राजसमंद जिला दर्शन (राजस्थान के जिले) Rajsamand District GK in Hindi / Rajsamand Jila Darshan
राजसमंद जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)
Rajsamand District GK in Hindi / Rajsamand Jila Darshan
प्रमुख स्थानो के उपनाम-
राजस्थान की थर्मोपॉली – हल्दीघाटीराजस्थान का मेराथन - दिवेरघाटी
राजसमन्द जिले का इतिहास —
राजसमंद जिले का निर्माण 10 अप्रैल 1991 को उदयपुर जिले से हुआ थाराजसमन्द जिले के खनिज एवं कृषि –
राजसमन्द कृषि के साथ खनिज संसाधनों में समृद्ध क्षेत्र हैराजसमन्द में मार्बल, ग्रेनाइट एवं चूना पत्थर का खनन प्रमुख है
दरीबा और जावर खानें जस्ता,चांदी, मैंगनीज आदि के लिए लौह अयस्क का प्रमुख स्त्रोत है
राजसमन्द जिले का परिचय
राजसमंद जिले का कुल क्षेत्रफल – 3,860 वर्ग किलोमीटर
नगरीय क्षेत्रफल – 122.73 वर्ग किलोमीटर तथा ग्रामीण क्षेत्रफल – 3,737.27 वर्ग किलोमीटर है।
राजसमंद जिले की मानचित्र स्थिति – 24°46′ से 26°01′ उत्तरी अक्षांश तथा 73°28′ से 74°18′ पूर्वी देशान्तर है।
राजसमंद जिले में कुल वनक्षेत्र – 392.72 वर्ग किलोमीटर
राजसमंद को प्राचीन काल में राजनगर के नाम से भी जाना जाता था।
राजसमंद में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 4 है, जो निम्न है —
1. भीम, 2. राजसमन्द, 3. कुम्भलगढ़, 4. नाथद्वारा
उपखण्डों की संख्या – 4
तहसीलों की संख्या – 7
उपतहसीलों की संख्या – 4
ग्राम पंचायतों की संख्या – 205
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राजसमंद जिले की जनसंख्या के आंकड़े निम्नानुसार है —
कुल जनसंख्या—11,56,597
पुरुष—5,81,339
स्त्री—5,75,258
दशकीय वृद्धि दर—17.7%
लिंगानुपात—990
जनसंख्या घनत्व—248
साक्षरता दर—63.1%
पुरुष साक्षरता—78.4%
महिला साक्षरता—48%
राजसमन्द जिले में कुल पशुधन – 11,27,169
राजसमन्द जिले में कुल पशु घनत्व – 292
राजसमन्द जिले का ऐतिहासिक विवरण —
मेवाड़ से जुड़े राजसमन्द की स्थापना 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में महाराणा राजसिंह ने राजनगर के नाम से की। फरवरी, 1676 को महाराणा राजसिंह द्वारा आयोजित प्रतिष्ठा समारोह में गोमती नदी के जल प्रवाह को रोकने के लिए बनाई गई झील का नाम ”राजसमंद”, पहाड़ पर बने महल का नाम ”राजमंदिर” और शहर का नाम ”राजनगर” रखा, जिसे अब राजसमन्द के नाम से जाना जाता है।
मेवाड़ राज्य के समय राजसमंद को जिले का दर्जा दिया हुआ था। मेवाड़ राज्य की 1940-41 की प्रशासनिक रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन मंजिलों की सीमाओं को पुन: निर्धारण के कारण मेवाड़ राज्य में जिलों की संख्या 17 से घटाकर आठ कर दी गई और इन जिलों को दो संभागों उदयपुर एवं भीलवाड़ा में बांट दिया गया।
स्वतन्त्रता के पश्चात् राजस्थान का 30 वाँ जिला राजसमन्द को 10 अप्रैल, 1991 को उदयपुर जिले से पृथक करके बनाया।
राजसमन्द जिले की प्रमुख नदियाँ —
बनास नदी—बनास नदी का उद्गम राजसमंद जिले की खमनौर की पहाडिय़ों से होता है। बींगोद (भीलवाड़ा) में बनास नदी में मेनाल व बेड़च मिलकर ‘त्रिवेणी संगम’ बनाती है। इस नदी को वन की आशा, वशिष्ठी, वर्णाशा भी कहते हैं। यह राजस्थान में पूर्ण बहाव की दृष्टि से राज्य की सबसे लम्बी नदी (480 कि.मी.) है। कुछ स्रोतों में बनास की लम्बाई 512 किमी. भी मिलती है।
सवाईमाधोपुर में रामेश्वरम धाम नामक स्थान पर बनास व सीप चम्बल नदी में मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है।
कोठारी नदी—इसका उद्गम राजसमन्द जिले की दिवेर की पहाडिय़ों (देवगढ़) से होता है। यह नदी भीलवाड़ा जिले में नंदराय गांव के पास बनास नदी में मिलती है। कोठारी नदी की कुल लंबाई 145 किमी. है। कोठारी नदी पर भीलवाड़ा जिले में मेजा बांध बनाया गया है।
खारी नदी—राजसमन्द जिले की बीजराल की पहाडिय़ों (बिजराला गाँव) से खारी नदी का उद्गम होता है। यह नदी राजस्थान में राजसमंद, भीलवाड़ा, अजमेर तथा टोंक जिलों में बहती है। टोंक (देवली) के बीसलपुर नामक स्थान पर यह नदी बनास व डाई के साथ मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है।
राजसमंद के जलाशय—
राजसमन्द झील—इस झील का निर्माण महाराणा राज सिंह ने 1662-76 ई. में अकाल राहत कार्य के दौरान करवाया। इसमें गोमती नदी का पानी आता है। यह राजस्थान की दूसरी सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। राज्य की एकमात्र ऐसी झील जिसके नाम पर जिले का नाम रखा गया। इसके नजदीक राजसिंह प्रशस्ति, नौ चौकी की पाल व घेवरमाता का मंदिर है। कहा जाता है कि घेवरमाता के द्वारा ही राजसमंद झील की नींव रखी गयी थी।
नंद समन्द झील—इसे ‘राजसमन्द जिले की जीवन रेखा’ के नाम से जाना जाता है।
राजसमंद के वन्य जीव अभयारण—
कुम्भलगढ़ अभयारण—यह उदयपुर तथा राजसमन्द में विस्तृत है। कुम्भलगढ़ की स्थापना-1971 में की गई। इस अभयारण में ‘एण्टीलोप प्रजाति का चौसिंगा हिरण’ पाया जाता है। यह अभयारण जंगली मुर्गों के लिए प्रसिद्ध है। यह भेडिय़ों की प्रजनन स्थली के नाम से विख्यात है।
राजसमंद के ऐतिहासिक एवं दर्शनी स्थल —
कुम्भलगढ़ दुर्ग—कुम्भलगढ़ दुर्ग जरगा की पहाडिय़ाँ, सादड़ी में स्थित है। कुम्भलगढ़ दुर्ग के उपनाम मच्छेन्द्रपुर, कुम्भलमेर, हेमकूट, नील तथा गन्धमादन आदि है।
कहा जाता है कि कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण अशोक के पुत्र सम्प्रति ने करवाया जिसका पुनर्निर्माण 1448 ई. में नागौर विजय के उपलक्ष में वास्तुकार मण्डन (गुजराती) की देखरेख में कुम्भा ने करवाया। इसका पूर्ण निर्माण 1458 में हुआ। इस दुर्ग को ‘मेवाड़ की शरणस्थली’ व ‘मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी’ भी कहा जाता है। इस दुर्ग की दीवार 36 किमी. लम्बी व 7 मीटर चौड़ी है। जिस पर चार घोड़े (दो रथ) एक साथ दौड़ सकते हैं। इस दीवार को भारत की महान दीवार कहते हैं। इस दुर्ग की तुलना टॉड ने एट्रूस्कन दुर्ग से की है।
1537 ई. में उदयसिंह का राज्याभिषेक इसी दुर्ग में हुआ। प्रताप ने मेवाड़ पर शासन आरम्भ कुम्भलगढ़ दुर्ग से ही किया। इस दुर्ग में स्थित कटारगढ़ के किले को ”मेवाड़ की आँख” कहा जाता है। कटारगढ़ में बादल महल बना हुआ है, जिसमें 9 मई, 1540 को महाराणा प्रताप का जन्म हुआ । कटारगढ़ के कुम्भश्याम मंदिर में महाराणा कुम्भा की हत्या 1468 ई. में उसके पुत्र उदा ने की।
इस दुर्ग के बारे (कटारगढ़ के बारे में) में अबुल फजल का कथन—”यह दुर्ग इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि इसको नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर पर रखी पगड़ी भी गिर जाती है”।
घेवर माता—राजसमन्द इस माता ने राजसमन्द झील की नींव का पहला पत्थर रखा। इसका मंदिर राजसमंद झील के समीप है।
श्री नाथ जी का मंदिर—यह मंदिर नाथद्वारा, राजसमंद में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण महाराणा राजसिंह प्रथम ने करवाया तथा श्री कृष्ण की मूर्ति औरंगजेब के शासन काल में दामोदर तिलकायत द्वारा वृदांवन से लाई गई। यह मंदिर वल्लभ सम्प्रदाय का है।
श्री नाथ जी को ”सप्तध्वजा का स्वामी” या ”नाथ” भी कहते हैं। श्री नाथ जी की ”अष्ठ झरोखा कदली झांकी (केले के पतों से) प्रसिद्ध है। श्री नाथ जी की बादशाह की होली एवं अन्नकूट महोत्सव प्रसिद्ध है। इस महोत्सव पर भीलों द्वारा चावल लूटने की परम्परा है।
श्री नाथ जी का पाना राज्य का सबसे बड़ा कलात्मक पाना है, जिसमें 24 शृंगारों का वर्णन मिलता है।
राजसिंह का कथन—”मैं एक लाख हिन्दू वीरों का सिर कटवाकर भी मुसलमानों को श्रीनाथ जी की मूर्ति के हाथ नहीं लगाने दूंगा।”
श्री नाथ जी की पिछवाईयाँ विश्व प्रसिद्ध है। इन पिछवाईयों का वृहत विवरण रॉबट स्केलटन की पुस्तक ”राजस्थानी टेम्पल्स हैंगिग्स ऑन द कृष्णा क्लस्ट” में मिलता है।
द्वारिकाधीश मंदिर — यह मंदिर कांकरौली, राजसमंद में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण भी राजसिंह ने करवाया। यह मन्दिर वल्लभ सम्प्रदाय से सम्बन्धित है। इस मन्दिर के प्रांगण में भित्ति चित्रों का संग्रहालय है। इस मंदिर की प्रतिमा पहले आसोतिया गाँव में थी।
चार भुजा मंदिर — गढग़बोर (राजसमन्द)। यह मन्दिर मेवाड़ की प्राचीन 4 धामों में शामिल है (केसरिया जी, कैलाशपुरी, नाथद्वारा व चारभुजा)। इसकी पूजा पाण्डवों द्वारा भी की गई थी। यहाँ होली व देव झूलनी ग्यारस को मेला भरता है।
नोट—चारभुजा जी को ”मेवाड़ का वारीनाथ” कहते है।
नाथद्वारा चित्रकला शैली—मेवाड़ शैली की उपशैली। राजसिंह का काल इस शैली का स्वर्णकाल कहलाता है। इस चित्रशैली में कृष्ण की बाल लीलाएँ, कष्ण-यशोदा के चित्र, गायों व केलों के चित्र है।
कुम्भलगढ़ प्रशस्ति—राजसमन्द (1460 ई.) यह प्रशस्ति वर्तमान में उदयपुर संग्रहालय में है। इस प्रशस्ति में बप्पा रावल को ब्राह्मण वंशीय बताया गया है। मेवाड़ के महाराणा हम्मीर को विषमघाटी पंचानन कहा गया है।
राजप्रशस्ति—राजसमन्द झील, (1676 ई.)। यह प्रशस्ति राजसमंद झील के उत्तरी भाग के 9 चौकी की पाल पर लिखी हुई है। यह 25 शिलालेखों पर रणछोड़ भट्ट द्वारा संस्कृत भाषा में लिखी हुई है। यह एशिया की सबसे बड़ी प्रशस्ति है।
गिलूण्ड सभ्यता —बनास नदी, राजसमन्द , यह ताम्रयुगीन सभ्यता थी।
हल्दीघाटी — गोगुन्दा व खमनौर की पहाडिय़ों के बीच (राजसमंद)। यहाँ पर 18 जून, 1576 (21 जून, 1576 भी मिलता है) को मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप व अकबर के सेनापति मानसिंह कच्छवाहा के मध्य हल्दीघाटी का युद्ध हुआ जिसमें अकबर की सेना विजयी हुई। प्रताप की उसके भाई शक्ति सिंह से मुलाकात बलीचा (राजसमन्द) नामक स्थान पर हुई। प्रताप के घोड़े चेतक ने वहीं पर अपने प्राण त्यागे।
चेतक की छतरी—बलीचा (राजसमन्द) में है। बदायुंगी ने इस युद्ध को गोगुन्दा का युद्ध, अबुल फजल ने खमनौर का युद्ध एवम् कर्नल टॉड ने इसे मेवाड़ की थर्मोपल्ली कहा था।
राजसमंद जिले के महत्पूर्ण तथ्य –