले के उपनाम –

उपनाम - नवाबों की नगरी, राजस्थान का लखनऊ
टोंक जिला बेराठ प्रदेश का हिस्सा है।


1817 ई ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि के बाद यशवंत होलकर से अमीर खां पिंडारी को यह रियासत मिली।
टोंक रियासत के संस्थापक अमीर खां पिंडारी है। यह राजस्थान की एकमात्र मुस्लिम रियासत थी।


चौरासी - टोंक में बोली जाने वाली भाषा


टोंक जिले में विधानसभा क्षेत्रों की संख्‍या 4 है, जो निम्‍न है—

1. मालपुरा, 2. निवाई, 3. टोंक तथा 4. देवली उनियारा

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार टोंक जिले की जनसंख्‍या के आंकड़ें निम्‍नानुसार है—

कुल जनसंख्या—14,21,326

पुरुष—7,28,136; स्त्री—6,93,190

दशकीय वृद्धि दर—17.3%; लिंगानुपात—952

जनसंख्या घनत्व—198; साक्षरता दर—61.6%

पुरुष साक्षरता—77.1%; महिला साक्षरता—45.4%

टोंक जिले का ऐतिहासिक विवरण —

राजस्‍थान की राजधानी जयपुर की दक्षिण दिशा में 95 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती प्रसिद्ध बनास नदी के दक्षिण की ओर तथा जयपुर-कोटा राष्‍ट्रीय राजमार्ग के किनारे टोंक जिला मुख्‍यालय स्थित है।

टोंक जिले के मालपुरा, लावां, उनियारा व टोडारायसिंह आदि कई स्‍थान विशेष महत्त्व रखते हैं। जिले का कोई क्रमबद्ध इतिहास नहीं है। यत्र-तत्र बिखरे प्राचीन शिलालेख, ध्‍वसांवशेष, सिक्‍कों आदि से ही प्राचीन इतिहास के तथ्‍य उजागर होते है।

महाभारत काल में यह क्षेत्र संवादलक्ष था। मौर्य काल में यह मौर्य शासकों के अधीन था, जो बाद में मालव गणराज्‍य में मिला दिया गया, जिसका विवरण उनियारा ठिकाने के प्राचीन खण्‍डहरों से मिले सिक्‍कों ज्ञात होता है।

मध्‍यकाल में मुगल साम्राज्‍य के सम्राट अकबर के शासनकाल में जयपुर के राजा मानसिंह ने टारी और टोंकरा नामक जिलों को अपने अधिकार में लिया और टोंकरा के बारह गांव के भोला नामक ब्राह्मण को सन् 1643 में भूप के रूप में स्‍वीकार किया। उसके बाद में बारह ग्राम समूहों को एक सूत्र में बांध कर उसका नामकरण ‘टोंक’ किया।

राजपूत शासनकाल में टोंक जिले का बड़ा भाग कई खण्‍डों में चावंडा, सोलंकी, कछवाह, सिसोदिया एवं चौहान आदि राजपूतों के अधीन रहा और कई स्‍थानों पर उनकी राजधानियां रही। बाद में जयपुर, होल्‍कर और सिंधिया का इस क्षेत्र के बड़े भाग पर शासन रहा।

सन् 1806 में बनास नदी के उत्तरी भाग पर बलवन्‍त राव होल्‍कर से पिंडारियों के सरदार अमीर खां ने कब्‍जा कर लिया जिसे बाद में ब्रिटिश सैनिकों ने जीत लिया। सन् 1817 की संधि के अनुसार यह क्षेत्र अमीर खां को लोटा दिया। टोंक रियासत की स्थापना अमीर खाँ पिण्डारी ने 1817 ई. में की। राज्य की एकमात्र मुस्लिम रियासत टोंक थी। राजस्थान एकीकरण के द्वितीय चरण में टोंक को शामिल किया गया।

टोंक जिले ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्‍थल—

पचेवर का किला—यह किला मालपुरा, टोंक में स्थित है। चार बुर्जों के कारण इस दुर्ग को चौबुर्जा कहा जाता है। इस दुर्ग की यह विशेषता है कि दुश्मनों द्वारा चलाये गये तोपों के गोले या तो इस दुर्ग के उपर से निकल जाते हैं या इस दुर्ग की दीवारों में धंस जाते हैं। इस दुर्ग में ‘पाड़ा चक्की’ स्थित है।

असीरगढ़ का किला-इसके उपनाम-भूमगढ़ तथा अमीरगढ़ है। इस दुर्ग में 24 जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ मिली थी।

कंकोड़ का किला—इस दुर्ग के पास गुमानपुरा गाँव में ‘हाथी भाटा’ स्थित है।

जलदेवी—बावड़ी गाँव, टोडारायसिंह (टोंक)।

देवधाम जोधपुरिया—देवनारायण जी का दूसरा प्रमुख मन्दिर निवाई (टोंक) में है। यहाँ पर भाद्रपद शुक्ल अष्टमी व माघ शुक्ल सप्तमी को मेला भरता है।

श्री कल्याण जी का मन्दिर डिग्गी—इनको श्रीजी महाराज के नाम से भी जाना जाता है। इनका मंदिर मालपुरा (टोंक) में स्थित है। इसे ‘कल्हपीर’ तथा ‘कुष्ठ रोग’ के निवारक के नाम से जाना जाता है। यहाँ भाद्रपद शुक्ल एकादशी को विशाल मेला भरता है।

टोंक जिले में बहने वाली प्रमुख नदियाँ—

बनास, डाई, खारी तथा मांशी है।

बनास, डाई व खारी नदी का त्रिवेणी संगम राजमहल (टोंक) में होता है।

टोंक जिले के प्रमुख जलाशय —

बीसलपुर बाँध परियोजना—यह पेयजल परियोजना है। इसका निर्माण 1988-89 में शुरु हुआ तथा 2000 ई. में इसका कार्य पूर्ण हुआ।

बीसलपुर बाँध टोंक जिले की देवली तहसील के पास राजमहल में बनास, डाई व खारी नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित है। यह राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है। बीसलपुर बाँध से पेयजल की आपूर्ति अजमेर, टोंक व जयपुर को होती है। यह बाँध 574 मी. लम्बा है। इसे नाबार्ड की आर्थिक सहायता से बनाया गया।

टोरड़ी सागर बाँध—इसे सिंचाई विभाग द्वारा 1887 ई. में बनाया गया। यह बाँध सोहदरा नदी पर है। टोरड़ी सागर बाँध की सभी मोरिया खोलने पर यह बाँध पूरी तरह खाली हो जाता है।

बीसलपुर कन्जर्वेशन रिजर्व—टोंक, इसकी स्थापना 13 अक्टूबर 2010 को की गई।

टोंक जिले के अन्‍य महत्त्वपूर्ण तथ्‍य—

चारबेत लोकनाट्यराजस्थान में चारबेत का एकमात्र केन्द्र टोंक है। इसका वाद्य यंत्र डफ है।

चारबेत चार प्रकार का होता है—भक्ति, शृंगार, रकी बखानी व गम्माज। चारबेत का प्रवर्तक अब्दुल करीम खां को माना जाता है।

रैढ़—इसे प्राचीन भारत का टाटा नगर कहते हैं। यहाँ से एशिया का सबसे बड़ा सिक्कों का भण्डार मिला है। यहाँ से मातृदेवी व गजमुखी यक्ष की मूर्तियां मिली है।

राज्य में चमड़े की रंगाई का एकमात्र कारखाना टोंक में है।

कर्पूर चन्द कुलिश—राजस्थान पत्रिका के सम्पादक कुलिश का जन्म टोंक जिले के मालपुरा तहसील के सोडा ग्राम में हुआ।

दामोदरलाल व्यास राजस्थान के लौह पुरुष व्यास का जन्म टोंक जिले की मालपुरा में हुआ।

वनस्थली विद्यापीठ—वनस्थली विद्यापीठ की स्थापना 1935 में हीरालाल शास्त्री एवम् उनकी पत्नी रतन देवी ने की। देश की पहली फोन इन सेवा एफ.एम. रेडियो वनस्थली के नाम से 30 जुलाई, 2007 को शुरू हुई। शांति बाई शिक्षा संस्थान (जीवन कुटीर)—इसकी स्थापना टोंक जिले में निवाई के समीप की । इसे 1943 में वनस्थली विद्यापीठ का नाम दिया गया। वर्तमान में यह डीम्ड विश्वविद्यालय पूर्णत : महिला शिक्षा पर आधारित है।

घण्टाघर—टोंक के पाँचवें नवाब सहादत अली खान ने 1937 में घण्टाघर का निर्माण करवाया।

राजमहल—यह महल बनास, डाई व खारी नदियों के संगम पर स्थित है।

स्मार्ट कार्ड योजना—टोंक जिले में पायलट आधार पर शुरु।

ऑल इंडिया मिल्ली कौंसिल का सम्मेलन मालपुरा में सम्पन्न।

मुबारक महल में बकरा ईद (ईद-उल जुहा) के अवसर पर ऊँट की बलि दी जाती थी। टोंक जिले के अंजुमन सोसाइटी ऑफ खानकाह-ए-अमीरिया ने 6 अक्टूबर 2014 को ईद-उल-जुहा त्यौहार के अवसर पर ऊँट की बलि की अपनी 150 वर्ष पुरानी परम्परा को समाप्त करने का फैसला किया। यह निर्णय ऊँट को पालतु पशु की श्रेणी में राज्‍यपशु का दर्जा देने के उपरान्‍त लिया गया।

तेलियों का मंदिर—टोंक में है।

नवाब इब्राहीम अली खाँ का शासन टोंक का स्वर्ण युग कहलाता है।

अरबी फारसी शोध संस्थान— 4 दिसम्बर 1978 को टोंक में स्थापित हो गई जिसे कसरेइल्म तथा साहित्य सेवियों की तीर्थस्थली भी कहा जाता है।मालपुरा में श्वेताम्बरों की दादाबाड़ी में दादागुरु के पद् चिह्न है। ये यहाँ कुशालपीर के नाम से विख्यात हैं।

गोयल आयोग—13 जून, 2005 को टोंक जिले के सोहेला कस्बे में बीसलपुर बाँध से पानी की मांग करते हुए लोगों पर पुलिस द्वारा गोलियां चलाई गई जिसमें 5 व्यक्ति मारे गए इसकी जाँच हेतु अनूप चन्द गोयल की अध्यक्षता में यह आयोग गठित किया गया।

राजस्‍थान में मिर्च की मण्डी टोंक में लगती है।

केन्द्रीय भेड़ एवं बकरी अनुसंधान एवम् प्रजनन केन्द्र-अविकानगर टोंक में है। (स्थापना-1962 में)

मालपुरी भेड़ मालपुरा (टोंक) की प्रसिद्ध है। इसकी ऊन का रेशा सबसे छोटा होता है। इसलिए यह ऊन गलीचे हेतु प्रसिद्ध है।

राजस्थान स्टेट टेनरीज लिमिटेडटोंक-1971 में स्थापित। इस मिल से लैदर फोम, सोल लैदर आदि का निर्माण किया जाता है।

नमदे टोंक के प्रसिद्ध हैं।

संत पीपा की छतरी टोडा, टोंक में है।

सुनहरी कोठी—प्राचीन काल में यह शीश महल के नाम से जानी जाती थी।

राज्य में तामड़ा का सर्वाधिक उत्पादन टोंक में राजमहल, कुशालपुरा क्षेत्र से होता है।

बिचपुरिया स्तम्भ लेख—उणियारा,टोंक (224 ई.)। इस लेख से यज्ञानुष्ठान का पता चलता है।

माण्डव ऋषि की तपोस्थली—यह टोंक जिले के उणियारा में स्थित है। यहाँ पर तालाब है। यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा से 15 दिवसीय पशु मेला लगता है। इसे मिनी पुष्‍कर के नाम से भी जाना जाता है।



टोंक जिले के महत्पूर्ण प्रश्न–

टोंक  नगर 1817 ईस्वी में किसके द्वारा बसाया गया था – नवाब अमीर खा 
टोंक जिले की  आकृति – पतंगाकार 
राजस्थान की एकमात्र मुस्लिम रियासत – टोंक 
नगर सभय्ता – टोंक में  
टोंक जिले में कोई वन्य जीव अभ्यारण्य नहीं है 
टोंक में स्थित अरबी फ़ारसी शोध संस्थान को किस नाम से जाना जाता है – कसरे- इलम
टोंक के किस नवाब का शासन काल स्वर्ण काल माना जाता है – इब्राहिम अली खा 
टोंक के धन्ना जाट ने कहा जाकर रामानंद को अपना गुरु बनाया – वाराणसी 
टोंक जिले में कोनसी लोक गायन शैली प्रसिद्ध है – चार बेत शैली 
टोंक में  स्थित सुनहरी कोठी का निर्माण किस नवाब ने करवाया था – नवाब वजीरूदोला
बीसलपुर परियोजना किस नदी पर है – बनास नदी पर 
केंद्रीय भेड़ एवं  ऊन अनुसन्धान संस्थान कहा है – अविकानगर , टोंक में 
एशिया में सिक्को का सबसे बड़ा भंडार कहा से प्राप्त हुआ है – रैंढ़  , टोंक 
वनस्थली विद्यापीठ को प्रारम्भ में किस नाम से जाना जाता था – जीवन कुटीर 
डिग्गी कल्याण जी का मंदिर किस स्थान पर है – मालपुरा , टोंक में 
राजस्थान पत्रिका के संस्थापक कपूरचंद कुलिश का जन्म स्थान – टोंक 
राजस्थान के लौह पुरुष किसे कहा जाता है – दामोदर व्यास को 
टोंक जिला किस राष्ट्रीय राजमार्ग पर पड़ता है – NH-12
टोंक रियासत को एकीकरण के कोनसे चरण में शामिल किया गया – द्वितीय चरण में 
टोंक की प्रमुख नदी कोनसी है – बनास नदी 
टोंक का प्रमुख खनिज कोनसा है – तामड़ा
टोंक के नवाब द्वारा अंग्रेजो के साथ सहायक सन्धि कब की गयी – 1817 में 
टोंक का उपनाम क्या है – नवाबो की नगरी 
प्राचीन राजस्थान का टाटा नगर किसे कहा जाता है – टोंक को 
रैंढ़ किस जिले का प्राचीन नाम है – टोंक का 
टोंक जिले का प्रयाग जहा बनास , डाई, खारी नदियों का त्रिवेणी संगम होता है – राजमहल , टोंक
ऐसा खनिज जिसका टोंक में सर्वाधिक उत्पादन होता है और राजस्थान का एकाधिकार भी है – गार्नेट
हाईटेक प्रिसिजन ग्लास फैक्ट्री कहा है – टोंक में 
भारत में नामदा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध स्थान – श्रीनगर , टोंक 
नमादो का विभिन्न रंग के टुकड़ो की सिलाई का कार्य कहलाता है – पैंच वर्क और चट्टा पटी का कार्य 
टोंक का कोनसा स्थान मिनी पुष्कर कहलाता है – मांडकला 
राजस्थानी यज्ञ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है – मांडकला
मांडव्य  ऋषि की तपोस्थली कहां पर स्थित है- मांडकला
हाथी भाठा नामक पत्थर पर हाथी की मूर्ति किस स्थान पर है – गुमानपुरा में 
भारतीय गुर्जर समाज का भारत में सबसे बड़ा पौराणिक तीर्थ कहा है – जोधपुरिया , टोंक में 
जोधपुरिया , टोंक में किस लोक देवता का मंदिर है – श्री देव नारायण जी का 
सिंहवाशिनी दुर्गा का प्राचीनतम अंक कहा से मिला है – नगर , टोंक से 
डिग्गी किस वंश के राजपूतो का मुख्य केंद्र रहा है – खगरौत  कछवाह राजपूतो का 
टोंक का मालपुरा किसके उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है – खजूर 
टोंक जिले का ऐसा कोनसा बांध है जिसकी सभी मोरिया खोलने पर एक बून्द भी पानी नहीं रहता – टोरडी सागर बांध 
मकर सक्रांति के अवसर पर टोंक में मनाया जाने वाला विशेष उत्सव – दडा उत्सव 
दडे का निर्माण किसे किया जाता है – सुतली और कपडे से 
मुबारक महल कहा है – टोंक में 
कसरे इलम तथा साहित्य सेवियो की तीर्थ स्थली कहा जाता है – अबुल कलम आजाद अरबी फ़ारसी शोध संस्थान को  – 1978 को स्थापना 
सर्वप्रथम राजकीय बस सेवा टोंक जिले में कब प्रारम्भ की गयी – 1952
धन्ना संत का जन्म किस स्थान पर हुआ – धुवन , टोंक 
चारबैत शैली का प्रवर्तक कौन थे – अब्दुल करीम खान 




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