कोटा जिला दर्शन
परिचय
स्थान विशेष
➤ चम्बल उद्यान – चम्बल नदी के तट पर प्राकृतिक व मौलिक रूप में विकसित उद्यान ।
➤ भीमचौरी/भीम चंवरी - यह एक चबुतरे पर बना मंदिर है जो वर्तमान मे ध्वस्त हो चुका है। इस चबुतरे को भीम का मण्डप भी कहा जाता है।
➤ चारचौमा का शिवालय - कोटा के इतिहासकार डा. मथुरालाल ने इसे कोटा का सबसे पुराना शिवमंदिर बताया है। मंदिर मे शिव की चर्तुमुखी
मुर्ति स्थित है।
➤ मथुराधीश मंदिर – कोटा के पाटनपोल के निकट वल्लभाचार्य सम्प्रदाय के प्रथम महाप्रभु की पीठ यहां पर ही है।
➤ लक्खी बुर्ज उद्यान - 1976 में विकसित यह एक सीढीनुमा उद्यान है जो छत्र विलास तालाब के किनारे स्थित है।
➤ भीतरीया कुण्ड – यह शिवपुरा में एक शिव मंदिर में बना आर्कषक कुण्ड है।
➤ कोटा शैली – कोटा शैली में नीले रंग एंव खजूर वृक्ष तथा बतख, शेर आदि पशु पक्षी की प्रधानता थी। कोटा शैली का स्वतंत्र अस्तित्व स्थापित करने का श्रेय महारावल रामसिंह को जाता है।
➤ दर्रा अभ्यारण्य - हाल ही मे इस अभ्यारण्य को राष्ट्रीय उद्यान परियोजना मे शामिल करने की घोषणा की गई है। इसका वर्तमान मे नाम मुकुन्दरा हिल्स नैशनल पार्क रखा गया है। इसी अभ्यारण्य के तिपटिया नामक स्थान पर प्रागैतिहासिक काल के शैल चित्र प्राप्त हुए है।
➤ हाड़ौती यातायात प्रशिक्षण पार्क - किशोरो को यातायात नियमो की जानकारी देने के लिए बनाया गया यह पार्क राज्य में अपने तरह का पहला पार्क है।
➤ मुकुन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान - कोटा व झालावाड़ मे स्थित इस पार्क में राज्य का एकमात्र गुप्तकालीन मंदिर है। जिसे मुकुंदरा भीमचोरी का शिवमंदिर कहा जाता है यहाँ पर गागरोनी तोता पाया जाता है। यह राज्य का तीसरा टाइगर रिजर्व है। 9 जनवरी 2012 को इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया।
➤ कोटा सुपर तापीय थर्मल पावर स्टेशन - यह चम्बल के किनारे कोटा बैराज के निकट विद्युत परियोजना है।
➤ क्षारबाग - इस स्थान पर दिवंगत हाड़ा शासको के शाही श्मशान व छतरीयां है।
➤ रंगपुर - यहां पर सुर्याचम्बल पावर लि. नामक बॉयोमास संयत्र है। यहीं पर कोटा गैंस परियोजना के तहत 330 मेगावाट विद्युत उत्पादन किया जाता है। यहां का पंचायतन शैली से बना बुढादित का शिव मन्दिर विशेष आकर्षण का केन्द्र है।
➤ चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य - चम्बल नदी के तट पर प्राकृतिक व मौलिक रूप से विकसित किया गया उद्यान जो घड़ियालो व डॉल्फिन के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध स्थल है
➤ गडेपान - चम्बल फर्टिलाइजर्स एण्ड कैमिकल इण्डस्ट्रिीज के लिए जाना जाता है।
➤ अभेड़ा महल - चम्बल के किनारे स्थित ऐतिहासिक महल व उद्यान।
➤ कंसुआ – कण्व ऋषि का आश्रम रानपुर- यंहा पर राज्य का पहला एग्रोफुड पार्क स्थापित किया गया है।
➤ तिपटिय – यह 50 हजार साल पुरानी चित्रशैली है।
➤ मोड़क – यहां पर सीमेंट कारखाना है तथा यह क्षेत्र चुने पत्थर के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
➤ रामगंज मण्डी – यहां पर राज्य की धनिया मण्डी है।
➤ सांगोद – सांगोद का न्हाण प्रसिद्ध है।
➤ कैथुन – यहां पर विभिषण जी का एकमात्र मंदिर है तथा निजी क्षेत्र की कृषि मण्डी "श्री हनुमान कृषि उपज परिसर" है जो आस्ट्रेलिया के सहयोग से तैयार की गई है। यहां का कोटा डोरीया कलस्टर भी बहुत प्रसिद्ध है।
➤ प्रमुख बांध परियोजनाए - कोटा बैराज, ज्वाहर सागर बांध, गोपालपुरा बांध, आलनिया बांध, तक्ली/टक्ली परियोजना, सावन भादो परियोजना, हरिश्चन्द्र सागर परियोजना।
होटल- आर.टी.डी.सी. होटल – चम्बल
✪प्रमुख उत्सव - हाड़ौती एडवेंचर व दशहरा महोत्सव
✪ प्रमुख हवेली - झाला व बड़े देवता की हवेली, नाहर खां की मीनार, बड़गांव की बावड़ी
✪ प्रमुख अभ्यारण्य - चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य व ज्वाहर सागर अभ्यारण्य दर्रा/मुकुंदरा राष्ट्रीय उद्यान
✪ आखेट निषिद्ध क्षेत्र - सोरसेन
कोटा जिले का कुल क्षेत्रफल – 5217 वर्ग किलोमीटर
नगरीय क्षेत्रफल – 310 वर्ग किलोमीटर तथा ग्रामीण क्षेत्रफल – 4907 वर्ग किलोमीटर है।
कोटा जिले की मानचित्र स्थिति – 24°25′ से 25°51′ उत्तरी अक्षांश तथा 75°35′ से 77°29′ पूर्वी देशान्तर है।
कोटा जिले में कुल वनक्षेत्र – 1391.15 वर्ग किलोमीटर
कोटा के उपनाम → नन्दग्राम, शिक्षा नगरी, राजस्थान का कानपुर आदि कहते है।
कोटा में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 6 है, जो निम्न है →
1. पीपल्दा, 2. सांगोद, 3. कोटा उत्तर, 4. कोटा दक्षिण, 5. लाडपुरा, 6. रामगंज मण्ड़ी
उपखण्डों की संख्या – 5
तहसीलों की संख्या – 5
उपतहसीलों की संख्या – 2
ग्राम पंचायतों की संख्या – 162
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कोटा जिले की जनसंख्या के आंकड़ें निम्नानुसार है →
कुल जनसंख्या—19,51,014
पुरुष—10,21,161;
स्त्री—9,29,853
दशकीय वृद्धि दर—24.4%;
लिंगानुपात—911
जनसंख्या घनत्व—374;
साक्षरता दर—76.6%
पुरुष साक्षरता—86.3%;
महिला साक्षरता—65.9%
कोटा जिले में कुल पशुधन – 6,44,466 (LIVESTOCK CENSUS 2012)
कोटा जिले में कुल पशु घनत्व – 124 (LIVESTOCK DENSITY(PER SQ. KM.))
कोटा जिले का ऐतिहासिक विवरण →
कोटा जिला इसके मुख्यालय नगर कोटा के नाम से जाना जाता है, जो पूर्व में इसी नाम की रियासत की राजधानी था। उपलब्ध अभिलेखों के अनुसार ‘कोटा’ की स्थापना 1264 ई. में जैत्रसिंह (बूँदी शासक) (कई जगह जैत्रसिंह के पौत्र का उल्लेख भी मिलता है) ने कोट्या (कोटिया) नामक भील को मारकर की। (अनेक विवरणों में सन् 1631 में कोटा रियासत की स्थापना माधोसिंह के द्वारा की गई।) राजस्थान एकीकरण के द्वितीय चरण (सन् 1949) में कोटा को राजस्थान संघ में शामिल कर लिया गया। कोटा शहर चम्बल नदी के किनारे बसा हुआ है।
कोटा जिले की सीमा मध्यप्रदेश के दो बार लगती है-प्रथम-सवाईमाधोपुर व बारां के मध्य तथा द्वितीय-झालावाड़ व चित्तौडग़ढ़ के मध्य।
कोटा जिले में बहने वाली नदियाँ →
चम्बल नदी—इस नदी पर कोटा में कोटा बैराज एवम् जवाहर सागर बाँध है। (जवाहर सागर बाँध को कोटा डेंम कहते हैं। यह पिकअप बाँध है।)
अन्य नदियाँ—पार्वती, कालीसिंध, निवाज, परवन, अंधेरी ।
सावन भादो सिंचाई परियोजना कोटा में स्थित है।
कोटा के अन्य जलाशय—गोपालपुरा,आलनिया, तकली परियोजना तथा हरिशचन्द्र परियोजना।
जवाहर सागर—स्थापना-1975 यहाँ पर जियोमोर फोलोजी पर्यटन केन्द्र विकसित किया जा रहा है जो पूर्णत: प्रदूषण रहित क्षेत्र है। सम्पूर्ण भारत में सर्वप्रथम घडिय़ाल को संरक्षण देने का गौरव जवाहर सागर अभयारण को है। अत: यह घडिय़ालों के प्रजनन केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध है।
कोटा जिले के वन्य जीव अभयारण्य→
दर्रा वन्य जीव अभयारण्य—कोटा, झालावाड़। दर्राह राष्ट्रीय उद्यान या राष्ट्रीय चम्बल वन्य जीव अभयारण्य भारत के राजस्थान राज्य में कोटा से 50 कि॰मी॰ दूर है जो घड़ियालों (पतले मुंह वाले मगरमच्छ) के लिए बहुत लोकप्रिय है। यहां जंगली सुअर, तेंदुए और हिरन पाए जाते हैं। बहुत कम जगह दिखाई देने वाला दुर्लभ कराकल यहां देखा जा सकता है।
कोटा जन्तुआलय—राजस्थान का नवीनतम जन्तुआलय। इसकी स्थापना 1954 में हुई।
उत्तरी भारत का प्रथम सर्प उद्यान-कोटा।
उम्मेदगंज पक्षी विहार कन्जर्वेशन रिजर्व—कोटा, स्थापना-5 नवम्बर, 2012।
कोटा जिले के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल →
कोटा दुर्ग—बूँदी के जैत्रसिंह द्वारा ‘कोट्या’ भील को हराकर इस दुर्ग का निर्माण भारत व मुगल शैली में करवाया गया।
कोटा दुर्ग के बारे में टॉड का कथन —”आगरा के किले को छोड़कर किसी भी किले का परकोटा इतना बड़ा नहीं है, जितना कोटा के गढ़ का है।” इस दुर्ग में झाला हवेली है, जिसके बारे में कार्ल खण्डेलवाला ने कहा-”यहाँ के भित्ति चित्र एशिया में अपनी सानी नहीं रखते हैं”। कोटा का गढ़ रावठा तालाब के लिए प्रसिद्ध है।
कोटा दुर्ग में झाला हवेली के बारे में खण्डेलवाला ने कहा है कि ”यहां के भित्ति चित्र एशिया में अपने सानी नहीं रखते।
भदाणा माता—भदाणा, यह माता हाड़ा राजवंश की कुलदेवी है। इस देवी के मन्दिर में मूठ (तांत्रिक विद्या) की चपेट में आया हुआ व्यक्ति ठीक हो जाता है।
मथुराधीश का मन्दिर—यह मन्दिर वल्लभ सम्प्रदाय से सम्बन्धित है। इस मंदिर का निर्माण वल्लभाचार्य के पुत्र विट्टलनाथ जी ने करवाया। यहाँ पर नन्द महोत्सव, दीपावली पर अन्नकूट महोत्सव तथा होली उत्सव मनाये जाते हैं।
गेपरनाथ महोदव मंदिर—2008 में हुए भूस्खलन के कारण यह मन्दिर चर्चा में रहा, इस मन्दिर में शिवलिंग गर्भगृह जमीन की सतह से 300 फीट नीचे है। इस मन्दिर में स्थित शिवलिंग पर सदैव एक जलधारा बहती है।
कंसुआ का शिव मन्दिर—इस मन्दिर में दीवार पर कुटिया लिपि में 8वीं सदी का शिवगण मौर्य का शिलालेख मिला है। इस मन्दिर की विशेषता-सूर्य की पहली किरण मंदिर के 7-8 मीटर अंदर स्थित शिवलिंग पर गिरती है।
मुकुन्दरा का शिव मन्दिर—यह राजस्थान का एकमात्र गुप्तकालीन शिव मन्दिर है।
चार-चौमा का शिवालय—चार-चौमा, यह कोटा राज्य का सबसे प्राचीन शिव मन्दिर है, इसे गुदाकालीन मन्दिर भी कहते हैं।
विभीषण का मन्दिर—कैथून, यह राजस्थान का एकमात्र विभीषण मन्दिर है। यहाँ केवल विभीषण के शीश की पूजा रामभक्त मानकर की जाती है।
कोटा की हवेलियाँ—झाला हवेली, बड़े देवताओं की हवेली।
बूढ़ातीत का सूर्य मन्दिर—यह मन्दिर दीगोद तहसील के बूढ़ातीत गाँव मेंं पंचायतन शैली में बना हुआ है।
भीम चोरी/भीम चँवरी—यह ध्वस्त मंदिर गुप्तकालीन है।
अबली मीणी के महल—अबली मीणी कोटा के राव मुकुन्द सिंह की पासवान थी। जिसके लिए दर्रा में मुकुन्दरा की पहाडिय़ों पर राव मुकुन्द सिंह ने एक महल बनवाया जो अबली मीणी महल के नाम से प्रसिद्ध है। इसे राजस्थान का दूसरा ताजमहल कहते हैं।
अभेड़ा महल—चम्बल नदी के किनारे कोटा-डाबी मार्ग पर स्थित है।
सांगोद का न्हाण—इसकी शुरुआत-चैत्र बदी तीज से होती है। 1871 ई. से यहाँ बादशाह की सवारी निकाली जाती है। इसमें विभिन्न प्रकार के स्वांग बनाकर अखाड़े निकाले जाते है।
Amezing
ReplyDeleteGood job
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