हाबूर पत्थर क्या है, क्यों इसके संपर्क में आते ही दूध जम कर दही बन जाता है तो आइए जानते हैं इनके बारे मैं➡️
हम बात कर रहे हैं राजस्थान के जैसलमेर जिले के एक गांव की, जहां अभी तक जामन की जरूरत ही नहीं पड़ी, ऐसी बात नहीं है कि यहां के लोग दही नहीं खाते या छाछ नहीं पीते, बल्कि उनके पास लाखों बरस पुराना जादुई पत्थर है जिसके दूध खुद ब खुद दही बन जाता है। जी हां, चलिए आपको भी बताते हैं उस गांव के पास विशेष पत्थर के साथ दही बनाने की विधि कौनसी है और उस पत्थर का क्या रहस्य है?
बताया जाता है कि ये गांव जैसलमेर से 40 किलोमीटर दूर स्थित है। इसी गांव में दही जमाने वाला रहस्यमयी पत्थर पाया जाता है। इस गांव को स्वर्णगिरी के नाम से भी काफी जाना जाता है। हाबूर गांव का वर्तमान नाम पूनमनगर है। इसके अलावा हाबूर पत्थर को यहां की स्थानीय भाषा में हाबूरिया भाटा कहा जाता है। इतना ही नहीं ये गांव अपने इन्हीं अनोखे पत्थर की वजह से देश से लकेर विदेश तक में प्रसिद्ध है।
वैसे तो जैसलमेर खासा पत्थरों के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां के पीले पत्थर, जो चमकदार सोने के जैसे दिखते हैं दुनियाभर में अपनी पहचान बना चुके हैं, लेकिन हाबूर गांव या पूनमनगर का पत्थर अपने आपनी कई बड़ी खूबियों के लिए जाना जाता है। हाबूर पत्थर दिखने में बेहद खूबसूरत होता है। हाबूरा पत्थर का रंग हल्का सुनहरा और चमकीला होता है। हाबूर पत्थर दूध को दही बना सकता है। बताया जाता है कि दूध हाबूर पत्थर के संपर्क में आते ही एक रात में दही बन जाता है, जिसका स्वाद खाने में मीठा और सौंधी खुशबू वाली होती है।
इतना ही नहीं कहा जाता है कि आज भी वहां के लोग इक पत्थर का इंस्तेमाल दूध की दही बनाने के लिए करते हैं। इस गांव में मिलने वाले ये प्तथर से यहां के लोग बर्तन, मूर्ति और खिलौने भी बनाते हैं जो देश-विदेश में काफी लोकप्रिय हैं। इस पत्थर से गिलास, प्लेट, कटोरी, प्याले, ट्रे, मालाएं, फूलदान, कप, थाली और मूर्तियां बनाए जाते हैं।
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर एक पत्थर से दही कैसे जम सकती है, तो रुकिए उसका जवाब भी हम देते हैं। दरअसल, यहां के लोग रात में दूध को इस पत्थर से बने किसी बर्तन में रख देते हैं और सुबह उठकर उनको दही तैयार मिलती है। चलिए अब आपको बताते हैं कि इसके पीछे क्या है ऐसा। इस खबर के सामने आने के बाद इस पत्थर को लेकर काफी खोज की गई जिसमें सामने आया कि हाबूर पत्थर में दही जमाने वाले सारे केमिकल्स मौजूद होते है। इस पत्थर में एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया, रिफ्टाफेन टायरोसिन सब बराबर की संख्या में मौजूद हैं। ये केमिकल दूध से दही बनाने में काफी मदद करता है। हाबूर गांव के भूगर्भ से निकलने वाले इस पत्थर में कई खनिज और कई जीवाश्मों की भरमार है जो इसे बेहद उपयोगी और चमत्कारी बनाते हैं।
इसके इतिहास को लेकर बताया जाता है कि जैसलमेर में पहले समुद्र हुआ करता था, जिसका का नाम तेती सागर था जब यहां का समुद्र धीरे-धीरे सुखने लगा तो उसमें रहने वाले कई समुद्री जीव भी यहां जीवाश्म बन गए। इसके बाद यहां पहाड़ों का निर्माण हुआ। हाबूर गांव में इन पहाड़ों से निकलने वाले पत्थर में कई खनिज और कई जीवाश्मों की भरमार है, जिसकी वजह से इस पत्थर से बनने वाले बर्तनों की भारी डिमांड है।
चौंकाने वाली बात तो यह है कि हाबूर पत्थर से बने बर्तनों कि डिमांड देश-विदेशों में काफी है। यहां तक की इस पत्थर से बने बर्तनों की बिक्री ऑनलाइन भी होती है। कई ऐसे ऑनलाइन आउटलेट है जहां पर आपको इस पत्थर से बने बर्तन अलग-अलग और हाई रेट में मिल जाएंगे। हाबूर पत्थर से बनी हुई एक प्याली आपको कम से कं 1500 से 2000 रुपये में मिलेगी। वहीं कटोरी की कीमत 2500 के आसपास तक है। वहीं एक गिलास की कीमत 650 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक होती है।
साथ ही ये भी बताया जाता है कि हाबूर पत्थर का गठन 180 मिलियन साल पहले समुद्र के खोल से जैसलमेर में हुआ था। इसमें भारी औषधीय गुण पाए जाते हैं। जैसे- मधुमेह और खून दबाव नियंत्रित करने के गुण। ऐसा भी कहा जाता है कि इस पत्थर से बने गिलास में रात को सोते समय पानी भरकर रख दो और सुबह खाली पेट पी लो। अगर आप एक से डेढ़ महीने तक लगातार इसका पानी पीते है, तो आपके शरीर में एक चेंज नजर आएगा। आपके शरीर में होने वाला जोड़ों का दर्द कम होगा साथ ही पाइल्स की बीमारी कंट्रोल होगी।
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