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राजस्थान समान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

Thursday, April 1, 2021

April 01, 2021

राजसमंद जिला दर्शन (राजस्‍थान के जिले) Rajsamand District GK in Hindi / Rajsamand Jila Darshan

 राजसमंद जिला दर्शन (राजस्‍थान के जिले)
Rajsamand District GK in Hindi / Rajsamand Jila Darshan


प्रमुख स्थानो के उपनाम-

राजस्थान की थर्मोपॉलीहल्दीघाटी

राजस्थान का मेराथन - दिवेरघाटी

राजसमन्द जिले का इतिहास —

राजसमंद जिले का निर्माण 10 अप्रैल 1991 को उदयपुर जिले से हुआ था

शहर राजसमंद का नाम राजसमंद झील के नाम पर है जिसका निर्माण मेवाड़ के राणा राज सिंह द्वारा 17 वीं सदी में किया गया था।

राजसमन्द जिले के खनिज एवं कृषि –

राजसमन्द कृषि के साथ खनिज संसाधनों में समृद्ध क्षेत्र है
राजसमन्द में मार्बल, ग्रेनाइट एवं चूना पत्थर का खनन प्रमुख है
दरीबा और जावर खानें जस्ता,चांदी, मैंगनीज आदि के लिए लौह अयस्क का प्रमुख स्त्रोत है

राजसमन्द जिले का परिचय

राजसमंद जिले का कुल क्षेत्रफल – 3,860 वर्ग किलोमीटर

नगरीय क्षेत्रफल – 122.73 वर्ग किलोमीटर तथा ग्रामीण क्षेत्रफल – 3,737.27 वर्ग किलोमीटर है।

राजसमंद जिले की मानचित्र स्थिति – 24°46′ से 26°01′ उत्तरी अक्षांश तथा 73°28′ से 74°18′ पूर्वी देशान्‍तर है।

राजसमंद जिले में कुल वनक्षेत्र – 392.72 वर्ग किलोमीटर

राजसमंद को प्राचीन काल में राजनगर के नाम से भी जाना जाता था।

राजसमंद में विधानसभा क्षेत्रों की संख्‍या 4 है, जो निम्‍न है —

1. भीम, 2. राजसमन्द, 3. कुम्भलगढ़, 4. नाथद्वारा

उपखण्‍डों की संख्‍या – 4

तहसीलों की संख्‍या – 7

उपतहसीलों की संख्‍या – 4

ग्राम पंचायतों की संख्‍या – 205

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राजसमंद जिले की जनसंख्‍या के आंकड़े निम्‍नानुसार है —

कुल जनसंख्या—11,56,597

पुरुष—5,81,339

स्त्री—5,75,258

दशकीय वृद्धि दर—17.7%

लिंगानुपात—990

जनसंख्या घनत्व—248

साक्षरता दर—63.1%

पुरुष साक्षरता—78.4%

महिला साक्षरता—48%

राजसमन्द जिले में कुल पशुधन – 11,27,169

राजसमन्द जिले में कुल पशु घनत्‍व – 292 

राजसमन्‍द जिले का ऐतिहासिक विवरण —

मेवाड़ से जुड़े राजसमन्द की स्थापना 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में महाराणा राजसिंह ने राजनगर के नाम से की। फरवरी, 1676 को महाराणा राजसिंह द्वारा आयोजित प्रतिष्‍ठा समारोह में गोमती नदी के जल प्रवाह को रोकने के लिए बनाई गई झील का नाम ”राजसमंद”, पहाड़ पर बने महल का नाम ”राजमंदिर” और शहर का नाम ”राजनगर” रखा, जिसे अब राजसमन्‍द के नाम से जाना जाता है।

मेवाड़ राज्‍य के समय राजसमंद को जिले का दर्जा दिया हुआ था। मेवाड़ राज्‍य की 1940-41 की प्रशासनिक रिपोर्ट के आधार पर तत्‍कालीन मंजिलों की सीमाओं को पुन: निर्धारण के कारण मेवाड़ राज्‍य में जिलों की संख्‍या 17 से घटाकर आठ कर दी गई और इन जिलों को दो संभागों उदयपुर एवं भीलवाड़ा में बांट दिया गया।

स्वतन्त्रता के पश्चात् राजस्थान का 30 वाँ जिला राजसमन्द को 10 अप्रैल, 1991 को उदयपुर जिले से पृथक करके बनाया।

राजसमन्‍द जिले की प्रमुख नदियाँ —

बनास नदी—बनास नदी का उद्गम राजसमंद जिले की खमनौर की पहाडिय़ों से होता है। बींगोद (भीलवाड़ा) में बनास नदी में मेनाल व बेड़च मिलकर ‘त्रिवेणी संगम’ बनाती है। इस नदी को वन की आशा, वशिष्ठी, वर्णाशा भी कहते हैं। यह राजस्थान में पूर्ण बहाव की दृष्टि से राज्य की सबसे लम्बी नदी (480 कि.मी.) है। कुछ स्रोतों में बनास की लम्‍बाई 512 किमी. भी मिलती है।

सवाईमाधोपुर में रामेश्वरम धाम नामक स्थान पर बनास व सीप चम्बल नदी में मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है।

कोठारी नदी—इसका उद्गम राजसमन्द जिले की दिवेर की पहाडिय़ों (देवगढ़) से होता है। य‍ह नदी भीलवाड़ा जिले में नंदराय गांव के पास बनास नदी में मिलती है। कोठारी नदी की कुल लंबाई 145 किमी. है। कोठारी नदी पर भीलवाड़ा जिले में मेजा बांध बनाया गया है।

खारी नदी—राजसमन्द जिले की बीजराल की पहाडिय़ों (बिजराला गाँव) से खारी नदी का उद्गम होता है। यह नदी राजस्‍थान में राजसमंद, भीलवाड़ा, अजमेर तथा टोंक जिलों में बहती है। टोंक (देवली) के बीसलपुर नामक स्थान पर यह नदी बनास व डाई के साथ मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है।

राजसमंद के जलाशय—

राजसमन्द झील—इस झील का निर्माण महाराणा राज सिंह ने 1662-76 ई. में अकाल राहत कार्य के दौरान करवाया। इसमें गोमती नदी का पानी आता है। यह राजस्थान की दूसरी सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। राज्य की एकमात्र ऐसी झील जिसके नाम पर जिले का नाम रखा गया। इसके नजदीक राजसिंह प्रशस्ति, नौ चौकी की पाल व घेवरमाता का मंदिर है। कहा जाता है कि घेवरमाता के द्वारा ही राजसमंद झील की नींव रखी गयी थी।

नंद समन्द झील—इसे ‘राजसमन्द जिले की जीवन रेखा’ के नाम से जाना जाता है।

राजसमंद के वन्य जीव अभयारण—

कुम्भलगढ़ अभयारण—यह उदयपुर तथा राजसमन्द में विस्‍तृत है। कुम्‍भलगढ़ की स्थापना-1971 में की गई। इस अभयारण में ‘एण्टीलोप प्रजाति का चौसिंगा हिरण’ पाया जाता है। यह अभयारण जंगली मुर्गों के लिए प्रसिद्ध है। यह भेडिय़ों की प्रजनन स्थली के नाम से विख्यात है।

राजसमंद के ऐतिहासिक एवं दर्शनी स्‍थल —

कुम्भलगढ़ दुर्ग—कुम्‍भलगढ़ दुर्ग जरगा की पहाडिय़ाँ, सादड़ी में स्थित है। कुम्‍भलगढ़ दुर्ग के उपनाम मच्छेन्द्रपुर, कुम्भलमेर, हेमकूट, नील तथा गन्धमादन आदि है।

कहा जाता है कि कुम्‍भलगढ़ दुर्ग का निर्माण अशोक के पुत्र सम्प्रति ने करवाया जिसका पुनर्निर्माण 1448 ई. में नागौर विजय के उपलक्ष में वास्तुकार मण्डन (गुजराती) की देखरेख में कुम्भा ने करवाया। इसका पूर्ण निर्माण 1458 में हुआ। इस दुर्ग को मेवाड़ की शरणस्थली’ व ‘मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी’ भी कहा जाता है। इस दुर्ग की दीवार 36 किमी. लम्बी व 7 मीटर चौड़ी है। जिस पर चार घोड़े (दो रथ) एक साथ दौड़ सकते हैं। इस दीवार को भारत की महान दीवार कहते हैं। इस दुर्ग की तुलना टॉड ने एट्रूस्कन दुर्ग से की है।

1537 ई. में उदयसिंह का राज्याभिषेक इसी दुर्ग में हुआ। प्रताप ने मेवाड़ पर शासन आरम्भ कुम्भलगढ़ दुर्ग से ही किया। इस दुर्ग में स्थित कटारगढ़ के किले को ”मेवाड़ की आँख” कहा जाता है। कटारगढ़ में बादल महल बना हुआ है, जिसमें 9 मई, 1540 को महाराणा प्रताप का जन्म हुआ । कटारगढ़ के कुम्भश्याम मंदिर में महाराणा कुम्भा की हत्या 1468 ई. में उसके पुत्र उदा ने की।

इस दुर्ग के बारे (कटारगढ़ के बारे में) में अबुल फजल का कथन—”यह दुर्ग इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि इसको नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर पर रखी पगड़ी भी गिर जाती है”।

घेवर माता—राजसमन्द इस माता ने राजसमन्द झील की नींव का पहला पत्थर रखा। इसका मंदिर राजसमंद झील के समीप है।

श्री नाथ जी का मंदिर—यह मंदिर नाथद्वारा, राजसमंद में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण महाराणा राजसिंह प्रथम ने करवाया तथा श्री कृष्ण की मूर्ति औरंगजेब के शासन काल में दामोदर तिलकायत द्वारा वृदांवन से लाई गई। यह मंदिर वल्लभ सम्प्रदाय का है।

श्री नाथ जी को ”सप्तध्वजा का स्वामी” या ”नाथ” भी कहते हैं। श्री नाथ जी की ”अष्ठ झरोखा कदली झांकी (केले के पतों से) प्रसिद्ध है। श्री नाथ जी की बादशाह की होली एवं अन्नकूट महोत्सव प्रसिद्ध है। इस महोत्सव पर भीलों द्वारा चावल लूटने की परम्परा है।

श्री नाथ जी का पाना राज्य का सबसे बड़ा कलात्मक पाना है, जिसमें 24 शृंगारों का वर्णन मिलता है।

राजसिंह का कथन—”मैं एक लाख हिन्दू वीरों का सिर कटवाकर भी मुसलमानों को श्रीनाथ जी की मूर्ति के हाथ नहीं लगाने दूंगा।”

श्री नाथ जी की पिछवाईयाँ विश्व प्रसिद्ध है। इन पिछवाईयों का वृहत विवरण रॉबट स्केलटन की पुस्तक ”राजस्थानी टेम्पल्स हैंगिग्स ऑन द कृष्णा क्लस्ट” में मिलता है।

द्वारिकाधीश मंदिर — यह मंदिर कांकरौली, राजसमंद में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण भी राजसिंह ने करवाया। यह मन्दिर वल्लभ सम्प्रदाय से सम्बन्धित है। इस मन्दिर के प्रांगण में भित्ति चित्रों का संग्रहालय है। इस मंदिर की प्रतिमा पहले आसोतिया गाँव में थी।

चार भुजा मंदिर — गढग़बोर (राजसमन्द)। यह मन्दिर मेवाड़ की प्राचीन 4 धामों में शामिल है (केसरिया जी, कैलाशपुरी, नाथद्वारा व चारभुजा)। इसकी पूजा पाण्डवों द्वारा भी की गई थी। यहाँ होली व देव झूलनी ग्यारस को मेला भरता है।

नोट—चारभुजा जी को ”मेवाड़ का वारीनाथ” कहते है।

नाथद्वारा चित्रकला शैली—मेवाड़ शैली की उपशैली। राजसिंह का काल इस शैली का स्वर्णकाल कहलाता है। इस चित्रशैली में कृष्ण की बाल लीलाएँ, कष्ण-यशोदा के चित्र, गायों व केलों के चित्र है।

कुम्भलगढ़ प्रशस्ति—राजसमन्द (1460 ई.) यह प्रशस्ति वर्तमान में उदयपुर संग्रहालय में है। इस प्रशस्ति में बप्पा रावल को ब्राह्मण वंशीय बताया गया है। मेवाड़ के महाराणा हम्मीर को विषमघाटी पंचानन कहा गया है।

राजप्रशस्ति—राजसमन्द झील, (1676 ई.)। यह प्रशस्ति राजसमंद झील के उत्तरी भाग के 9 चौकी की पाल पर लिखी हुई है। यह 25 शिलालेखों पर रणछोड़ भट्ट द्वारा संस्कृत भाषा में लिखी हुई है। यह एशिया की सबसे बड़ी प्रशस्ति है।

गिलूण्ड सभ्यता —बनास नदी, राजसमन्द , यह ताम्रयुगीन सभ्यता थी।

हल्दीघाटी — गोगुन्दा व खमनौर की पहाडिय़ों के बीच (राजसमंद)। यहाँ पर 18 जून, 1576 (21 जून, 1576 भी मिलता है) को मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप व अकबर के सेनापति मानसिंह कच्छवाहा के मध्य हल्दीघाटी का युद्ध हुआ जिसमें अकबर की सेना विजयी हुई। प्रताप की उसके भाई शक्ति सिंह से मुलाकात बलीचा (राजसमन्द) नामक स्थान पर हुई। प्रताप के घोड़े चेतक ने वहीं पर अपने प्राण त्यागे।

चेतक की छतरी—बलीचा (राजसमन्द) में है। बदायुंगी ने इस युद्ध को गोगुन्दा का युद्ध, अबुल फजल ने खमनौर का युद्ध एवम् कर्नल टॉड ने इसे मेवाड़ की थर्मोपल्ली कहा था।



राजसमंद जिले के महत्पूर्ण तथ्य –

राजसमंद की आकृती तिलक के समान है।
इसे राजनगर कहा जाता था।
इसकी स्थापना महाराजा राजसिंह के द्वारा 1676 मे राजसंमद झील के साथ की व नगर का नाम राजनगर रखा गया जो राजसंमद के नाम से जाना गया।
यहां का प्रसिद्ध नृत्य डांग है।
यहां के श्रीनाथद्वारा की पिछवाई पेटिंगमीनाकारी कला तथा पास मे ही स्थित मोलेला गांव टेराकोटा शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है।
श्रीनाथद्वारा मे वल्लभ सम्प्रदाय की प्रधान पीठ तथा श्रीनाथ जी का भव्य मंदिर है।
कर्नल जेम्स टॉड ने दिवेर के युद्ध को राजस्थान का मेराथन कहा है।
यह युद्ध 1582 में अमरसिंह व प्रतापसिंह तथा मुगल सेना के मध्य हुआ।
उन्होने 21 जुन 1576 को हुए हल्दीघाटी के युद्ध को राजस्थान की थर्मोपॉली कहा है।
कुभलगढ से गोगंदा के मध्य का क्षेत्र भोराट कहलाता है।
गोगुंदा मे महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ था।
10 अप्रेल 1991 को उदयपुर से अलग होकर यह नया जिला बना।
राजसमंद झील पर मेवाड़ के इतिहास पर आधारित विश्व का सबसे बड़ा शिलालेख है।
दिवेर के युद्ध मे महाराणा प्रताप को छापामार पद्धती अपनाने के कारण विजय प्राप्त हुई।
राजस्थान में सबसे ज्यादा संगमरमर यही पर प्राप्त होता है।
कुंवर पृथ्वीराज की छतरी भी यही पर है।
यहां पर राजसमंद व नंदसमंद नामक दो झीले है।

राज्य में सर्वाधिक सडको के घनत्व वाला जिला है।

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Tuesday, March 30, 2021

March 30, 2021

नागौर जिला दर्शन (राजस्‍थान के जिले) Nagour District GK in Hindi / Nagour Jila Darshan

 नागौर जिला दर्शन (राजस्‍थान के जिले)
Nagour District GK in Hindi / Nagour Jila Darshan


नागौर जिले का इतिहास—

नागौर को प्राचीनकाल से अहिच्छत्रपुर के नाम से जाना जाता रहा है और यह जंगल प्रदेश की राजधानी भी रहा था।

अकबर ने अजमेर जियारत कर सीधे नागौर पहुंचकर 1570 ईस्वी में आमेर के शासक भारमल की सहायता से अपना दरबार लगाया था, जिसे नागौर दरबार की संज्ञा दी थी। जहां पर मारवाड़ के अधिकांश शासकों ने उसकी अधीनता स्वीकार की थी।

राजस्थान के निर्माण के पूर्व नागौर जोधपुर रियासत का एक भाग था। यह मारवाड़ रियासत का एक परगना माना जाता था।

प्राचीन शिलालेखों तथा इतिहासविदों के अनुसार नागौर का प्राचीन नाम अहिच्छत्रपुर था। चौहान वंश के वासुदेव के साम्राज्य की आरम्भ में राजधानी अहिच्छत्रपुर ही थी।

नागौर जिला वर्तमान में राजस्थान के अजमेर संभाग के अंतर्गत आता है।

इस नगर पर लगभग 2 हजार वर्षों तक नागवंशीय राजाओं का अधिकार रहा, जिन्‍हें बाद में परमार राजपूतों ने पराजित किया। मध्यकाल में ये मुगलों के अधीन था बाद में मुगल शासन के शक्तिहीन होने के पश्‍चात् जोधपुर के राठौड़ राजाओं का नागौर पर अधिकार हो गया।

जोधपुर के तत्‍कालीन महाराजा गजसिंह प्रथम के वीर पुत्र अमरसिंह राठौड़ की शौर्य गाथाओं के कारण नागौर इतिहास में अपना महत्त्वपूर्ण स्‍थान रखता है।

नागौर जिले के उपनाम/प्राचीन नाम—

राजस्थान का धातु नगर
औजारों की नगरी
जांगल प्रदेश की राजधानी
अहिच्छत्रपुर

नागौर जिले की भौगोलिक स्थिति

नागौर जिले का कुल क्षेत्रफल – 17,718 वर्ग किलोमीटर

नागौर जिले में कुल वनक्षेत्र –

नागौर जिले की मानचित्र में स्थिति एवं विस्तार—

अक्षांशीय स्थिति : 26° 25 मिनट उत्तरी अक्षांश से 27° 40 मिनट उत्तरी अक्षांश तक।

देशांतरीय स्थिति : 73°18 मिनट पूर्वी देशांतर से 75 ° 15 मिनट पूर्वी देशांतर तक।

नागौर जिले में विधानसभा क्षेत्रों की संख्‍या 10 है, जो निम्‍न प्रकार है—

1. लाडनूं, 2. डीडवाना, 3. जायल, 4. नागौर, 5. खींवसर,

6. मेड़ता, 7. डेगाना, 8. मकराना, 9. नावां, 10. परबतसर

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार नागौर जिले की जनसंख्‍या के आंकड़े निम्‍नानुसार है—

कुल जनसंख्या—33,07,743

पुरुष—16,96,325

स्त्री—16,11,418

दशकीय वृद्धि दर—19.2%

लिंगानुपात—950

जनसंख्या घनत्व—187

साक्षरता दर—62.8%

पुरुष साक्षरता—77.2%

महिला साक्षरता—47.8%

नागौर जिले में कुल पशुधन – 31,50,011


नागौर जिले में कुल पशु घनत्‍व – 178

नागौर जिले की प्रमुख नदियाँ—

जोजड़ी नदी—जोजड़ी नदी का उद्गम नागौर जिले के पोंडलू गाँव की पहाडिय़ों से होता है। यह लूनी की सहायक नदियों में एकमात्र ऐसी नदी है, जिसका उद्गम अरावली की पहाडिय़ों से नहीं होता है। यह लूनी नदी में पश्चिम दिशा से मिलती है तथा यह लूनी की एकमात्र ऐसी सहायक नदी है, जो दांयी तरफ से लूनी नदी में मिलती है।

नागौर जिले में बहने वाली अन्‍य नदियाँ—लूनी, हरसौर।

डीडवाना झील—इस झील का नमक खाने योग्य नहीं है। डीडवाना झील पर 1960 में राजस्थान स्टेट कैमिकल वर्क्‍स’ नामक उर्वरक कारखाना स्थापित किया गया, जो देश का सबसे बड़ा कारखाना है। इस झील के नमक का प्रयोग चमड़ा व कागज उद्योग में होता है। यहाँ पर नमक बनाने वाली संस्थाएँ देवल कहलाती हैं।

नावां झील—यहाँ पर भारत सरकार का मॉडल साल्ट फार्म (आदर्श लवण उद्योग) विकसित किया गया है।

अन्य—डेगाना, भैरोंदा, कुचामन झील।

इन्दिरा गाँधी नहर की लिफ्ट नहर—गजनेर लिफ्ट (वर्तमान नाम-पन्नालाल बारुपाल लिफ्ट) से नागौर को पेयजल की आपूर्ति होती है।

कृषि विशेष-

1. सर्वाधिक क्षेत्रफल वाली फसल- अलसी, मुंग व तारामीरा

2. सर्वाधिक उत्पादन वाली फसल- अलसी, मुंग, तारामीरा व आंवला


नागौर जिले के प्रमुख पशु मेले

1. रामदेव पशुमेला- फरवरी

2. बलदेव पशुमेला- अप्रेल

3. जसवन्त जी व वीर तेजाजी पशु मेला- अगस्त माह में

खनिज- चुना पत्थर व चीनी मृतिका

नागौर जिले के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्‍थल →

नागौर का किला→ नागौर के किले के उप नाम → नाग किला या नगाणा। इस दुर्ग का निर्माण सोमेश्वर के सामन्त कैमास (के मास) ने विक्रम संवत् 1211 में करवाया।

नागौर किले की विशेषता है कि इस किले के बाहर से चलाये गये तोपों के गोले किले के महलों को क्षति पहुँचाये बिना ही उपर से निकल जाते हैं। नागौर के किले में कुल 28 बुर्ज है। यहाँ पर शुक्र तालाब, सुन्दर फव्वारा एवं अकबरी मस्जिद का निर्माण अकबर ने करवाया। इंग्लैण्ड के प्रिन्स चार्ल्‍स इस दुर्ग का अवलोकन कर चुके हैं। इस दुर्ग के बादल महल व शीशमहल भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। अमरसिंह की शौर्य गाथाएँ इसी दुर्ग से जुड़ी है। 2007 में साफ-सफाई के लिए यूनेस्को ने इस किले को ”अवार्ड ऑफ एक्सीलैन्स” पुरस्कार से सम्मानित किया था।

कुचामन का किला→उपनाम—जागीरी किलों का सिरमौर तथा अणखला किला। इस गिरी दुर्ग का निर्माण वनखण्डी महात्मा के आशीर्वाद से मेड़तिया शासक ‘झालमसिंह‘ ने करवाया। इस दुर्ग के बारे में प्रसिद्ध कथन—”ऐसा किला राणी जाये के पास भले ही हो ठुकराणी जाये के पास नहीं।”

खींवसर का किला—इस किले में औरंगजेब ठहरा था वर्तमान में यह किला एक हेरिटेज होटल है।

मालकोट का किला—मेड़ता, निर्माता-मालदेव।

नागौर के प्रसिद्ध मन्दिर →

कैवाय माता—किनसरिया, परबतसर। किनसरिया का प्राचीन नाम सिणहडिये था। कैवाय माता दहिया राजवंश की कुलदेवी है। इसकी मूर्ति अजीत सिंह ने स्थापित करवाई।

दधिमति माता—दधिमति माता का मंदिर मांगलोद, जायल (नागौर) में स्थित है। यह माता दाधीच ब्राह्मणों की कुल देवी है। इसकी पूजा नवरात्रों में की जाती है। मांगलोद के आस-पास के क्षेत्र को पुराणों में कुशा क्षेत्र कहा गया है। इस माता के मन्दिर में राम के वनवास से लेकर रावण के वध तक का चित्रण है।

भंवाल माता—नागौर, इस माता के मन्दिर में बकरे की बलि दी जाती है।

तेजाजीनागवंशीय जाट, पिता-ताहड़, माता-राजकुंवर, पत्नी-पैमलदे, तेजाजी को साँप ने सैन्दरिया (ब्यावर, अजमेर) में डसा उनकी मृत्यु सुरसुरा (किशनगढ़, अजमेर) में हुई। मृत्यु का समाचार घोड़ी सिणगारी/लीलण ने पहुंचाया। तेजाजी की मूर्ति सुरसुरा में थी जिसको परबतसर का हाकिम परबतसर लाया था।

तेजाजी के प्रमुख स्थल—परबतसर (नागौर) मेला-भाद्रपद शुक्ल – दशमी को लगता है। यह मेला आय की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला है। इस मेले में कृषि के औजारों का सर्वाधिक क्रय-विक्रय होता है।

बलदेव पशु मेला—मेड़ता, चैत्र शुक्ल एकम् से पूर्णिमा,

रामदेव पशु मेला—मानासर, माघु शक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक।

हरिराम बाबा—झोरड़ा गाँव (नागौर) हरिराम बाबा सर्पदंश के इलाज हेतु प्रसिद्ध है। मंदिर में मूर्ति के स्थान पर साँप की बाँबी है।

वीर कल्लाजी—कल्‍लाजी का जन्म—सामियाणा (मेड़ता, नागौर) में हुआ। इनकी कुलदेवी नागणेची माता थी। कल्लाजी को ”शेषनाग का अवतार” माना जाता है कल्लाजी ने 23 फरवरी, 1568 को अपने चाचा जयमल को कन्धों पर बिठाकर अकबर के साथ युद्ध किया। इन्हें 4 हाथों व 2 सिर के लोकदेवता कहते हैं। कल्लाजी की छतरी चित्तौड़ दुर्ग के भैरव पोल में है। इनकी मुख्य पीठ—रनेला (सिरोही), प्रमुख तीथ स्थल—सामलिया (डूंगरपुर)।

मीरां बाई—मीरा बाई जन्म का 1498 ई. कुड़की गाँव (पाली) में हुआ था। मीरांबाई के पिता रतन सिंह बाजोली, मेड़ता के जागीरदार थे। अत: मीरांबाई का लालन-पालन मेड़ता में हुआ। मीरांबाई के पति महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज थे, जिनकी मृत्यु खातोली के युद्ध (1517) में हुई। मीरांबाई को विक्रमादित्य ने जहर का प्याला पिलाया, जिसको अमृत समझकर मीरां बाई ने पी लिया। मीरा बाई ने अपना जीवन का अन्तिम समय डाकोर (द्वारिका, गुजरात) में गुजारा।

चारभुजा मंदिर—मेड़ता में, मीरा संग्रहालय—मेड़ता (नागौर)

जाम्भोजी—इनका जन्म 1451 ई. पीपासर (नागौर) में हुआ।

नवल सम्प्रदाय—संस्थापक-नवलदासजी (हस्सालाव-नागौर), प्रधान पीठ—जोधपुर।

निरंजनी सम्प्रदाय—संस्थापक-हरिदास जी। इनका जन्म कापड़ौद (नागौर) में हुआ। हरिदास जी को ”कलयुग का वाल्मीकि” कहते हैं।

प्रधान पीठ—गाढ़ा (डीडवाना-नागौर) मेला फाल्गुन शुक्ल एकम् से द्वादशी।

रामस्नेही सम्प्रदाय रेण शाखा—संस्थापक दरियावजी, रेण को दरियापंथ भी कहते हैं।

संत हम्मी-उद्दीन—इनकी दरगाह नागौर (तारकीन की दरगाह) में है। यहाँ राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा उर्स लगता है। इन्हें राजस्थान का दूसरा ख्वाजा कहते हैं। इनके उपनाम—सन्यासियों का सुल्तान। इनकी मजार-गिनाणी तालाब के पास है।

गुसाई मंदिर—जुंजाला (नागौर)

जसनगर का शिव मंदिर—जसनगर (नागौर)

चतुरदास जी का मंदिर—बुटाटी गाँव (मेड़ता, नागौर) तुरदास जी महाराज लकवे के निदान हेतु प्रसिद्ध है।

नागौर के मारोठ में जीण माता का मन्दिर है।

अमर सिंह की छतरी—नागौर में झड़ा (बड़ा) तालाब के समीप 16 कलात्‍मक खम्भों पर स्थित है।

लाछां गुजरी की छतरी—नागौर-तेजाजी ने लाछां की गायों को छुड़ाने के लिए (मेर) सिरोही के मीणाओं से मडांवरिया नामक स्थान पर युद्ध किया। लाछां गुजरी, तेजाजी की पत्‍नी पेमलदे की सहेली थी।

चौधरी लिखमाराम—राजस्थान के प्रथम जिला प्रमुख।

हवलदार शम्भुदयाल सिंह—प्रथम अशोक चक्र विजेता।

बनवारी लाल जोशी—छोटी खाटू (नागौर), U.P. व उत्तराखण्ड के पूर्व राज्यपाल।



नागौर जिले के अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न/तथ्य

भारत में पंचायतीराज व्यवस्था की शुरुआत 2 अक्टूबर 1959 को जवाहर लाल नेहरु ने नागौर जिले के मेड़ता के बगदरी गाँव से की। इसी समय राजस्‍थान के साथ ही आन्‍ध्रपदेश में भी पंचायतीराज व्‍यवस्‍था का प्रारम्‍भ हुआ था।

देश की पहली रेल बस सेवा “इंजीरा”12 अक्टूबर, 1994 ईस्वी को मेड़ता रोड से मेड़ता सिटी के मध्य नागौर जिले में शुरू हुई थी।

राजस्थान में सर्वाधिक पशु मेले—नागौर में आयोजित होते है

विश्नाई सम्प्रदाय के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल—रोटू (नागौर) में है।

कानाती मस्जिद का लेख—(1641ई.) नागौर—इसके अनुसार अनेक चौहान गौरी के काल में मुसलमान बन गये।

अमरपुर का लेख, बाकलिया का लेख—नागौर से सम्बंधित है

शाह जामा मस्जिद नागौर जिले में है। जामी मस्जिद का लेख—मेड़ता (नागौर) से सम्बंधित है

मतीरे की राड़’—1644 ई. में, नागौर के शासक अमरसिंह व बीकानेर शासक कर्ण सिंह के मध्य हुई। जिसमें अमरसिंह विजयी हुआ।

गिंगोली (परबतसर) का युद्ध—यहाँ पर 1807 में जयपुर नरेश जगत सिंह व जोधपुर के मानसिंह राठौड़ के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध में जयपुर नरेश जगतसिंह विजयी रहा।

डाबड़ा काण्ड—13 मार्च, 1947 को हुआ, जिसमें चुन्नी लाल शर्मा, रुघाराम चौधरी, रामाराम चौधरी शहीद हो गये।

न्यूनतम अनुसूचित जनजाति प्रतिशत वाला जिला-नागौर है।

गोगेलाव कन्जर्वेशन रिजर्व—नागौर में है (स्थापना—09 मार्च 2012)

रोटू कन्जर्वेशन रिजर्व—नागौर, स्थापना 29 मई 2012

राजस्थान में जीरा मण्डी—मेड़ता (नागौर) में है।

गीर व नागौरी गाय का प्रजनन केन्द्र—नागौर में है

बादावास नागौर के,नागौरी बैल कृषि कार्यो हेतु प्रसिद्ध है।

नागौर जिले के ‘वरुण गाँव’ की बकरियाँ प्रसिद्ध है।

रैंवत की पहाड़ी-डेगाना, भारत का प्रमुख टंगस्टन उत्पादन क्षेत्र है।

नागौर के भदवासी, गोठ मांगलोद, मांगलू जिप्सम उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।

राजस्थान में सबसे अच्छी किस्म का संगमरमर सफेद संगमरमर—मकराना (नागौर) में मिलता है, जिससे आगरा का ताजमहल व कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल बना हुआ है।

खींवसर (नागौर) में राज्य का दूसरा परमाणु बिजलीघर बनाया जा रहा है।

राजस्थान का प्रथम सफेद सीमेंट का कारखाना गोटन (नागौर) में है ।यहाँ राज्य की प्रथम सीमेंट फैक्ट्री (जे.के. व्हाइट सीमेंट) 1984 में स्थापित की गई।

जुलाई 2010 को खींवसर नागौर में निजी क्षेत्र की पहली सबसे बड़ी ‘सौर ऊर्जा परियोजना ‘रिलायंस इण्डस्ट्रीज’ द्वारा स्थापित की गई।

जैन विश्वभारती विद्यापीठ—लाडनूँ (नागौर) स्थापना—आचार्य तुलसी की प्रेरणा से 1971 में। 20 मार्च, 1991 में इसे डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया।

कुचामन(नागौर)एमरी स्टोन की चक्कियों के लिए प्रसिद्ध है।

मीरा संग्रहालय—मेड़ता (नागौर)में है

खुशबू वाली मेथी की मंडी (ताऊसर, नागौर में) है।

देश व राजस्थान में लिग्नाइट पर आधारित प्रथम भूमिगत विद्युत संयंत्र मेड़ता सिटी (नागौर) में है।

राजस्थान राज्य का मध्य का जिला नागौर जिला है।

लोहारपुरा (नागौर) में लोहे के हस्त औजार बनते हैं।

अकबर के नवरत्न कहे जाने वाली दरबारियों में से बीरबल, अबुल फजल तथा फैजी नागौर जिले से संबंधित थे।

कुचामन (नागौर) में मारवाड़ राज्य की टकसाल थी, जिसमें ढले हुए सिक्के कुचामनी सिक्के कहलाते थे।

नागौर जिले के गांव टांकला की दरिया एवं बडू की जूतियां प्रसिद्ध है।

राजस्थान का पहला आदर्श लवण पार्क नावा (नागौर) में स्थित है।

राजस्थान में सर्वाधिक खारे पानी की झीले नागौर जिले में स्थित है।

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